( Aadikal Ki Paristhitiyan )
हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है : आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | मध्यकाल को भक्तिकाल और रीतिकाल में बांटा जा सकता है |
आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 तक, भक्तिकाल की समय सीमा संवत 1375 से संवत 1700 तक, रीतिकाल की समय सीमा संवत 1700 से संवत 1900 तक तथा आधुनिक काल संवत 1900 से आगे के काल को माना जाता है |
प्रस्तुत प्रश्न में आदिकाल की परिस्थितियों पर प्रकाश डालना अभीष्ट है |
आदिकाल की परिस्थितियां
अधिकांश विद्वान् आदिकाल की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 स्वीकार करते हैं परन्तु अनेक विद्वान् ऐसे भी हैं जो मानते हैं कि आदिकालीन साहित्य का आविर्भाव सातवीं सदी में हुआ | इसलिए जब हम आदिकालीन परिस्थितियों की चर्चा करते हैं तो 7वीं सदी से 14वीं सदी तक की परिस्थितियों की चर्चा की जाती है |
साहित्य को समाज का दर्पण कहा जाता है | साहित्य समाज को और समाज साहित्य को प्रभावित करता है | युगीन परिस्थितियां साहित्य को प्रभावित करती हैं | जब किसी समाज की परिस्थितियों में परिवर्तन आता है तो उसके साहित्य में भी परिवर्तन अवश्य आता है | इसलिए किसी युग के साहित्य को समझने के लिए उस युग की परिस्थितियों की जानकारी नितांत आवश्यक है | आदिकालीन परिस्थितियों को निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है :
1. राजनीतिक परिस्थितियां
2. सामजिक परिस्थितियां
3.धार्मिक परिस्थितियां
4.सांस्कृतिक परिस्थितियां
5.साहित्यिक परिस्थितियां
(1) राजनीतिक परिस्थितियां : जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ( Ram Chandra Shukla ) ने आदिकालीन युग की समय सीमा संवत 1050 से संवत 1375 मानी है | परन्तु कुछ विद्वान मानते हैं कि आदिकाल की समय सीमा संवत 700 से संवत 1400 तक है अर्थात सातवीं सदी से 14वीं सदी तक आदिकाल की समय सीमा है | अत: हम सातवीं सदी से 14वीं सदी तक की राजनीतिक परिस्थितियों का विवेचन करेंगे |
647 ईo में सम्राट हर्षवर्धन (Harshvardhana ) की मृत्यु हो गई जिसके पश्चात केंद्रीय सत्ता का अंत हो गया | हर्ष के काल में भारत संगठित था परंतु हर्ष की मृत्यु के पश्चात देश खंड-खंड हो गया |राजपूतों और जाटों का संघर्ष बढ़ गया| दूसरी तरफ अरब में इसी समय इस्लाम का उदय हुआ उसका प्रभाव भी भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग पर पड़ने लगा उस समय अफगानिस्तान भारत का ही एक अंग था | मोहम्मद बिन कासिम ( Mohammad Bin Kasim ) ने सिंध पर आक्रमण किया और वहां अपनी सत्ता स्थापित की | अन्य राजाओं ने सिंध के राजा का साथ नहीं दिया | इस प्रकार भारत में इस्लाम का प्रवेश हो गया |
10 वीं सदी में महमूद गजनवी ( Mahmood Gajnavi ) गजनी का राजा बना | 11वीं सदी में गजनवी ने भारत पर बार- बार आक्रमण किए | सन 1025 में गजनवी ने सोमनाथ मंदिर ( Somnath Temple ) पर आक्रमण किया और अपार धन राशि को लूटा | गजनवी के आक्रमणों ने भारत की राजनीतिक स्थिति को और अधिक लचर कर दिया |
11वीं -12वीं सदी में दिल्ली में तोमर (Tomar), अजमेर में चौहान ( Chauhan ) तथा कन्नौज में गहड़वालों (Gahadval ) का शक्तिशाली राज्य था परंतु उनमें एकता का अभाव था | अंदर ही अंदर तीनों ही राज्य एक दूसरे से वैर-भाव रखते थे | 1191 ईo में मोहम्मद गौरी (Mohammad Gauri ) ने पृथ्वीराज चौहान ( Prithviraj Chauchan ) पर आक्रमण कर दिया | पहले प्रयास में गौरी पराजित हुआ परंतु दूसरे प्रयास में 1192 ईस्वी में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया | 1194 ईस्वी में जयचंद ( Jaichand ) को पराजित करके गौरी ने भारत में मुस्लिम सत्ता की स्थापना की | मोहम्मद गौरी के पश्चात सल्तनत काल में गुलाम वंश, खिलजी वंश और तुगलक वंश के शासकों ने शासन किया | इस काल के लगभग सभी शासकों का रुझान केवल साम्राज्य विस्तार की ओर रहा | सभी शासक जनहित के कार्यों से विमुख रहे |
उपरोक्त विवेचन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आदिकालीन राजनीतिक परिस्थितियाँ गृह-कलह से युक्त थी | हिंदू राजाओं में वीरता तो थी परंतु वे पड़ोसी राजाओं से वैर-भाव रखते थे | राष्ट्रीयता संकुचित थे 10-20 गाँवों को ही राष्ट्र मान लिया जाता था |
(2) सामजिक परिस्थितियां:आदिकालीन सामाजिक वातावरण भी अच्छा नहीं था | राजनीतिक परिस्थितियां समाज पर भी बुरा प्रभाव डाल रही थी समाज विभिन्न वर्गों तथा जातियों में पड़ा हुआ था | शूद्रों को समाज में अस्पृश्य समझा जाता था | ब्राह्मणों को समाज में उच्च माना जाता था | समाज के रीति-रिवाजों में कट्टरता थी | ब्राह्मणों के पश्चात समाज में दूसरा स्थान क्षत्रियों का था | कुछ क्षेत्रों में ब्राह्मणों से भी अधिक महत्व क्षत्रियों का था | समाज में तीसरा स्थान वैश्यों का था | इनका मुख्य व्यवसाय व्यापार था |
इस काल में बौद्धों तथा जैनियों ने समाज-सुधार का कार्य किया इन्होंने अछूत तथा नीच समझे जाने वाली जातियों को भी अपनाया | मुसलमानों के आगमन पर भारतीय जातियों के वर्गों में कुछ एकता की भावना आई मगर यह एकता महज राजनीतिक उद्देश्य के लिए थी |
आदिकालीन समाज में नारियों की स्थिति भी दयनीय थी | उसे केवल भोग की वस्तु माना जाता था | सती प्रथा तथा जौहर प्रथा प्रचलित थी | बाल विवाह तथा कन्या वध भी प्रचलन में थे | राजपूत समाज कुलीनता व बलिदान की भावना को महत्त्व देता था | राजपूत नारियां भी बलिदान को महत्व देती थी लेकिन सामान्य नारियों की भांति वे भी बंधनों में बंधी थी उसे समाज की अनेक गलत परम्पराओं के नाम पर शोषण का शिकार होना पड़ता था | राजपूत राजा एक से अधिक रानिया रखते थे और कई बार रानियों के लिए युद्ध भी होते थे | राजपूत समाज में स्वयंवर होते थे लेकिन यही स्वयंवर अक्सर युद्ध का कारण बन जाते थे | मुसलमान भारत में आकर बसे तो हिंदू और मुसलमान एक दूसरे से वैर-भाव रखने लगे | मुसलमानों के आगमन से पहले से खंडित राष्ट्रीय एकता को और धक्का लगा |
अमीर लोगों और राजाओं में बहुपत्नी प्रथा थी | विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार नहीं था |
मुसलमानों के आगमन के पश्चात ये कुरीतियां और अधिक बढ़ने लगी |
(3) धार्मिक परिस्थितियां : राजनीतिक परिस्थितियों में परिवर्तन आने पर धार्मिक परिस्थितियों में भी परिवर्तन आना स्वाभाविक है | सम्राट हर्षवर्धन बौद्ध धर्म का अनुयायी था | इससे हिंदू धर्म को ठेस पहुंची | इसी समय जैन धर्म के प्रति भी लोगों का झुकाव बढ़ने लगा लेकिन अभी भी प्रमुख धर्म हिंदू धर्म ही था |
12वीं सदी में शैव मत व वैष्णव मत जोर पकड़ने लगा | ब्राह्मण धर्म ने जैन धर्म व बौद्ध धर्म को अपने में लीन करने का भरसक प्रयास किया लेकिन इन धर्मों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहा | बौद्ध धर्म व जैन धर्म के आगमन से ब्राह्मण धर्म उदार होने लगा | अब ब्राह्मण धर्म में भी छोटी जातियों को सम्मान मिलने लगा | कालांतर में बौद्ध धर्म हीनयान, महायान, वज्रयान, सहजयान आदि अनेक शाखाओं में बंट गया परंतु फिर भी बौद्ध धर्म ने हिंदू धर्म पर गहरा प्रभाव डाला|
बौद्ध, जैन व हिंदू धर्म में अनेक अंधविश्वास प्रचलित थे | धार्मिक स्थल व्याभिचार , आडंबर और लोभ के क्रीड़ास्थल बन चुके थे |पुजारी और महंत भोग-विलास का जीवन जीने लगे थे | हिंदू धर्म पतन की ओर अग्रसर था |
दूसरी ओर इस्लाम के आगमन से धार्मिक जगत में एक और परिवर्तन आया परंतु अभी भारत में इस्लाम का अधिक प्रचार-प्रसार नहीं हुआ | शंकराचार्य ( Shankaracharya ) और रामानुज ( Ramanuja ) जैसे आचार्यों ने जनजीवन पर गहरा प्रभाव डाला |
इस प्रकार हम देखते हैं कि आदिकाल की धार्मिक परिस्थितियां भी अत्यधिक विषम और प्रतिकूल थी | इन परिस्थितियों के कारण ही इस काल के कवियों ने खंडन मंडन, हठयोग और श्रृंगार परक साहित्य की रचना की है |
(4) सांस्कृतिक परिस्थितियां : सम्राट हर्षवर्धन के काल में भारतीय संस्कृति समृद्ध थी | इस समय भारत पूर्णत: स्वाधीनता था और भारतीयों में एकता की भावना थी | चारों तरफ शांति थी यही कारण है कि इस काल में मूर्तिकला, चित्रकला, संगीत कला व स्थापत्य कला का खूब विकास हुआ परंतु हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात चारों तरफ अशांति व गृह कलह का माहौल हो गया | अतः इन सभी कलाओं का विकास रुक गया | अधिकांश मुसलमान शासक भारतीय कलाओं का सम्मान नहीं करते थे | उन्होंने भारतीय कलाओं को नष्ट करने का प्रयास किया |
महमूद गजनवी ने भारत पर अनेक आक्रमण किए तथा भारतीय मंदिरों में तोड़फोड़ की | मुसलमान शासक मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे | मुस्लिम शासकों के कारण जहां एक ओर मूर्ति कला का विकास अवरुद्ध हो गया वहीं दूसरी ओर वे पुराने हिंदू मंदिरों को नष्ट भ्रष्ट करने लगे |
आपसी कलह व युद्धों के कारण भी मूर्ति कला, स्थापत्य कला व संगीत कला का समुचित विकास न हो पाया |
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आदि काल में मुक्त कलात्मक चेतना विकसित नहीं हो सकी |
(5) साहित्यिक परिस्थितियां : आदिकाल में यद्यपि चारों तरफ अराजकता, अव्यवस्था व अशांति का वातावरण था परंतु फिर भी इस युग में साहित्य-रचना निरंतर हो रही थी | कन्नौज और कश्मीर साहित्य रचना के प्रमुख केंद्र थे | आनंदवर्धन, कुंतक, क्षेमेंद्र, राजशेखर आदि काव्यशास्त्री इस युग में उत्पन्न हुए | संस्कृत के महान कवि जयदेव भी इसी काल में हुए | अपभ्रंश साहित्य में जैन कवियों ने विशेष योगदान दिया | इस काल में अपभ्रंश के साथ-साथ लोक भाषा में भी साहित्य का निर्माण हुआ | इसे हम देशी भाषा कह सकते हैं | सिद्धों और नाथों ने इस देशी भाषा में साहित्य रचना की | देशी भाषाओं में डिंगल, पिंगल, मैथिली और अवहट्ठ भाषाएं शामिल हैं | इन भाषाओं में खुमाण रासो ( दलपति विजय), बीसलदेव रासो ( नरपति नाल्ह ), पृथ्वीराज रासो ( चंदबरदाई) आदि महान ग्रंथों की रचना की | विद्यापति ने मैथिली भाषा में पदावली की रचना की| अमीर खुसरो ने खड़ी बोली में साहित्य रचना की | परंतु संपूर्ण साहित्य का अवलोकन करने पर हम पाते हैं कि अधिकांश साहित्य ‘स्वामिन: सुखाय’ की दृष्टि से ही रचा गया | इस काल के साहित्य में धर्म-उपदेश के साथ-साथ वीर रस व श्रृंगार रस की प्रधानता है |
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आदिकालीन राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक परिस्थितियां काफी विकट थी | राजनीतिक दृष्टि से अराजकता व अव्यवस्था थी | सामाजिक दृष्टि से असमानता थी | धार्मिक दृष्टि से कुछ अनुकूल परिस्थितियां थी | इसी कारण धार्मिक साहित्य में सिद्धों, जैनों व नाथों का साहित्य प्रभावशाली बन पड़ा है | आपसी युद्धों व वैरभाव के कारण वीर रस प्रधान रचनाएं भी अपना प्रभाव छोड़ती हैं | परंतु उनमें से वही रचनाएं बच पाई हैं जो जनसाधारण में लोकप्रिय थी | परंतु कालांतर में उन रचनाओं में इतना कुछ जोड़ा गया कि वे रचनाएं भी संदिग्ध हो गई |
Other Related Posts
आदिकाल : प्रमुख कवि, रचनाएं व नामकरण ( Aadikal ke Pramukh Kavi, Rachnayen Evam Naamkaran )
आदिकाल / वीरगाथा काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ ( Aadikal / Veergathakal Ki Pramukh Visheshtaen )
आदिकाल : नामकरण और सीमा निर्धारण ( Aadikaal Ka Naamkaran aur Seema Nirdharan)
हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल ( Hindi Sahitya Ka Swarn Yug :Bhaktikal )
भक्ति आंदोलन : उद्भव एवं विकास ( Bhakti Andolan : Udbhav Evam Vikas )
संत काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां /विशेषताएं ( Sant Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan )
सूफी काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां ( Sufi Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan )
राम काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां /विशेषताएं ( Rama Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan )
कबीरदास का साहित्यिक परिचय ( Kabirdas Ka Sahityik Parichay )
सूरदास का साहित्यिक परिचय ( Surdas Ka Sahityik Parichay )
सूरदास के पदों की व्याख्या ( बी ए हिंदी – प्रथम सेमेस्टर )
तुलसीदास का साहित्यिक परिचय ( Tulsidas Ka Sahityik Parichay )
7 thoughts on “आदिकाल की परिस्थितियां ( Aadikal Ki Paristhitiyan )”