▪️कुषाण साम्राज्य ( Kushan Vansh ) के ध्वंस अवशेषों पर गुप्त साम्राज्य ( Gupta Empire ) का उदय हुआ। संभवत: ये लोग कुषाणों के सामंत थे जिन्होंने कुषाणों के बाद उनका स्थान ले लिया । लगभग 230 ई० में कुषाण सत्ता समाप्त होने लगी थी । तब मध्य भारत में एक बड़ा भाग शकों के अधीन था जो 250 ई० तक शासन करते रहे । 240ई० में गुप्त वंश ( Gupta Dynasty ) की स्थापना भी हो चुकी थी परंतु श्रीगुप्त सम्भवत: स्वतंत्र शासक नहीं था ।
▪️श्रीगुप्त को गुप्त साम्राज्य का संस्थापक माना जाता है परंतु उसका राज्य केवल पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार में था । वह स्वतंत्र राजा नहीं था । उसने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की । यह उपाधि सामंतों को दी जाती थी ।
▪️इस प्रकार तीसरी सदी ई० में उत्तर भारत में तीन राजवंश सक्रिय थे :
1.मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग में नागवंश
2. ढक्कन में वाकाटक वंश
3. पूर्वी भारत में गुप्त वंश ( Gupta Dynasty )
▪️गुप्त वंशावली का परिचयनिम्नलिखित अभिलेखों में मिलता है :
1.समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति
2.कुमारगुप्त का विलसड अभिलेख ( एटा जिला , उत्तरप्रदेश )
3..स्कन्दगुप्त का भीतरी स्तम्भ लेख ( सैदपुर तहसील , ग़ाज़ीपुर ज़िला , उत्तरप्रदेश )
गुप्त वंशावली
(1) श्रीगुप्त ( 240-280 AD)
(2) घटोत्कच ( 280-320 AD)
(3) चंद्रगुप्त प्रथम ( 320-335 AD)
(4) समुद्रगुप्त ( 335-375 AD )
(5) रामगुप्त ( 375- 380 AD )
(6) चंद्रगुप्त द्वितीय ( 380- 415 AD)
(7) कुमारगुप्त ( 415-455 AD )
(8) स्कंदगुप्त ( 455-467 AD )
परवर्ती शासक : पुरुगुप्त , नरसिंह गुप्त , बालादित्य , कुमारगुप्त द्वितीय , बुद्धगुप्त , भानुगुप्त , हर्षगुप्त , दामोदर गुप्त , महासेन गुप्त आदि ।
▪️छठी सदी के अंत तक गुप्त वंश ( Gupta Dynasty ) लगभग समाप्त हो चुका था ।
श्रीगुप्त ( Shrigupt ) व घटोत्कच ( Ghatotkach )
▪️श्रीगुप्त को गुप्त साम्राज्य का संस्थापक ( Gupt Samrajya Ka Sansthapak ) माना जाता है । उसने 240ई० से 280 ई० तक शासन किया । उसने ‘महाराज’ की उपाधि धारण की जो सामान्यत: सामंतों को प्रदान की जाती थी । सम्भवत: वह राजा के अधीन सामंत था ।
▪️श्रीगुप्त के पश्चात उसका पुत्र घटोत्कच राजा बना । उसने 280 ई० से 320 ई० तक शासन किया । घटोत्कच ने भी महाराज की उपाधि धारण की ।
चन्द्रगुप्त प्रथम ( chandrgupt Pratham )
▪️घटोत्कच के पश्चात उसका पुत्र चंद्रगुप्त प्रथम शासक बना । उसने 320ई० से 335 ई० तक शासन किया ।
▪️उसने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की ।
▪️उसने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी ( Kumardevi ) से विवाह किया और वैशाली राज्य प्राप्त किया ।
▪️320 ई० में चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त संवत ( Gupta Sanvat ) प्रारम्भ किया ।
▪️चन्द्रगुप्त प्रथम ने सोने के सिक्के चलाए जिन पर कुमारदेवी का नाम उत्कीर्ण है । उसने ही सर्वप्रथम चाँदी के सिक्के चलाए ।
समुद्रगुप्त ( Samudragupta )
▪️समुद्रगुप्त चंद्रगुप्त प्रथम तथा कुमारदेवी का पुत्र था । उसने 335 ई० से 375 ई० तक शासन किया ।
▪️समुद्रगुप्त ( Samudrgupt ) को ‘लिच्छवी दौहित्र’ भी कहा जाता है क्योंकि उसकी माता कुमारदेवी लिच्छवी वंश से सम्बंध रखती थी ।
▪️समुद्रगुप्त के जीवन के विषय में जानकारी प्राप्त करने का सर्वप्रमुख स्रोत ‘प्रयाग प्रशस्ति’ है । इसकी रचना समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण ( Harishen ) ने की थी । यह स्तम्भ मूलतः कौशाम्बी में खुदवाया गया था । इसकी भाषा संस्कृत तथा लिपि ब्राह्मी थी । यह संस्कृत की चम्पू शैली का सुंदर उदाहरण है । प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के राज्यारोहण, विजयों व साम्राज्य विस्तार की जानकारी मिलती है ।
▪️ समुद्रगुप्त ने राजा बनने के लिए अपने भाई ‘काच‘ से युद्ध किया था । एक सोने के सिक्के पर ‘काच‘ लिखा मिला है ।
▪️समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत पर दो बार आक्रमण किया । प्रथम आक्रमण में उसने अच्युत , नागसेन तथा कोटकुलवंशीय एक राजा को परास्त किया । उत्तर भारत ( आर्यावर्त ) पर किए अपने दूसरे आक्रमण में उसने नौ राजाओं को पराजित किया ।
▪️दक्षिणापथ अभियान में उसने दक्षिण के 12 राजाओं को पराजित किया ।
▪️शक शासक रूद्रसिंह तृतीय तथा लंका नरेश मेघवर्ण समुद्रगुप्त का समकालीन था ।
▪️प्रसिद्ध इतिहासकार वी० ए० स्मिथ ( V A Smith ) ने समुद्रगुप्त को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा है ।
▪️उसके सिक्कों पर ‘अश्वमेध पराक्रम’ लिखा है । इससे अनुमान लगाया जाता है कि उसने अश्वमेध यज्ञ किया था । उसके उत्तराधिकारियों के अभिलेखों से भी इस तथ्य की पुष्टि हुई है ।
▪️समुद्रगुप्त को ‘कविराज‘ भी कहा जाता है । वह संगीत कला में निपुण था । वह वीणा बजाने में दक्ष था । उसके सिक्कों पर उसे वीणा लिए हुए दिखाया गया है ।
▪️ समुद्रगुप्त विष्णु का उपासक था ।
▪एरण अभिलेख ,प्रयाग प्रशस्ति , नालंदा अभिलेख , गया ताम्र अभिलेख समुद्रगुप्त से सम्बंधित अभिलेख हैं ।
रामगुप्त ( Ramgupt )
▪️समुद्रगुप्त की मृत्यु के पश्चात उसका ज्येष्ठ पुत्र रामगुप्त सिंहासन पर बैठा । उसने 375 ईo से 380 ईo तक शासन किया | वह कायर था । उसने भयभीत होकर अपनी पत्नी ध्रुवदेवी / ध्रुवस्वामिनी को शकराज को भेंट कर दिया था । उसके इस कृत्य से चंद्रगुप्त द्वितीय उससे ख़फ़ा हो गया । उसने स्त्री के वेश में जाकर शकराज का वध कर ध्रुवदेवी/ ध्रुवस्वामिनी को मुक्त कराया । तत्पश्चात उसने अपने भाई रामगुप्त की हत्या कर उसकी पत्नी ध्रुवदेवी से विवाह किया और मगध का शासक बन गया ।
चंद्रगुप्त द्वितीय ( Chandragupt Dvitiya )
▪️रामगुप्त के पश्चात उसका छोटा भाई चंद्रगुप्त द्वितीय राजा बना । उसने 380 ई० से 415 ई० तक शासन किया । समुद्रगुप्त के पश्चात वह गुप्त वंश ( Gupta Dynasty ) का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था ।
▪️ चंद्रगुप्त द्वितीय अपने बड़े भाई रामगुप्त को मारकर मगध का राजा बना ।
▪️विशाखदत्त के ‘देवीचंद्रगुप्तम‘ और बाणभट्ट की ‘हर्षचरित‘ में रामगुप्त का उल्लेख मिलता है ।
▪️चंद्रगुप्त द्वितीय के अन्य नाम ‘देवराज‘ व ‘देवगुप्त‘ भी मिलते हैं ।
▪️शक-विजय के पश्चात चंद्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य‘ की उपाधि धारण की । उसकी अन्य उपाधि ‘शकारी‘ थी ।
▪️ चंद्रगुप्त द्वितीय ने नाग राजकुमारी ‘कुबेरनागा‘ से विवाह किया ।
▪️’उदायगिरी अभिलेख’ से पता चलता है कि चंद्रगुप्त विक्रमादित्य सम्पूर्ण विश्व को जीतना चाहता था ।
▪️ चंद्रगुप्त द्वितीय के सेनापति का नाम ‘आम्रकार्दव‘ था ।
▪️समुद्रगुप्त की भाँति वह भी विष्णु का उपासक था । उसने ‘परमभागवत‘ की उपाधि धारण की । उसका ‘संधिविग्रहिक‘ ( विदेश मंत्री ) शैव था ।
▪️महरौली लौह स्तम्भ का ‘चंद्र‘ वास्तव में चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ही है ।
▪️उसके शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399 ई०-414 ईo ) भारत आया ।
▪️ चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की दो राजधानियाँ थी : पाटलिपुत्र व उज्जैन (उज्जयिनी)
▪️ चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार के नौ रत्न थे : कालिदास , वराहमिहिर , धन्वन्तरि , क्षपणक , अमरसिंह , शंकु , वररूचि , बेतालभट्ट , घटकर्पर ।
▪️चंद्रगुप्त द्वितीय के अभिलेख:
- उदयगिरी गुहा अभिलेख प्रथम
- उदयगिरी गुहा अभिलेख द्वितीय
- मथुरा स्तम्भ लेख
- मथुरा शिलालेख
- साँची अभिलेख
- गढ़वा शिलालेख ( इसमें चंद्रगुप्त द्वितीय को परमभागवत कहा गया है ।
कुमारगुप्त महेंद्रादित्य ( Kumargupt )
▪️कुमारगुप्त चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का पुत्र था । उसने 415 ई० से 455 ई० तक शासन किया । इसके शासन की प्रथम तिथि विलसड़ अभिलेख तथा अंतिम तिथि चाँदी के सिक्कों से मिलती है । उसका शासन शांति तथा समृद्धि के लिए जाना जाता है ।
▪️ कुमार गुप्त कार्तिकेय का उपासक था ।
▪️विलसड अभिलेख या भिलसड अभिलेख उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के भिलसड गाँव में स्थित है । इससे कुमारगुप्त के शासन की आरम्भिक तिथि तथा कुमारगुप्त तक की गुप्त वंशावली मिलती है ।
▪️कुमारगुप्त ने ‘महेंद्रादित्य‘ की उपाधि धारण की व ‘अश्वमेध यज्ञ‘ करवाया ।
▪️चीनी यात्री ह्यूनसांग ने कुमारगुप्त का उल्लेख ‘शुक्रादित्य‘ नाम से किया है ।
▪️कुमारगुप्त ने नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की । (ऑक्सफ़ोर्ड ओफ महायान बौद्ध )
▪️कुमारगुप्त ने सर्वप्रथम मयूर शैली की रजत मुद्राएँ चलाई ।
▪️मन्दसौर अभिलेख में कुमारगुप्त की शासन-व्यवस्था का उल्लेख मिलता है । इसकी रचना वत्सभट्ट ने की थी ।
▪️गुप्त शासकों में सर्वाधिक अभिलेख कुमारगुप्त के मिले हैं ।
▪️स्कन्दगुप्त के भीतरी अभिलेख ( उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले की सैदपुर तहसील ) से पता चलता है कि कुमारगुप्त के शासन के अंतिम दिनों में पुष्यभूतियों( पुष्यमित्रों )का आक्रमण हुआ था जिसको स्कंदगुप्त ने विफल किया ।
स्कन्दगुप्त ( Sakandgupt )
▪️कुमारगुप्त की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र स्कंदगुप्त ज्येष्ठ न होते हुए भी शासक बना । उसने 455 ई० से 467 ई० तक शासन किया ।
▪️ स्कंदगुप्त ने हूणों को परास्त कर ‘विक्रमादित्य‘ की उपाधि धारण की ।
▪️चंदव्याकरण , कथा सरित्सर , स्कंदगुप्त के भीतरी अभिलेख व जूनागढ़ अभिलेख में हूणों पर स्कंदगुप्त की विजय का उल्लेख मिलता है ।
▪️जूनागढ़ अभिलेख से हूणों के आक्रमण व स्कंदगुप्त द्वारा सुदर्शन झील की मरम्मत की पुष्टि होती है । सुदर्शन झील का निर्माण चंद्रगुप्त मौर्य ने करवाया था तथा सम्राट अशोक व रूद्रदमन ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था । झील का पुनरुद्धार सौराष्ट्र के राज्यपाल पर्णदत्त व इसके पुत्र चक्रपालित के निरीक्षण में हुआ ।
▪स्कंदगुप्त गुप्त वंश ( Gupta Dynasty ) का अंतिम शक्तिशाली शासक था । स्कंदगुप्त के बाद के गुप्त शासक अधिक ख्याति हासिल नहीं कर पाए । स्कंदगुप्त के बाद के शासक थे – पुरुगुप्त , नरसिंह गुप्त , बालादित्य , कुमारगुप्त द्वितीय , बुद्धगुप्त , भानुगुप्त , हर्षगुप्त , दामोदर गुप्त , महासेन गुप्त आदि ।
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य
▪️गुप्त वंश के पतन में हूणों के आक्रमणों का बड़ा योगदान था । तोरमाण तथा मिहिरकुल हूणों के प्रमुख योद्धा थे ।
▪️गुप्त साम्राज्य ( Gupta Empire ) में सबसे बड़े अधिकारी ‘कुमारामात्य‘ होते थे जो प्रांतों में नियुक्त किए जाते थे । संधि विग्रहक ( विदेश मंत्री ) , महा संधि विग्रहक ( युद्ध व संधि से सम्बंधित ) , महादंडनायक ( युद्ध व सैनिक सक्रियता ) , दंडपाशिक (पुलिस विभाग ) आदि अन्य पद थे ।
▪️भूमिकर फ़सल का 1/6 भाग था । करों की अदायगी हिरण्य ( नक़द ) तथा मेय ( अनाज ) दोनों रूप में होती थी ।
▪️शिल्पियों को कर के रूप में बेग़ार देना पड़ता था जिसे ‘विष्टि’ कहते थे ।
▪️मंदिरों व ब्राह्मणों को जो भूमि दान में दी जाती थी उसे ‘अग्रहार’ कहा जाता था । यह करमुक्त होती थी ।
▪️️फाह्यान के अनुसार गुप्त काल में अस्पृश्य वर्ग था जो शूद्रों से भिन्न था । उन्हें अन्त्यज या चाण्डाल कहा जाता था ।
▪️व्यापारियों की समिति को ‘निगम‘ कहा जाता था जिसके प्रधान को ‘श्रेष्ठी‘ कहा जाता था ।
▪️गुप्त शासक वैष्णव-धर्म के अनुयायी थे परंतु इस काल में शैव-धर्म का भी विकास हुआ ।
▪️देवगढ़ का मंदिर ( झाँसी ) विष्णु को समर्पित है ।
▪️भर्तृहरि , कालिदास तथा वात्स्यायन गुप्त काल के प्रसिद्ध साहित्यकार थे ।
▪️भर्तृहरि के प्रमुख ग्रंथ ‘नीति शतक’ , ‘शृंगार शतक’ तथा ‘वैराग्य शतक’ हैं ।
▪️अभिज्ञान शाकुन्तलम, मेघदूत , कुमारसम्भव , मालविका अग्निमित्रम आदि कालिदास ( Kalidas ) की प्रमुख रचनाएँ हैं । कालीदास को भारत का शेक्सपीयर कहा जाता है ।
▪️’कामसूत्र’ महर्षि वात्स्यायन ( Vatsyayan )की रचना है ।
यह भी देखें
सिंधु घाटी की सभ्यता ( Indus Valley Civilization )
विजयनगर साम्राज्य ( Vijayanagar Empire )
सिन्धु घाटी की सभ्यता सभ्यता और राजनीतिक स्वाँग
सल्तनत काल / Saltnat Kaal ( 1206 ईo – 1526 ईo )
मुगल वंश / Mughal Vansh ( 1526 ई o से 1857 ईo )
1857 की क्रांति ( The Revolution of 1857 )
24 thoughts on “गुप्त वंश ( Gupta Dynasty )”