भारतेन्दु युग : प्रमुख कवि व विशेषताएँ ( Bhartendu Yug : Pramukh Kavi V Visheshtayen )

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ( Bhartendu Harishchandra ) आधुनिक युग के प्रवर्त्तक हैं। उनके आगमन से हिन्दी कविता में एक नया युग आरम्भ होता है। इस युग को साहित्यिक पुनरुथान, राष्ट्रीय चेतनापरक युग, सुधारवादी युग और आदर्शवादी युग कहा गया है। इस युग में रीतिकालीन श्रृंगार-प्रधान काव्य के स्थान पर सामान्य जनजीवन की विषय-वस्तु पर आधारित जनहित … Read more

मीराबाई व्याख्या ( Mirabai Vyakhya )

(1) म्हारों प्रणाम बांके बिहारी जी। मोर मुगट माथ्यां तिलक बिराज्यां, कुण्डलअलकां कारी जी। अधर मधुर धर बंसी बजावां, रीझ रिजावां ब्रज नारी जी। या छब देख्यां मोह्यां मीरा, मोह गिरवर धारी जी।। प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा बी ए द्वितीय सेमेस्टर के लिए निर्धारित हिंदी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित मीराबाई के पदों … Read more

तुलसीदास व्याख्या ( Tulsidas Vyakhya )

बालरूप (1)अवधेस के द्वारे सकारे गई, सुत गोद कै भूपति लै निकसे। अवलोकि हौं सोच-विमोचन को ठगि सी रही, जे न ठगे धिक से॥ तुलसी मन-रंजन रंजित अंजन नैन सुखंजन-जातक-से |सजनि ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह से बिकसे॥ प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा बी ए द्वितीय सेमेस्टर के लिए निर्धारित हिंदी की … Read more

सूरदास व्याख्या ( Surdas Vyakhya )

विनय तथा भक्ति (1) चरण-कमल बंदौ हरिराइ। जाकी कृपा पंगु गिरि लंघऎ ,अंध कौ सब कुछ दरसाई।। बहिरौ सुनै, गूँग पुनि बौले, रंक चलै सिर छत्र धराइ। सूरदास स्वामी करुनामय, बार बार बदों तिहिं पाइ।। प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा बी ए द्वितीय सेमेस्टर के लिए निर्धारित हिंदी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित सूरदास … Read more

कबीर व्याख्या ( Kabir Vyakhya )

(1)सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपगार। लोचन अनंत उघाड़िया, अनँत दिखावणहार।। प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा बी ए द्वितीय सेमेस्टर के लिये निर्धारित हिंदी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित कबीरदास के पदों से ली गई हैं | इन पंक्तियों में सच्चे गुरु की महिमा का वर्णन किया गया है | व्याख्या — सच्चे … Read more

तुलनात्मक आलोचना ( Comparative Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप तुलनात्मक आलोचना में दो लेखकों की या एक ही लेखक की दो रचनाओं में तुलना की जाती है | जिस किसी लेखक की या उसकी किसी रचना की तुलनात्मक आलोचना करनी होती है तब उस लेखक के जीवन और लेखन के विषय में जानकारी प्राप्त की जाती है | यही सब व्याख्यात्मक … Read more

शास्त्रीय आलोचना ( Classical Criticism )

अर्थ एवं स्वरूप शास्त्रीय आलोचना को अंग्रेजी में ‘एकडेमिक क्रिटिसिज्म’ भी कहते हैं। इस आलोचना पद्धति के अन्तर्गत आलोचक लक्षण ग्रंथों में वर्णित काव्यशास्त्रीय नियमों के आधार पर साहित्यिक रचना का मूल्यांकन करता है। उदाहरण के रूप में यदि हम हिन्दी के किसी महाकाव्य का परीक्षण करना चाहें तो हम आचार्य मम्मट और विश्वनाथ द्वारा … Read more

अयोध्यासिंह उपाध्याय का साहित्यिक परिचय

जीवन परिचय — श्री अयोध्या सिंह उपाध्याय खड़ी बोली के आरंभिक कवियों में से एक हैं | श्री मैथिलीशरण गुप्त के बाद उन्हें द्विवेदी युग का सबसे बड़ा कवि माना जा सकता है | उनका जन्म सन 1865 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले की निजामाबाद नामक नगर में हुआ | उनके पिता का नाम … Read more

रामधारी सिंह दिनकर का साहित्यिक परिचय

जीवन-परिचय — श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार हैं | वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | उन्होंने गद्य तथा पद्य की विभिन्न विधाओं पर अपनी लेखनी चला कर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया घाट गाँव में 23 सितंबर, सन् 1908 … Read more

विभिन्न साहित्यकारों का जीवन परिचय

कबीरदास सूरदास तुलसीदास मीराबाई कवि बिहारी घनानंद रसखान भारतेन्दु हरिश्चन्द्र बालमुकुंद गुप्त अयोध्यासिंह उपाध्याय महावीर प्रसाद द्विवेदी मैथिलीशरण गुप्त आचार्य रामचंद्र शुक्ल आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी राहुल सांकृत्यायन विद्यानिवास मिश्र हरिशंकर परसाई महादेवी वर्मा जयशंकर प्रसाद सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ सुमित्रानंदन पंत रामधारी सिंह दिनकर भारत भूषण अग्रवाल सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ नरेश मेहता डॉ धर्मवीर … Read more

कामायनी : आनंद सर्ग ( जयशंकर प्रसाद ) – सार / कथ्य / प्रतिपाद्य या मूल भाव

‘आनंद’ जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित महाकाव्य ‘कामायनी’ का अंतिम सर्ग है। पाठ्यक्रम में संकलित आनंद सर्ग का सार निम्नलिखित है : मानव के सहयोग से इड़ा ने सारस्वत प्रदेश को सुव्यवस्थित कर दिया था। जिसका परिणाम यह निकला कि वे सभी लोग आपसी वैमनस्य का त्याग कर एक परिवार की तरह मिलजुल कर रहने लगे … Read more

संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( मैथिलीशरण गुप्त ) : सार /कथ्य / प्रतिपाद्य

‘सन्देश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया’ प्रस्तुत कविता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के महाकाव्य ‘साकेत’ के आठवें सर्ग का अंश है। श्रीराम, सीता एवं लक्ष्मण चित्रकूट में ठहरे हुए हैं। सीता जी अपनी पर्णकुटी के आस-पास के पेड़-पौधों को पानी दे रही हैं। श्रीराम ने उस समय सीता को अपने इस संसार में आने के … Read more

भारत-भारती (मैथिली शरण गुप्त): सार /कथ्य / मूल भाव / मूल संवेदना या चेतना

‘भारत-भारती’ ( Bharat Bharati ) कविता मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख कविता है। कवि ने इस कविता को तीन खण्डों में विभाजित किया है – अतीत खण्ड, वर्तमान एवं भविष्य खण्ड। प्रस्तुत काव्यांश अतीत खण्ड का आरम्भिक भाग है। इस कविता में कवि ने भारतवर्ष की प्राचीन का चित्रण किया है। इसके माध्यम से कवि ने … Read more

जयद्रथ वध : सार / कथ्य / प्रतिपाद्य

‘जयद्रथ वध’ नामक कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित एक प्रसिद्ध कविता है। इसमें कवि ने जयद्रथ के वध तथा उसके पश्चात पांडव सेना में विजयोल्लास का चित्रण किया है। जब अभिमन्यु द्रोणाचार्य द्वारा रचित चक्रव्यूह में अकेला प्रवेश कर गया तब कौरव सेना के साथ योद्धाओं ने अभिमन्यु को चारों तरफ से घेर लिया | … Read more

पद्मावत : नखशिख खण्ड ( Padmavat : Nakhshikh Khand )

का सिंगार ओहि बरनौं राजा। ओही का सिंगार ओही पै छाजा।। प्रथमहि सीस कस्तूरी केसा। बलि बासुकि को औरु नरेसा || भंवर केश वह मालती रानी। बिसहर लुरहीं लेहिं अरघानी।। बेनी छोरी झारु जौं बारा। सरग पातर होइ अंधियारा || कंवल कुटिल केस नाग करे। तरंगहिं अंतिम भुंग बिसारे॥ बेधे जानु मलैगिरि बासा। सीस चढ़े … Read more