उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

( अभी गीला पड़ा है )

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

सलेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो

और……

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है |

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियां हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित है कविता ‘उषा’ से अवतरित हैं | इसके रचयिता हिंदी के प्रसिद्ध कवि श्री शमशेर बहादुर सिंह ( Shamsher Bahadur Singh ) जी हैं | इस कविता में कवि ने पल-पल आभाएँ बदलते प्रातःकालीन आकाश की सुंदरता का वर्णन किया है |

व्याख्या — प्रातः कालीन आकाश की सुंदरता का वर्णन करते हुए शमशेर बहादुर सिंह ( Shamsher Bahadur Singh ) जी कहते हैं की प्रातःकालीन आकाश शंख के समान नीला दिखाई देता है | प्रातःकालीन आकाश को देखकर ऐसा लगता है जैसे राख से लीपा हुआ चौका अभी गीला पड़ा हो | कहने का भाव यह है कि प्रात:कालीन आकाश की नीलिमा गहरे रंग की होती है क्योंकि गीला चौका सूखे चौके की अपेक्षा अधिक नीले रंग का होता है |

एक अन्य उपमा देते हुए कवि कहता है कि प्रातः कालीन आकाश की कालिमा में जब सूर्य की लालिमा मिलती है तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे काली सिल को लाल केसर से धुल दिया गया हो या ऐसा प्रतीत होता है जैसे किसी ने काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दी हो |

प्रातः कालीन आकाश पल-पल अपनी आभाएँ बदलता रहता है | जब सूर्य की श्वेत किरणें नीले आकाश में पड़ने लगती हैं, तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे नीले जल में नहा रही सुंदरी के गौर वर्णी देह की कांति झिलमिलाते हुए जल में दिखाई दे रही हो | तत्पश्चात सूर्योदय हो जाता है और उषा का जादू टूट जाता है | तात्पर्य यह है कि पूर्णत: सूर्योदय होने से पहले प्रातः कालीन आकाश अत्यंत सुंदर प्रतीत होता है |

अभ्यास के प्रश्न ( उषा : शमशेर बहादुर सिंह / Usha : Shamsher Bahadur Singh )

(1) कविता के किन उपमानों को देखकर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गांव की सुबह का गतिशील शब्दचित्र है?

उत्तर — कविता में वर्णित राख से लीपा हुआ चौका, काली सिल, स्लेट, लाल खड़िया चाक, सरोवर में नहा रही सुंदरी आदि उपमानों से यह पता चलता है कि कवि ने ‘उषा’ कविता में गांव की सुबह का गतिशील शब्द चित्र प्रस्तुत किया है | महानगरों में राख से लीपा हुआ चौका, खड़िया चाक, काली सिल, सरोवर आदि के दर्शन नहीं होते | यह सभी ग्रामीण संस्कृति के प्रतीक हैं | इसके अतिरिक्त यह सभी शब्दचित्र गतिशील हैं क्योंकि प्रातःकाल उठकर चौका लीपना, सरोवर में स्नान करना, बालक को स्लेट पर लिखना सिखाना आदि सभी दृश्य दैनिक-जीवन में एक के बाद एक परिवर्तित होते रहते हैं |

(2) भोर का नभ

राख़ से लीपा हुआ चौका

( अभी गीला पड़ा है )

नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्नों और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को अर्थ देता है | उपर्युक्त पंक्तियों में कोष्ठक से कविता में क्या विशेष अर्थ पैदा हुआ है? समझाइए |

उत्तर — नई कविता में कोष्ठक, विराम चिह्न और पंक्तियों के बीच का स्थान भी कविता को नए अर्थ प्रदान करता है | प्रस्तुत कविता में भी कवि शमशेर बहादुर सिंह जी ने कुछ इसी प्रकार के प्रयोग किए हैं | उपर्युक्त पंक्तियों में ‘अभी गीला पड़ा है’ कोष्ठक में लिखने से अतिरिक्त सूचना प्राप्त होती है | इससे हमें प्रातः कालीन आकाश के गहरे नीले रंग, नमी युक्त तथा पवित्र होने का पता चलता है | राख से लीपा हुआ सूखा चौका भी नीला होता है परंतु गीला चौका सूखे चौके की अपेक्षा अधिक गहरे नीले रंग का होता है और साथ ही नमी युक्त भी होता है | कोष्ठक में यह बात लिखने से ‘गहरे नीले रंग’ और ‘ताजगी’ का अर्थ अधिक स्पष्ट हुआ |

यह भी देखें

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण ( व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न )

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

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सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

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रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी

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