प्लेटो की काव्य संबंधी मान्यताएँ

प्लेटो (Plato) प्राचीन ग्रीस के महान दार्शनिक थे, जो सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु थे। वे पश्चिमी दर्शन के प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्होंने कई दार्शनिक ग्रंथ लिखे, जिनमें “रिपब्लिक” (Republic), “फैड्रस” (Phaedrus), “आयोन” (Ion) और “पोएटिक्स” (Poetics, जिसे अरस्तू ने आगे बढ़ाया) प्रमुख हैं।

प्लेटो की काव्य सम्बन्धी मान्यताएँ

उनकी काव्य सम्बन्धी विचारधारा मुख्य रूप से उनकी पुस्तक “Republic” (गणराज्य) के द्वितीय , तृतीय और दशम खंडों में मिलती है। उन्होंने काव्य और विशेष रूप से महाकाव्य और नाटक (विशेष रूप से होमर और त्रासदी नाटकों) की आलोचना की। प्लेटो के अनुसार

(1) काव्य अनुकरण है – उन्होंने कहा कि काव्य वास्तविकता का केवल अनुकरण (Imitation) है और इसलिए यह सत्य से दूर होता है। प्लेटो के अनुसार जैसे चित्रकार किसी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाता है वैसे ही कवि वास्तविकता की नकल करता है | अतः उसकी रचना सत्य से दूर होती है |

(2) काव्य भावनाओं को भड़काता है – प्लेटो का मानना था कि कविता मानव मन की भावनाओं को उद्दीप्त करती है और इसे तर्कसंगत सोच से दूर ले जाती है। उनके अनुसार कविता वास्तविक ज्ञान से दूर ले जाती है |

(3) काव्य नैतिक रूप से हानिकारक हो सकता है – उन्होंने कहा कि मिथकों और नाटकों में देवताओं और नायकों को अनैतिक कार्य करते दिखाया जाता है, जिससे यह समाज और विशेष रूप से युवाओं पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।

(4) कवि को गणराज्य से निष्कासित किया जाना चाहिए – प्लेटो ने अपनी “आदर्श राज्य” की परिकल्पना में कहा कि कवियों को गणराज्य से बाहर कर देना चाहिए क्योंकि वे तर्क और ज्ञान की बजाय भावनाओं को बढ़ावा देते हैं।

(5) काव्य आत्मा को कमजोर करता है — प्लेटो के अनुसार, काव्य मानव आत्मा के तर्कसंगत भाग को कमजोर कर देता है और उसे भावनाओं के अधीन कर देता है।

महाकाव्य (Epic) और त्रासदी (Tragedy) जैसी विधाएँ मनुष्य में करुणा, भय, क्रोध जैसी भावनाओं को बढ़ाती हैं, जिससे वे तर्कशीलता खो देते हैं।

(6) काव्य और ईश्वर — प्लेटो ने कहा कि यदि काव्य ईश्वर या देवताओं को अनैतिक रूप में प्रस्तुत करता है, तो वह गलत है।

उन्होंने कहा कि देवताओं को ऐसा दिखाना कि वे क्रूर या कपटी हैं, समाज में गलत मूल्य स्थापित करता है।

(7) काव्य और दर्शन — प्लेटो ने यह स्वीकार किया कि यदि काव्य में दर्शन (Philosophy) का समावेश हो, तो वह उपयोगी हो सकता है। अरस्तू के अनुसार आदर्श काव्य वह है जो ज्ञान, नैतिकता और सत्य को बढ़ावा दे |

(7) काव्य का शिक्षा और समाज पर प्रभाव — प्लेटो ने स्वीकार किया कि यदि काव्य नैतिक और शिक्षाप्रद हो तो यह समाज और शिक्षा के लिये उपयोगी हो सकता है | उन्होंने ऐसे काव्य का समर्थन किया जो नागरिकों में नैतिकता और सद्गुगुणों को बढ़ावा दे |

हालाँकि, उन्होंने काव्य के कुछ सकारात्मक पहलुओं को भी स्वीकार किया, विशेष रूप से यदि वह नैतिक शिक्षा को बढ़ावा देती हो।

निष्कर्ष

प्लेटो की काव्य-दृष्टि कला की नैतिकता और उसके सामाजिक प्रभाव पर आधारित थी। उन्होंने काव्य को तर्कसंगतता के विपरीत माना | उनकी इस आलोचना को अरस्तू ने अपनी पुस्तक “Poetics” में चुनौती दी | अरस्तू ने प्लेटो की विचारधारा का विरोध करते हुए काव्य को न्यायसंगत ठहराया और उसकी महत्ता को स्वीकार किया।

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