भारत की जलवायु वर्ष भर कृषि उत्पादकता के अनुकूल है और यहां की मिट्टी उपजाऊ है परंतु यहां वर्ष के सभी महीनों में जल की आपूर्ति नहीं हो पाती | अतः यहां सिंचाई आवश्यक हो जाती है | सिंचाई की इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए भारत में बहुद्देशीय परियोजनाएँ विकसित की गई हैं | ये परियोजनाएं एक साथ कहीं उद्देश्यों को पूरा करती हैं | अतः इसे बहुद्देशीय परियोजना कहते हैं |
भारतीय सिंचाई परियोजना
भारतीय कृषि मानसून पर अत्यधिक निर्भर है। जिस वर्ष मानसून ठीक नहीं रहता, उस वर्ष फसलें नष्ट हो जाती हैं या अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पाती। अत: कृषि की नियमितता व उत्पादकता बनाए रखने के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
भारत में वर्षा का वितरण भी काफी असमान है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा की न्यूनता के कारण सिंचाई आवश्यक हो जाता है। भारत में सिंचाई के प्रमुख साधनों के अंतर्गत नहरें, कुएँ, नलकूप, डीजल पंपसेट, तालाब आदि आते हैं। आजकल ड्रिप व स्पिंकलर सिंचाई भी की जा रही है।
भारतीय सिंचाई परियोजनाओं को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है —
(क ) लघु सिंचाई योजनाएँ
इनसे 2000 हेक्टेयर से कम क्षेत्र की सिंचाई होती है। इसके तहत कुआँ, नलकूप आदि शामिल किए जाते हैं। भारत की सिंचाई आवश्यकताओं के लगभग 62% की आपूर्ति लघु सिंचाई परियोजनाओं से होती है।
(ख ) वृहत सिंचाई परियोजनाएँ
इनसे 10,000 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्रों की सिंचाई होती है। इसके लिए बड़े बांध बनाकर नहरे निकाली जाती हैं। बड़ी व मध्यम परियोजना से देश की 38% सिंचाई आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
(ग ) बहुद्देशीय परियोजनाएँ
बहुद्देशीय परियोजनाएँ सिंचाई की सुविधा के अलावा बाढ़ नियंत्रण, पेयजल आपूर्ति, जलविद्युत उत्पादन, नहरी परिवहन, पर्यटन आदि अनेक सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। भारत की कुछ प्रमुख बहुद्देशीय परियोजनाएँ निम्न हैं —
(1) दामोदर घाटी बहुद्देशीय परियोजना
यह स्वतंत्र भारत की प्रथम बहुद्देशीय परियोजना है। झारखंड और पश्चिम बंगाल राज्यों में फैली दामोदर घाटी की संयुक्त राज्य अमेरिका की टेनेसी घाटी परियोजना (1933 ) के आधार पर संयुक्त विकास के लिए 1948 में दामोदर घाटी निगम ( DVC – Damodar Valley Corporation ) की स्थापना की गई |
दामोदर नदी छोटा नागपुर की पहाड़ियों से निकलकर पश्चिम बंगाल में हुगली नदी से मिल जाती है। इसमें तिलैया, कोनार, मैथान तथा पंचेत पहाड़ी पर बांध बनाए गए हैं और बाकारो, दुर्गापुर, चन्द्रपुर तथा पतरातू में ताप विद्युत गृहाँ का निर्माण किया गया है।
(3) भाखड़ा नांगल बहुद्देशीय परियोजना
पंजाब-हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी पर बनाई गई यह देश की सबसे बड़ी बहुद्देशीय परियोजना है। भाखड़ा बांध संसार का सबसे ऊँचा गुरुत्वीय बांध (226 मीटर) है।
इस बांध के पीछे बनी झील का नाम गोविन्द सागर झील (हिमाचल प्रदेश) है। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली को इस बहुद्देशीय परियोजना का लाभ मिला है।
(3) रिहन्द बांध परियोजना
यह उत्तर प्रदेश में सोन घाटी में उसकी सहायक नदी रिहन्द पर बनाया गया है। इस बांध के पीछे ‘गोविन्द बल्लभ पन्त सागर’ नामक एक कृत्रिम झील बनायी गयी है, जो भारत की सबसे बड़ी कृत्रिम झील है। यह मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित है।
(4) हीराकुंड बाँध बहुद्देशीय परियोजना
यह उड़ीसा में संभलपुर के निकट महानदी पर बनाया गया है। यह संसार का सबसे लंबा बांध है।
(5) गंडक परियोजना
यह परियोजना नेपाल के सहयोग से पूरी की गई है। इसमें मुख्य नहर गंडक पर बननी वाल्मिकी नहर है |
(6) कोसी परियोजना
यह बिहार राज्य में नेपाल के सहयोग से पूरी की गई है। विनाशकारी बाढ़ों के कारण कोसी को ‘बिहार का शोक’ कहा जाता है। यह परियोजना कोसी नदी में आने वाली बाढ़ के प्रकोप को नियंत्रित करती है | मुख्य नहर कोसी पर बने हनुमान नगर बैराज (नेपाल) से निकाली गई है।
(7) इंदिरा गाँधी (राजस्थान नहर) परियोजना
इस परियोजना में रावी और व्यास नदियों का जल सतलुज नदी में लाया गया है। व्यास नदी पर पोंग नामक बांध बनाया गया है | पोंग बांध के पीछे एकत्रित जल को इंदिरा गांधी नहर के माध्यम से राजस्थान के अनेक भागों तक पहुंचाया जाता है | इसका मुख्य उद्देश्य नए क्षेत्रों को सिंचित करके कृषि योग्य बनाना है |
यह संसार की सबसे लंबी नहर है, जिससे उत्तर पश्चिमी राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर तथा जैसलमेर जिलों की सिंचाई की जा सकती है। मुख्य नहर को इंदिरा नहर के नाम से जाना जाता है।
(8) चंबल परियोजना
यमुना की सहायक चम्बल नदी के जल का उपयोग करने के लिए मध्य प्रदेश व राजस्थान में यह परियोजना संयुक्त रूप से बनाई गई है। इस परियोजना के अंतर्गत मध्य प्रदेश में गाँधी सागर बांध तथा राजस्थान में राणा प्रताप सागर बांध, जवाहर सागर बांध तथा कोटा बैराज बनाए गए हैं। इस बहुद्देशीय परियोजना का प्रमुख उद्देश्य चंबल नदी की द्रोणी में मृदा को उपजाऊ बनाना है।
(9) नागार्जुन परियोजना
यह आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी पर बनायी गई है। बौद्ध विद्वान नागार्जुन के नाम पर इसका नाम ‘नागार्जुन सागर’ रखा गया।
(10) तुंगभद्रा परियोजना
यह बाँध आन्ध्र प्रदेश तथा कर्नाटक राज्यों के सहयोग से कृष्णा की सहायक तुंगभद्रा नदी पर मल्लपुरम के निकट बनाया गया है।
(11) मयुराक्षी परियोजना
छोटा नागपुर पठार के उत्तर-पूर्वी भाग की एक छोटी नदी मयुराक्षी पर मेंसजोर नामक स्थान पर बांध बनाकर झारखंड को बिजली से और पश्चिम बंगाल को सिंचाई की नहरों से लाभान्वित किया जा रहा है। इसे ‘कनाडा बांध’ भी कहते हैं।
(12) शरावती परियोजना
इस परियोजना के द्वारा कर्नाटक में भारत के सबसे ऊँचा जोग प्रपात या गाँधी जलप्रपात पर बनाया गया है। यहाँ से बंगलुरू के औद्योगिक क्षेत्र तथा गोवा और तमिलनाडु राज्यों को भी बिजली भेजी जाती है |
(13) कोयना परियोजना
यह परियोजना महाराष्ट्र में कृष्णा की सहायक नदी कोयना पर है। मुम्बई-पुणे औद्योगिक क्षेत्र को यहीं से बिजली भेजी जाती है।
(14) बगलिहार परियोजना
यह जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर 450 मेगावाट की जल-विद्युत परियोजना है। इस बांध के निर्माण को पाकिस्तान 1960 ईस्वी के सिंधु जल समझौते का उल्लंघन मानता है।
यह समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुआ था, जिसने हाल ही में भारत के पक्ष को स्वीकार करते हुए बांध की ऊंचाई 1 मीटर घटाने को कहा है।
(15) किशनगंगा परियोजना
यह जम्मू-कश्मीर में झेलम नदी पर 330 मेगावाट की जल-विद्युत परियोजना है। भारत झेलम नदी की इस शाखा के जल को दूसरी शाखा में भेजना चाहता है।
इसके लिए 21 कि.मी. लंबी भूमिगत सुरंग बनाने की भारत की योजना है। पाकिस्तान इसे 1960 ईस्वी के सिंधु जल समझौते का उल्लंघन मानता है।
(16) केन-बेतवा लिंक परियोजना
इसका शुभारंभ 25 अगस्त, 2005 को प्रायद्वीपीय नदी विकास योजना के अंतर्गत किया गया है। अमृत क्रांति के नाम से शुरू की गई यह योजना देश ककी प्रमुख नदियों को जोड़ने की दिशा में एक सफल पहल है।
यह अन्य राज्यों को अपने जल विवाद निपटारे हेतु प्रेरित करेगी। उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश की इस संयुक्त परियोजना में केन व बेतवा नदियों को जोड़ा जाएगा, जिसे दोनों राज्यों के पानी की कमी वाले कई क्षेत्रों को पेय जल व सिंचाई के लिए पर्याप्त जल उपलब्ध हो सकेगा | 4263 करोड़ लागत की इस परियोजना से 8.87 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई होगी और 72 मेगावाट विद्युत उत्पादन होगा |
दोनों नदियों को जोड़ने के लिए 73 मीटर ऊँचा बांध व 231 किलोमीटर लंबी नहर निकली जाएगी । लिंक नहर बेतवा नदी पर बने बरवा सागर जलाशय में मिल जाएगी।
(17) सरदार सरोवर परियोजना
सरदार सरोवर परियोजना मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात व राजस्थान की संयुक्त परियोजना है, जो नर्मदा व उसकी सहायक नदियों पर बनाई जा रही है। इस परियोजना में कुल 30 बड़े, 135 मध्यम, व 3000 लघु
बांध बनाए जा रहे हैं। 30 बड़े बांधों में से 6 बहुउद्देशीय, 5 जलविद्युत व 19 सिंचाई परियोजनाएँ हैं।
इन मुख्य बांधों में 10 नर्मदा नदी पर व 20 उसकी सहायक नदियों पर बनाए जा रहे है। नर्मदा नदी के कुल अपवाह क्षेत्र का 86% मध्य प्रदेश में, 12% महाराष्ट्र में और 2% गुजरात में है।
नर्मदा और सहायक नदियों का कुल अपवाह क्षेत्र, सतलुज, रावी व व्यास नदियों के कुल अपवाह से अधिक है। पूर्ण होने के पश्चात यह परियोजना भारत का सबसे बड़ा कमान क्षेत्र विकसित करेगी।
(18) टिहरी बहुद्देशीय परियोजना
उत्तराखंड में भागीरथी व भिलांगना नदी के संगम पर यह विश्व का सबसे ऊँचा चट्टान आपूरितबांध होगा। इस परियोजना से प्रथम चरण में 1000 मेगावाट तथा द्वितीय चरण में 1400 मेगावाट अर्थात कुल 2400 मेगावाट बिजली का उत्पादन संभव होगा।
बाढ़ नियंत्रण के साथ इस परियोजना से मत्स्य पालन एवं नहरी परिवहन की सुविधा भी उपलब्ध होगी | क्षेत्र में आधारभूत संरचना का विकास होगा, रोजगार को बढ़ावा मिलेगा व विभिन्न प्रकार के विकास कार्यों को प्रगति मिलेगी |
इस प्रकार हम देखते हैं कि बहुद्देशीय परियोजनाएँ एक साथ कई सुविधाएँ उपलब्ध कराती हैं | वास्तव में बहुद्देशीय परियोजनाएँ किसी भी देश के विकास का मार्ग प्रशस्त करती हैं |
यह भी देखें
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : हिमालय पर्वत
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : विशाल उत्तरी मैदान
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : प्रायद्वीपीय पठार
भारत के प्राकृतिक प्रदेश : तटीय मैदान तथा द्वीप समूह
भारत की नदियाँ व उनका अपवहन क्षेत्र
भारत में बाढ़ और अनावृष्टि के प्रमुख कारण
भारत की मिट्टियां : विभिन्न प्रकार, विशेषताएँ व वितरण
भारतीय वन, राष्ट्रीय उद्यान व जीव अभयारण्य क्षेत्र
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