सूफी आंदोलन ( Sufi Movement )

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement )

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) के सिद्धांत, शिक्षाएं आदि जानने से पूर्व ‘सूफ़ी’ शब्द के अर्थ को जानना आवश्यकता होगा |

‘सूफ़ी’ शब्द का अर्थ

‘सूफ़ी’ शब्द की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों में मतभेद है | अनेक विद्वान् ‘सूफ़ी’ शब्द का अर्थ ज्ञानी यानी विद्वान मानते हैं | कुछ विद्वान मानते हैं की ‘सूफ़ी’ शब्द ‘सफ’ या ‘सफा’ से बना है जिसका अर्थ है – साफ-सुथरा या पवित्र | ‘सफ’ का एक अर्थ पंक्ति भी होता है | यह माना जाता है कि कयामत के दिन पवित्र आचरण वाले लोगों को पंक्ति में खड़ा करके उनका सम्मान किया जाएगा |

कुछ विद्वानों के अनुसार ‘सफ’ शब्द का अर्थ ऊन है | अतः ऊनी कपड़े पहनने वाले संतों को सूफी कहा जाने लगा | कुछ विद्वानों ने ‘सफ’ का अर्थ है चबूतरा माना है | इन विद्वानों के अनुसार सूफी संत मदीना में चबूतरे पर बैठकर धर्म चर्चा किया करते थे |

‘सूफ़ी’ शब्द का चाहे कोई भी अर्थ हो किंतु इतना स्पष्ट है कि सदाचारी और धार्मिक नेताओं को सूफ़ी कहा जाता था |

संक्षेप में उन मुसलमान विचारकों के संप्रदाय को सूफ़ी कहा जाने लगा जो सांसारिक सुख साधनों से दूर रहकर सरल व पवित्र जीवन यापन करते थे तथा परोपकार करना ही अपना धर्म मानते थे |

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) का उदय

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) का उदय सबसे पहले आठवीं सदी में ईरान में हुआ | बसरा और बगदाद इसके प्रमुख केंद्र थे | सूफी आंदोलन शीघ्र ही दो वर्गों में विभाजित हो गया – ‘बा-शरा’ और ‘बे-शरा’ | वे सूफी संत जो इस्लामी विधान को मानकर चलते हैं उन्हें ‘बा-शरा’ कहा जाने लगा तथा जो शरीयत की अवहेलना करते थे, उन्हें ‘बे-शरा’ कहा जाने लगा |

कालांतर में सूफी मत 12 वर्गों में बट गया जिन्हें सिलसिला कहा जाता था | प्रत्येक सिलसिले का एक गुरु होता था | यह गुरु (पीर) बहुत ही पवित्र जीवन बिताता था तथा अपने शिष्यों ( मुरीद ) के साथ खानकाह में रहता था | वह अपने मुरीदों में से एक को अपना वली ( उत्तराधिकारी ) नियुक्त करता था |

सूफी मत के सिद्धान्त (Principles of Sufism)

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) के सिद्धान्तों में एक ईश्वर पर बल, ईश्वर-भक्ति, संयम, प्रेम, अहंकार का नाश, सहनशीलता, गुरु की महिमा, समानता और हिन्दू-मुस्लिम एकता प्रमुख थे। वे इस्लाम के कुछ सिद्धान्तों का विरोध भी करते थे। वे कर्मकाण्ड के विरोधी थे। वे रोजे और व्रत में विश्वास नहीं रखते थे।

कुछ सूफ़ी तो कलमे के पूर्वार्द्ध (पहले भाग) को ही आवश्यक मानते थे और उसी में विश्वास रखते थे। उनके मतानुसार अल्लाह के अतिरिक्त कोई ईश्वर नहीं है। वे अल्लाह-प्राप्ति के लिए पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहब को भी आवश्यक नहीं मानते थे। वे मूर्ति-पूजा के विरोधी थे, परन्तु संगीत और भक्ति के पक्ष में थे।

सूफी मत की शिक्षाएं (Teachings of Sufism)

सूफी मत की प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं —

(1) एकेश्वरवाद (Oneness of God) — सूफी मत के अनुसार ईश्वर एक है। वह सर्वोच्च शक्तिशाली तथा सर्वव्यापक है। वह अमर है तथा आवागमन के चक्कर से मुक्त है | उस सर्वशक्तिमान (अल्लाह) के सिवाय किसी की पूजा नहीं करनी चाहिए।

(2) पूर्ण समर्पण (Completes Devotion) — अल्लाह के समक्ष पूर्ण समर्पण तथा आत्म-त्याग सूफी मत का प्रमुख सिद्धान्त है। प्रत्येक सूफी को सांसारिक मोह-माया तथा इच्छाओं को त्यागकर स्वयं को अल्लाह के समक्ष समर्पित कर देना चाहिए।

(3) पीर (Pir) — पीर या गुरु को सूफी मत में सर्वाधिक महत्व दिया गया है। यह अत्यन्त सादा जीवन व्यतीत करता है तथा अपने मुरीदों (शिष्यों) को रुहानी उन्नति का रास्ता दिखाता है ताकि वे इस संसार रूपी भवसागर से पार होकर अल्लाह में एकाकार हो जाएं।

(4) इबादत, नमाज़ तथा रोजे (Ibadat, Namaz and Rozas) —सूफी अल्लाह की इबादत पर बहुत जोर देते हैं। उनका कहना है कि संसार से मुक्ति के लिए व्यक्ति को अल्लाह की इबादत करनी चाहिए। वे नमाज पढ़ना भी जरुरी मानते हैं। उनके अनुसार नमाज के बारे व्यक्ति अपनी आत्मा की आवाज़ को परमात्मा तक पहुंचा सकता है, किन्तु नमाज सच्चे दिल से पढ़ी जानी चाहिए। व्यक्ति को आत्मा की शुद्धि के लिए रोजे रखने चाहिएं। रोजे का अर्थ केवल खाने-पीने से ही परहेज करना नहीं, अपित समस्त सांसारिक बुराइयों से दूर रहना है।

(5) मानव-जाति से प्रेम (Affections towards Humanity) — मानव-जाति की सेवा करना सूफ़ी अपना कर्तव्य मानते हैं | उनके अनुसार सभी प्राणी एक है अल्लाह की संतान हैं | उनके अनुसार मनुष्य को दीन-दु:खियों की सेवा करनी चाहिए, धार्मिक उदारता अपनानी चाहिए तथा कुप्रथाओं से दूर रहना चाहिए | प्रेम सूफियों का एक महत्वपूर्ण सिद्धान्त है | उनके अनुसार प्रेम के बल पर संसार में सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है |

सूफी आंदोलन के प्रभाव (Effects of Sufism)

सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) के निम्नलिखित प्रभाव पड़े —

(1) सूफी सन्तों के प्रचार के कारण अनेक मुस्लिम शासकों विशेषकर अकबर ने सहनशीलता की नीति को अपनाया।

(2) सूफी मत के प्रचार के कारण हिन्दू और मुसलमान अपने धार्मिक भेदभाव भूल गए। दोनों ही सूफी सन्तों का बड़ा आदर करते थे।

(3) सूफी सन्तों के प्रचार के कारण ही शिया और सुन्नी सम्प्रदायों में आपसी विरोध कम हो गया।

(4) सूफ़ी मत के कारण उर्दू भाषा काफी लोकप्रिय हो गई ।

(5) सूफी सन्तों के उपदेशों ने लोगों को बहुत प्रभावित किया और समाज-सेवा के कार्य आरम्भ हुए। दिल्ली में कुछ मुसलमानों ने भी अनाथ-आश्रम और दानघर खोले।

(6) हिन्दू एवं मुसलमान दोनों ही सूफी सन्तों के अनुयायी थे। उन्होंने सन्तों की समाधियों पर सुन्दर भवन बनवाए। ये समाधियाँ लोगों के लिए तीर्थ-स्थान बन गईं। इस प्रकार नए तीर्थ-स्थानों का विकास हुआ।

(7) सूफी मत( Sufism ) ने भक्ति आन्दोलन को भी प्रभावित किया। दोनों की शिक्षाएं लगभग समान थीं। अतः सूफी मत के प्रचार के कारण भक्ति आन्दोलन को भी प्रोत्साहन मिला।

सूफ़ी सन्तों के प्रयत्नों से भारत में हिन्दू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला। समाज में प्रचलित बुराइयों के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठी। सूफी सन्तों ने दीन-दुखियों की सेवा करके उनके कष्टों को कम किया। विद्वान सूफी सन्तों की शिक्षाओं की बदौलत भाषा तथा साहित्य के साथ-साथ कला (संगीत तथा भवन निर्माण) की भी काफी उन्नति हुई। कई सूफी सन्तों का सुलतानों तथा उनके दरबारियों पर बहुत प्रभाव था। इससे वे गलत कार्यों से अपने-आपको बचा सके।

डॉ० जे० एल० मेहता (Dr. J.L. Mehta) के अनुसार — “सूफी मत ने हिन्दुओं और मुसलमानों के मध्य धार्मिक सहिष्णुता की भावना उत्पन्न की और उसके मध्य सामाजिक तथा सांस्कृतिक मेल-मिलाप की प्रक्रिया को तेज कर दिया।”

भारत में सूफी मत ( Sufism in India )

भारत में सूफी मत ( Sufism ) का आगमन ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी में हुआ। भारत में रहने वाले प्रारम्भिक सूफी सन्तों में अली मखदूम हुजवेरी का नाम प्रसिद्ध है। उसने लाहौर को अपने प्रचार का मुख्य केन्द्र बनाया। प्रारम्भ में पंजाब तथा अजमेर सूफियों के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रचार केन्द्र थे। अकबर के शासनकाल में इन केन्द्रों को बहुत प्रोत्साहन मिला। अबुल फजल तथा फैज़ी, जो कि उसके दरबारी कवि थे, सूफी मत में विश्वास रखते थे। भारत में जो सूफी सिलसिले प्रचलित हुए, उनमें चिश्ती तथा सुहरावर्दी सिलसिले अधिक प्रसिद्ध हुए।

चिश्ती तथा सुहरावर्दी सिलसिले

चिश्ती और सुहरावर्दी दोनों सिलसिले इस्लामी विधान अर्थात शरियत को मानते हैं | भारत में चिश्ती सिलसिले की स्थापना ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती ने की थी। सुहरावर्दी सिलसिले के सबसे पहले प्रसिद्ध सन्त शहाबुद्दीन थे | दोनों सिलसिले शरियत को मानकर चलते हैं । इन दोनों सिलसिलों का 14वीं शताब्दी में बहुत प्रचार हुआ।

दोनों सिलसिला के विचारों में समानताएं होते हुए कुछ मतभेद भी थे | चिश्ती सम्प्रदाय के संत फकीरी जीवन बिताने में विश्वास रखते थे |
सुहरावर्दी संत राज्य की सेवा स्वीकार करते थे | उनमें से कुछ राजदरबार में धर्म विभाग के पदाधिकारी थे |

चिश्ती सिलसिले के लोग धन को आध्यात्म के मार्ग में एक बड़ी बाधा मानते थे। वे । वे संगीत को अधिक महत्व देते थे, जबकि सुहरावर्दी संगीत के विरोधी थे। चिश्तियों ने गैर-मुस्लिमों के प्रति उदारता का भाव अपनाया, जबकि सुहरावर्दी इतने खुले विचारों के नहीं थे।

भारत के कछ प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त

भारत में रहने वाले कुछ प्रसिद्ध सूफी सन्त निम्नलिखित हैं —

(1) दाता गन्ज बख्श — भारत में रहने वाले सूफी सन्तों में से दाता गन्ज बड़ा बहुत प्रसिद्ध थे। वे गज़नी से भारत आए थे | उन्होंने लाहौर में अपना निवास स्थान बनाया | वे एक महान विद्वान थे। उन्होंने मुस्लिम धर्म से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थों की रचना की ‘खश-उल-महजूब’ उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रन्थ था। सन 1089 ई० में लाहौर में उनकी मृत्यु हुई | लाहौर में उनका मकबरा बनाया गया जो सूफ़ी तीर्थ के रूप में विख्यात हुआ |

(2) ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती — ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय सूफ़ी संत हुए | वे 1192 ई० में ईरान से भारत आए। वे भारत में चिश्ती सिलसिले के संस्थापक थे। वे अजमेर में बस गए। उन्होंने अल्लाह और मनुष्यों में भ्रातृ-प्रेम जगाने का प्रयास किया। वे निर्धनों तथा जरुरतमन्द लोगों की निरन्तर सेवा करते रहते थे, जिस कारण लोग प्रेम से उन्हें ‘गरीब नवाज़’ कहकर पुकारते थे। 1236 ई० में उनका निधन हो गया। अजमेर में उनका बहुत बड़ा मकबरा बनाया गया, जो बहुत ही प्रसिद्ध है।

(3) शेख कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी — वे मुईनुद्दीन चिश्ती के प्रसिद्ध शिष्य थे। वे भारत में फरगना से आए थे और दिल्ली में बस गए। उस समय के सुलतान इल्तुतमिश ने उनका स्वागत किया और प्रार्थना की कि वे महल के समीप खानकाह बनाएं, परन्तु ‘काकी’ राजनीति से दूर रहना चाहते थे। इल्तुतमिश ने उन्हें ‘शेख-उल-इस्लाम’ के उच्च पद की सेवा करने के लिए कहा, परन्तु उन्होंने इन्कार कर दिया। कई लोग उनसे ईर्ष्या रखने लगे। इसी कारण ‘काकी’ ने दिल्ली छोड़ने का फैसला किया, परन्तु लोगों के असीम प्रेम और आदर-भाव ने उन्हें दिल्ली वापिस बुला लिया। सन 1235 ई० में उनका देहांत हो गया। दिल्ली का कतुबमीनार उनकी स्मृति में बनवाया गया |

(4) शेख फरीद — वे बाबा फरीद के नाम से अधिक जाने जाते थे | वे बख्तियार काकी के प्रसिद्ध शिष्य थे। उनकी गणना चिश्ती परम्परा के प्रसिद्ध सूफी सन्तों में की जाती है। उनके प्रचार का मुख्य केन्द्र अजोधन (पकपटन) था। उन्होंने लोगों को पारस्परिक प्रेम का पाठ पढ़ाया | उनकी शिक्षाएं सिख ग्रंथों में भी संकलित हैं | अजोधन में रहते हुए 1265 ईस्वी में उनका देहांत हो गया |

(5) शेख निजामुद्दीन औलिया — शेख निजामुद्दीन औलिया शेख फरीद के शिष्य थे | वे भारत के प्रसिद्ध सूफ़ी संत थे | वे अनुयायियों में ‘सुल्तान-उल-औलिया‘ तथा ‘महबूब-ए-इलाही’ के नाम से विख्यात हुए | अमीर खुसरो उनके प्रसिद्ध शिष्य थे | उनकी दरगाह दिल्ली में है जो आज भी हिंदुओं तथा मुसलमानों के लिए एक प्रसिद्ध धार्मिक तीर्थ है |

संक्षेप में कहा जा सकता है कि सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) का संबंध है इस्लामी रहस्यवाद से है | उनके सिद्धांत परंपरावादी मुसलमानों से भिन्न हैं | सूफी संतों के उदारवादी विचारों ने इस्लाम को प्रतिष्ठा दिलाई तथा हिंदू मुस्लिम एकता का मार्ग प्रशस्त किया | कुछ विद्वान तो यहां तक मानते हैं कि सूफी आंदोलन के परिणाम स्वरुप ही भारत में भक्ति आंदोलन विशेषत: निर्गुण भक्ति धारा का प्रादुर्भाव हुआ | यह सही है कि कबीर, नानक आदि निर्गुण संतों के विचार सूफी संतों से अवश्य मिलते हैं परंतु यह कहना कि भारत में रहस्यवाद तथा भक्ति आंदोलन का विकास सूफी आंदोलन के परिणाम स्वरुप हुआ, अनुचित होगा | नि:संदेह निर्गुण संतों पर सूफी आंदोलन ( Sufi Movement ) का कुछ प्रभाव अवश्य रहा होगा |

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यह भी देखें

सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization )

वैदिक काल ( Vaidik Period )

गुप्त काल : भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल

सल्तनतकालीन कला और स्थापत्य कला

मुगल वंश / Mughal Vansh ( 1526 ई o से 1857 ईo )

मौर्य वंश ( Mauryan Dynasty )

चोल वंश ( Chola Dynasty )

महाजनपद काल : प्रमुख जनपद, उनकी राजधानियां, प्रमुख शासक ( Mahajanpad Kaal : Pramukh Janpad, Unki Rajdhaniyan, Pramukh Shasak )

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