छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहां बोया गया |
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष ;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष | (1)
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ से अवतरित है | इसके कवि उमाशंकर जोशी जी हैं | इन पंक्तियों में कवि ने कवि-कर्म की तुलना किसान-कर्म से की है |
व्याख्या — कवि कहता है कि मैं भी एक किसान की भांति हूँ | कागज का एक चौकोर पन्ना मेरे लिए चौकोर खेत के समान है | जिस प्रकार एक किसान अपने खेत में बीज बोता है ठीक उसी प्रकार जब मेरे मन में भावनाओं की आंधी उठती है तो उस क्षण कोई भाव-विशेष मेरे कागज के पन्ने पर बीज-रूप में पहले मेरे मन में तथा तत्पश्चात कागज रूपी खेत में आरोपित हो जाता है | जिस प्रकार खेत में बोया गया बीज विभिन्न प्रकार के रसायनों, जल, खनिज-लवण आदि को ग्रहण करके पूर्णत: गल जाता है और अंकुरित हो उठता है; उसमें से पत्ते और फूल फूटने लगते हैं | ठीक उसी प्रकार कवि के मन में उत्पन्न हुआ भाव रूपी बीज कल्पना के रसायनों को पीकर कविता रूपी पौधे का रूप धारण कर लेता है | उस कविता में वर्णित सुंदर भाव और उस कविता के शोभा कारक तत्त्व उस कविता रूपी पौधे के सुंदर पुष्प और पत्तों का कार्य करते हैं |
झूमने लगे फल,
रस अलौकिक,
अमृत धाराएँ फूटती
रोपाई क्षण की ,
कटाई अनंतता की
लुटते रहने से जरा भी नहीं कम होती |
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना | (2)
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘छोटा मेरा खेत’ से अवतरित है | इसके कवि उमाशंकर जोशी जी हैं | इन पंक्तियों में कवि ने कवि-कर्म की तुलना किसान-कर्म से की है | कवि के अनुसार साहित्य से मिलने वाला रस अक्षय तथा चिरस्थायी होता है |
व्याख्या – कवि के अनुसार जब कवि के हृदय में आरोपित भाव कविता का रूप धारण कर लेता है तो उस कविता रूपी पौधे पर सुंदर भाव, आकर्षक शब्द चयन व अलंकार रूपी फल झूमने लगते हैं | उससे अमृततुल्य अलौकिक रस-धारा फूटने लगती है | कवि कहता है कि कविता की रचना वास्तव में कवि के मन में किसी विशेष क्षण उत्पन्न हुए भाव से हुई थी अर्थात कविता और उसी फसल की बुवाई केवल एक क्षण में हो गई थी परंतु इसके कटाई अनंत काल तक चलती रहती है कहने का भाव यह है कि साहित्य से जिस आनंद की प्राप्ति होती है वह सदियों तक चलती रहती है | साहित्य-रस को जीतना भी लूटें वह कम नहीं होता ; साहित्य युगों-युगों तक आनंद प्रदान करता रहता है | इसीलिए कवि ने साहित्य को रस का अक्षय पात्र कहा है अर्थात साहित्य चिरस्थायी होता है | यही कारण है कि कवि ने अपने कागज के चार कोनों वाले पन्ने को अपना चौकोना छोटा खेत कहा है |
अभ्यास के प्रश्न ( छोटा मेरा खेत : उमाशंकर जोशी )
(1) छोटे चौकोने खेत को कागज का पन्ना कहने में क्या अर्थ निहित है ? ( छोटा मेरा खेत : उमाशंकर जोशी )
उत्तर — कवि अपने कवि-कर्म को किसान के कर्म के समान बताना चाहता है | इसीलिए उसने कागज के पन्ने को छोटा चौकोना खेत कहा है | जिस प्रकार खेत में बीज बोकर उसमें पानी और रसायन डालकर बीजों को अंकुरित किया जाता है और तत्पश्चात तैयार फसल से फल-फूल प्राप्त होते हैं | ठीक उसी प्रकार कवि भी कागज के पन्ने पर भावनाओं के बीज बोता है जो कल्पना के रसायनों से रचना रूपी पौधे का रूप धारण कर लेते हैं और तत्पश्चात उस रचना रूपी पौधे से सुंदर भावनाओं और अलंकारों रूपी फल-फूल प्राप्त होते हैं |
(2) रचना के संदर्भ में अंधड़ और बीज क्या हैं? ( छोटा मेरा खेत : उमाशंकर जोशी )
उत्तर — अंधड़ का सामान्य अर्थ है -आंधी या तूफान लेकिन रचना के संदर्भ में अंधड़ का अर्थ है – भावनाओं की आंधी | कवि कहना चाहता है कि कई बार कवि के जीवन में कोई ऐसी घटना घटित होती है या उसे कोई ऐसा दृश्य दिखाई देता है कि उसके मन में भावनाओं की उथल-पुथल मच जाती है |
बीज का सामान्य अर्थ है – पौधे का कोई ऐसा भाग जिससे नए पौधे का जन्म हो लेकिन रचना के संदर्भ में बीज का अर्थ है – वह विशेष भाव जिसके आधार पर कवि कविता की रचना करता है | जब कवि कोई ऐसा दृश्य देखता है जिसे देखकर उसके मन में भावनाओं की उथल-पुथल मच जाए तो उन असंख्य भावों में से ही कोई एक भाव बीज बनकर उसके मन में आरोपित हो जाता है जिसके आधार पर वह कविता की रचना करता है |
(3) रस का अक्षय पात्र से कवि ने रचनाकर्म की किन विशेषताओं की ओर इंगित किया है? ( छोटा मेरा खेत चौकोना : उमाशंकर जोशी )
उत्तर — कवि की काव्य रचना को रस का अक्षय पात्र कहा गया है | इसका तात्पर्य यह है कि काव्य-रचना से प्राप्त रस अनंत तथा असीम होता है | अनंत काल तक पाठक उस काव्य-रचना को पढ़कर आनंद प्राप्त कर सकते हैं | पाठक उस रचना से जितना चाहें, जब तक चाहें आनंद प्राप्त कर सकते हैं ; वह आनंद कभी समाप्त नहीं होता |
(4) छोटा मेरा खेत कविता का प्रतिपाद्य / उद्देश्य / मूल भाव या संदेश स्पष्ट करें |
उत्तर — ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कवि-कर्म की तुलना कृषक-कर्म से की है | कवि ने कागज के पन्ने को छोटा चौकाना खेत कहा है | कवि कहता है कि जिस प्रकार से एक किसान अपने खेत में बीज बोकर उसमें पानी और रसायन डालकर अपनी फसल उगाता है और तत्पश्चात उससे फल-फूल प्राप्त होते हैं, ठीक उसी प्रकार से कवि भी भावनाओं के बीज को कल्पना के रसायनों से सिंचित कर काव्य-रचना करता है जिससे सुंदर भावनाओं और अलंकारों रूपी फल-फूल प्राप्त होते हैं | कविता के अंत में कवि कवि-कर्म को कृषक-कर्म से भी श्रेष्ठ बताता है | कवि कहता है कि किसान जिस फसल को उगाता है उसका केवल एक बार प्रयोग किया जा सकता है लेकिन काव्य-रचना से प्राप्त आनंद असीम तथा अनंत होता है | पाठक उससे अनंत काल तक आनंद प्राप्त करते हैं |
यह भी देखें
बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी
आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन
दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन
कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण ( व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न )
बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण
कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय
सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध
उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह
बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )
बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य
कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास
लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास
गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी
रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी
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