वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा के रूप में हिंदी की वर्तमान स्थिति उपलब्धियाँ व चुनौतियाँ

हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी साहित्य का विकास पिछले कुछ दशकों में उल्लेखनीय रहा है। भारत सरकार और विभिन्न संस्थानों जैसे केंद्रीय हिंदी संस्थान, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (CSTT), और भारतीय मानक ब्यूरो ने हिंदी में तकनीकी शब्दावली को मानकीकृत करने और समृद्ध करने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। तकनीकी विषयों जैसे भौतिकी, रसायन विज्ञान, इंजीनियरिंग, और सूचना प्रौद्योगिकी पर हिंदी में पुस्तकें, पत्रिकाएँ और शोध पत्र प्रकाशित हो रहे हैं।

वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के रूप में हिंदी के विकास की निम्नलिखित प्रमुख उपलब्धियाँ हैं:

(1) शब्दावली का मानकीकरण: वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग (CSTT) ने हजारों वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दों का हिंदी में निर्माण और मानकीकरण किया है, जैसे “संगणक” (कंप्यूटर), “अंतर्जाल” (इंटरनेट), और “नैनोप्रौद्योगिकी” (नैनोटेक्नोलॉजी), जो शिक्षा और संचार में उपयोग हो रहे हैं।

(2) हिंदी में तकनीकी शिक्षा: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत हिंदी माध्यम में विज्ञान, इंजीनियरिंग, और चिकित्सा जैसे विषयों की पाठ्यपुस्तकें और शिक्षण सामग्री विकसित की गई हैं, जिससे स्कूलों और विश्वविद्यालयों में तकनीकी शिक्षा सुलभ हुई है।

(3) डिजिटल सामग्री की उपलब्धता: हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी सामग्री ब्लॉग, यूट्यूब चैनल और ऑनलाइन पाठ्यक्रमों के माध्यम से व्यापक रूप से उपलब्ध है, जो जटिल अवधारणाओं को सरल भाषा में समझाने में सहायक है।

(4) प्रकाशन और अनुसंधान: हिंदी में वैज्ञानिक पत्रिकाएँ, जैसे “विज्ञान गंगा” और “विज्ञान प्रगति”, साथ ही तकनीकी पुस्तकों का प्रकाशन बढ़ा है, जो हिंदी भाषी पाठकों और शोधकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

(5) भाषा प्रौद्योगिकी में प्रगति: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और मशीन अनुवाद उपकरणों ने हिंदी में तकनीकी सामग्री के अनुवाद और निर्माण को आसान बनाया है, जिससे वैज्ञानिक दस्तावेजों और तकनीकी लेखों की गुणवत्ता और पहुँच में सुधार हुआ है।

चुनौतियाँ

वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा के रूप में हिंदी के समक्ष निम्नलिखित प्रमुख चुनौतियाँ हैं:

(1) अंग्रेजी का प्रभुत्व: तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में अंग्रेजी की व्यापक स्वीकार्यता और उपयोग के कारण हिंदी शब्दों, जैसे “संगणक” या “अंतर्जाल”, का रोजमर्रा में कम प्रयोग होता है, जिससे हिंदी की शब्दावली का प्रसार सीमित है।

(2) उच्च स्तरीय सामग्री की कमी: उन्नत वैज्ञानिक और तकनीकी विषयों, जैसे क्वांटम भौतिकी या कृत्रिम बुद्धिमत्ता, पर हिंदी में गुणवत्तापूर्ण शोध पत्र और पाठ्यपुस्तकों की उपलब्धता अभी भी अपर्याप्त है।

(3) प्रशिक्षित विशेषज्ञों की कमी: जटिल वैज्ञानिक और तकनीकी अवधारणाओं को हिंदी में सटीक और सरल रूप से प्रस्तुत करने के लिए कुशल अनुवादकों, लेखकों और शिक्षकों की कमी एक बड़ी बाधा है।

(4) शब्दावली की स्वीकार्यता: कई मानकीकृत हिंदी तकनीकी शब्द जनमानस और पेशेवरों के बीच लोकप्रिय नहीं हो पाए हैं, क्योंकि अंग्रेजी शब्दों का उपयोग अधिक सुविधाजनक और प्रचलित माना जाता है।

(5) सांस्कृतिक और सामाजिक मानसिकता: तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में अंग्रेजी को प्रगति और वैश्विकता का प्रतीक मानने की मानसिकता हिंदी के उपयोग को हतोत्साहित करती है, जिससे हिंदी माध्यम की शिक्षा और सामग्री को कम प्राथमिकता मिलती है।

निष्कर्ष: हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी भाषा का उपयोग बढ़ रहा है, लेकिन यह अभी भी विकास के चरण में है। मानकीकरण, शिक्षा, और डिजिटल उपस्थिति में प्रगति के बावजूद, अंग्रेजी के प्रभुत्व और सामग्री की सीमित उपलब्धता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। नीतिगत समर्थन, तकनीकी नवाचार, और सामाजिक जागरूकता के साथ हिंदी वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्र में एक मजबूत माध्यम बन सकती है।

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