भाषा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं स्वरूप

भाषा का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं स्वरूप

भाषा का मूल अर्थ – बोलना या कहना है | साधारण शब्दों में मानव-मुख से निकलने वाली ध्वनियों को भाषा कहा जाता है | लेकिन मानव मुख से निकलने वाली प्रत्येक ध्वनि भाषा नहीं होती | वास्तव में मानव-मुख से निकलने वाली वह सार्थक ध्वनियां जो विचारों या भावों का संप्रेषण करती हैं, भाषा कहलाती हैं |

भाषा विचारों के आदान-प्रदान का मुख्य साधन है | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | इसलिए उसे निरंतर अपने भावों और विचारों को दूसरों तक संप्रेषित करना पड़ता है और दूसरों के भावों और विचारों को ग्रहण करना पड़ता है तभी वह अपने समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर सकता है |

यह सही है कि कुछ भाव केवल संकेतों या शारीरिक चेष्टाओं के द्वारा भी संप्रेषित किए जा सकते हैं परंतु इनसे सामाजिक जीवन के सभी कार्यों का संचालन नहीं हो सकता | अत: भाषा का मानव जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है |

भाषा का अर्थ ( Bhasha Ka Arth )

‘भाषा’ संस्कृत भाषा का शब्द है और इसकी व्युत्पत्ति ‘भाष’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है – बोलना | अंग्रेजी भाषा में ‘भाषा’ के लिए ‘लैंग्वेज’ ( Language ) शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका संबंध लैटिन भाषा के शब्द ‘लिंग्वा’ ( Lingua – चिह्न ) से एवं फ्रांसीसी भाषा के शब्द ‘लांग’ ( Langue – Language ) से है | इस प्रकार ‘लैंग्वेज’ शब्द भी मानवीय बोली का ही वाचक है |

कुछ भाषा वैज्ञानिक ‘भाषा’ शब्द का प्रयोग उन सभी साधनों के लिए करते हैं जिनके द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति हो सकती है परंतु अधिकांश भाषाविद् मानते हैं कि ‘भाषा’ शब्द का प्रयोग मनुष्य की व्यक्त वाणी के लिए ही संगत है |

भाषा की परिभाषा ( Bhasha Ki Paribhasha )

भाषा के स्वरूप को जानने के लिए इसकी परिभाषा पर विचार करना सर्वथा उचित होगा —

1️⃣ महर्षि पतंजलि ने अपने टीका ग्रंथ ‘महाभाष्य’ ( अष्टाध्यायी की टीका ) में लिखा है – “जो वाणी में व्यक्त होती है, वही भाषा है |”

2️⃣ क्षीरस्वामी के शब्दों में – “जो भाषित की जाती है, उसे भाषा कहते हैं |”

3️⃣ कामता प्रसाद गुरु के शब्दों में – “भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों को दूसरों पर भली-भांति प्रकट कर सकता है और दूसरों के विचार आप स्पष्टतया समझ सकता है |”

4️⃣ डॉ भोलानाथ तिवारी के मतानुसार – ‘ भाषा निश्चित प्रयत्न के फलस्वरूप मनुष्य के मुख से निकली वह सार्थक ध्वनि समष्टि है जिसका विश्लेषण और अध्ययन हो सके |”

5️⃣ डॉ देवीशंकर द्विवेदी के अनुसार – “भाषा यादृच्छिक वाक्य-प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके माध्यम से मानव-समुदाय परस्पर व्यवहार करता है |”

6️⃣ ए एच गार्डिनर के अनुसार – “विचारों की अभिव्यक्ति के लिए जिन व्यक्त एवं स्पष्ट ध्वनि-संकेतों का व्यवहार किया जाता है, उन्हें भाषा कहते हैं |”

भाषा की विशेषताएं ( Bhasha Ki Visheshtaen )

भारतीय प्राचीन व आधुनिक विद्वानों तथा पाश्चात्य विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं के आधार पर भाषा की निम्नलिखित विशेषताएं उभरकर सामने आती हैं —

(1) भाषा एक सामाजिक वस्तु है |

(2) भाषा यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है अर्थात किसी अर्थ को अभिव्यक्त करने के लिए निर्धारित किया गया ध्वनि-प्रतीक आरम्भ में मनुष्य की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है परंतु यदि एक बार वह ध्वनि-प्रतीक प्रचलित हो जाता है तो रूढ़ हो जाता है |

(3) भाषा विचारों के आदान-प्रदान का साधन है |

(4) प्रत्येक समाज के ध्वनि-संकेत स्वनिर्मित होने के कारण दूसरे समाज के ध्वनि-संकेतों से अलग होते हैं |

(5) यह ध्वनि संकेत सार्थक होते हैं |

(6) एक ही ध्वनि संकेत भिन्न-भिन्न संदर्भों में भिन्न-भिन्न अर्थ दे सकता है |

उपर्युक्त परिभाषाओं तथा विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि भाषा यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की व्यवस्था है, जिसका निर्माण मनुष्य द्वारा पारस्परिक विचार-विनिमय के लिए किया गया है |

यह भी देखें

शब्द एवं अर्थ : परिभाषा एवं दोनों का पारस्परिक संबंध ( Shabd Evam Arth : Paribhasha Evam Parasparik Sambandh )

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स्वन : अर्थ, परिभाषा, प्रकृति/स्वरूप व वर्गीकरण ( Svan : Arth, Paribhasha, Prakriti /Swaroop V Vargikaran )

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