खंडकाव्य : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं ( तत्त्व ) व स्वरूप ( Khandkavya : Arth, Paribhasa, Visheshtayen V Swaroop )

भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के प्रमुख रूप से दो भेद हैं – दृश्य काव्य तथा श्रव्य काव्य | शैली के आधार पर श्रव्य काव्य के तीन भेद माने गए हैं – पद्य, गद्य और चंपू | पद्य के पुनः दो भेद हैं – प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्य | प्रबंध काव्य के भी दो भेद हैं – महाकाव्य और खंडकाव्य | लेकिन संस्कृत काव्यशास्त्रीय ग्रंथों में महाकाव्य के समान खंडकाव्य का अधिक विवेचन नहीं मिलता | भामह और दंडी ने तो खंडकाव्य का उल्लेख तक नहीं किया | आचार्य रूद्रट ने प्रबंध काव्य के दो भेद माने हैं – महाकाव्य और लघुकाव्य | ‘लघुकाव्य’ से उनका अभिप्राय संभवत: ‘खंडकाव्य’ से ही था |

खंडकाव्य का अर्थ, परिभाषा एवं स्वरूप

‘खंडकाव्य’ काव्य की एक महत्वपूर्ण विधा है | इसमें जीवन के किसी महत्त्वपूर्ण अंश या घटना का कलात्मक ढंग से वर्णन किया जाता है | सभी देशों और भाषाओं के आचार्यों ने इसके स्वरूप पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है | खंडकाव्य के सही स्वरूप को जानने से पूर्व भारतीय तथा पाश्चात्य विद्वानों के महाकाव्य संबंधी मतों को जानना आवश्यक होगा |

(ख ) संस्कृत विद्वानों के खंडकाव्य-संबंधी मत

🔹 आचार्य रूद्रट ने महाकाव्य के साथ-साथ लघुकाव्य का उल्लेख भी किया है | महाकाव्य तथा लघुकाव्य का अंतर स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है – “लघु काव्य का उद्देश्य चतुर्वर्ग-फल प्राप्ति में से किसी एक फल की प्राप्ति होती है | उसमें अनेक रस असमग्र रूप से होते हैं अथवा कोई एक रस ही पूर्ण रूप में निष्पन्न होता है | लेकिन महाकाव्य में चारों फलों की प्राप्ति के उद्देश्य के साथ-साथ अनेक फलों की पूर्ति होती है |”

🔹 आचार्य आनंदवर्धन ने अपने ग्रंथ ‘ध्वन्यालोक’ में कहीं भी ‘खंडकाव्य’ शब्द का उल्लेख नहीं किया | उन्होंने प्रबंध काव्य के लिए ‘सर्गबद्ध’ शब्द का प्रयोग अवश्य किया है लेकिन इस शब्द का प्रयोग महाकाव्य के लिए ही किया गया है |

🔹 आचार्य विश्वनाथ पहले आचार्य हैं जिन्होंने खंडकाव्य की अपने ग्रंथ ‘साहित्य दर्पण’ में विस्तृत परिभाषा दी है | आचार्य विश्वनाथ के अनुसार – “किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एक कथा का निरूपक पद्य-ग्रंथ, जिसमें सब ध्वनियां न हों काव्य कहलाता है और काव्य के एक अंश का अनुसरण करने वाला खंडकाव्य होता है |”

आचार्य विश्वनाथ द्वारा दी गई एक दूसरी परिभाषा है – “तत्तु घटना प्राधान्यात् खण्डकाव्यमिति स्मृतम्” अर्थात किसी एक घटना विशेष को लेकर लिखा गया काव्य खंड काव्य कहलाता है |”

🔹 पंडित विश्वनाथ प्रसाद दीक्षित अपने ग्रंथ ‘वाङ्ग्मय विमर्श’ में खंडकाव्य के विषय में लिखते हैं – “खंडकाव्य वह है जिसकी रचना महाकाव्य के ही ढंग पर की गई है और जिस में पूर्ण जीवन ग्रहण न कर खंड जीवन ग्रहण किया जाता है | यह खंड जीवन इस प्रकार ग्रहण किया जाता है कि रचना में पूर्ण जीवन प्रतीत होता है |”

🔹 डॉक्टर शंभू नाथ सिंह खंडकाव्य के विषय में लिखते हैं – “सामान्यतः आठ या आठ से अधिक सर्गों वाले प्रबंध काव्य को महाकाव्य और आठ से कम सर्ग वाले काव्य को खंडकाव्य माना जाता है परंतु यह वैज्ञानिक विभाजन नहीं है | महाकाव्य वही प्रबंध काव्य माना जाएगा जिसमें महान उद्देश्य, महान चरित्र, युग जीवन का चित्रण, गरिमामयी और उदात्त शैली आदि महाकाव्य के सभी गुण पाए जाएं | इसके विपरीत जिन में जीवन का खंड दृश्य चित्रित होता है और जो कथावस्तु की लघुता तथा उद्देश्य की सीमाओं के कारण वृहदाकार तथा महान नहीं कहे जाते, खंडकाव्य कहलाते हैं |”

(ख ) पाश्चात्य विद्वानों के खंडकाव्य-संबंधी मत

पाश्चात्य विद्वानों ने महाकाव्य की स्पष्ट परिभाषा दी है | उनके द्वारा प्रतिपादित महाकाव्य का स्वरूप नाटक तथा उपन्यास के बहुत समीप है | मूल अंतर केवल पद्यात्मक तथा गद्यात्मक स्वरूप का है | परन्तु पाश्चात्य विद्वानों ने खंडकाव्य की कहीं भी स्पष्ट चर्चा नहीं की | यदि किसी पाश्चात्य काव्य-रचना में खंड-जीवन का चित्रण है भी तो उसे भी गरिमामयी उदात्त शैली के कारण खंडकाव्य न मानकर महाकाव्य ही मान लिया गया है |

(ग ) हिंदी विद्वानों के खंडकाव्य-संबंधी मत

🔹 डॉ शकुंतल दुबे के अनुसार – “खंडकाव्य उस अनुभूति के स्वरूप की ओर संकेत करता है जिसमें जीवन सम्पूर्ण रूप में कवि को प्रभावित न करके आंशिक या खंड रूप में ही प्रभावित करता है | अत: खंडकाव्य में जीवन का सर्वांगीण चित्रण न होकर किसी एक अत्यंत रोचक एवं मार्मिक पक्ष का उद्घाटन होता है |”

🔹 आचार्य विश्वनाथ ने खंडकाव्य की विस्तृत परिभाषा तो दी है लेकिन संस्कृत की किसी ऐसी रचना का उदाहरण नहीं दिया जिसे खंडकाव्य कहा जा सके फिर भी कालिदास कृत ‘मेघदूत’ को खंडकाव्य कहा जा सकता है | हिंदी में कुछ विद्वान ‘पृथ्वीराज रासो’ को खंडकाव्य कहते हैं क्योंकि उसमें पृथ्वीराज के समग्र जीवन का चित्रण नहीं है परंतु अपनी उदात्त शैली के कारण हम ‘पृथ्वीराज रासो’ को खंडकाव्य न मानकर महाकाव्य मानते हैं | कुछ कवियों ने अपने आश्रयदाताओं को आधार बनाकर कुछ प्रशस्ति काव्य लिखे जिनमें ‘जय सिंह प्रकाश’, ‘शिवराज भूषण’, ‘छत्र प्रकाश’ आदि प्रमुख हैं | इन सभी को खंडकाव्य की श्रेणी में रखा जा सकता है | आधुनिक हिंदी साहित्य में मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित जयद्रथ वध, पंचवटी तथा नहुष, सियाराम शरण गुप्त द्वारा रचित ‘मौर्य विजय’, रामनरेश त्रिपाठी द्वारा रचित ‘पथिक‘, प्रसाद कृत ‘प्रेम-पथिक’निराला कृत ‘तुलसीदास‘ आदि उल्लेखनीय खंडकाव्य हैं |

इसके अतिरिक्त हिंदी में कुछ ऐसे गीतिकाव्य भी मिले हैं जिनमें खंडकाव्य के गुण मिलते हैं | मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘यशोधरा‘ ऐसी ही एक रचना है जिसकी रचना गीति रूप में हुई है और इसमें सर्गबद्धता भी नहीं है | लेकिन खंड जीवन का वर्णन होने के कारण हम इसे खंडकाव्य की संज्ञा भी दे सकते हैं |

खंडकाव्य की विशेषताएं

संस्कृत विद्वानों, पाश्चात्य विद्वानों तथा आधुनिक हिंदी विद्वानों के द्वारा दी गई खंडकाव्य संबंधी परिभाषाओं के पश्चात् खंडकाव्य की निम्नलिखित विशेषताएं उभर कर सामने आती हैं : –

(1) खंडकाव्य में खंड जीवन का चित्रण होता है, संपूर्ण जीवन का नहीं |

(2) खंडकाव्य में प्रायः एक छोटी सी कथा होती है | इसमें प्रासंगिक या उपकथाएं नहीं होती | यह छोटी सी कथा या घटना ही तीव्र गति से अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती है |

(3) खंडकाव्य में प्रायः पाँच से सात सर्ग होते हैं | वैसे इसमें सर्गों का निर्धारण आवश्यक नहीं है फिर भी इसकी कथा सुसंबद्ध तथा सुगठित होनी चाहिए |

(4) खंडकाव्य के कथानक में एकात्मक अन्विति रहती है |

(5) खंडकाव्य में महाकाव्य की भांति विस्तार की स्वतंत्रता नहीं होती | फिर भी इसका आरंभ, मध्य और अंत क्रमशः विकसित होना चाहिए | अंत में चरम विकास के साथ उद्देश्य की प्राप्ति होनी चाहिए |

(6) खंडकाव्य का वर्णित विषय कोई आदर्श चरित्र, जीवन-दर्शन, जीवन-घटना, कोई प्रेरक-प्रसंग आदि हो सकता है |

(7) यद्यपि खंडकाव्य में नायक के वंश, कुल, गौत्र आदि का विस्तार से वर्णन नहीं किया जाता फिर भी नायक में महाकाव्य के नायक जैसे कुछ गुणों का होना नितांत आवश्यक है |

(8) खंडकाव्य में एक से अधिक रसों की सृष्टि हो सकती है परंतु उसमें किसी एक रस की ही प्रधानता होनी चाहिए | शेष रस अंगी रूप में हो सकते हैं |

(9) खंडकाव्य में देशकाल की अधिक योजना नहीं होती | पात्रों की वेशभूषा, हाव-भाव तथा कथा-प्रसंग के द्वारा ही वातावरण को स्पष्ट किया जाता है |

(10) खंडकाव्य में महाकाव्य की भांति छंद-वैविध्य नहीं होता |संपूर्ण खंडकाव्य प्रायः एक ही छंद में रचित होता है परंतु ऐसा कोई निश्चित नियम भी नहीं है | खंडकाव्य में एक से अधिक छंदों का प्रयोग भी हो सकता है |

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