हम अपने दैनिक कार्यकलापों में जिस भाषा का प्रयोग करते हैं वह सामान्य व्यवहार की भाषा होती है परंतु विभिन्न औपचारिक कार्यों के लिए जैसे कार्यालय, बैंकिंग, तकनीकी आदि क्षेत्रों में परस्पर पत्र-व्यवहार के लिए जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है, वह प्रयोजनमूलक भाषा कहलाती है |
इस प्रकार किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा को प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं |
प्रयोजनमूलक हिंदी का स्वरूप निम्नलिखित आधारों पर स्पष्ट किया जा सकता है : –
1. प्रयोजनीयता
प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग किसी विशिष्ट प्रयोजन के लिए किया जाता है | इसमें प्रयोजनीयता का होना अत्यंत आवश्यक है | आधुनिक युग में प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग व्यवसाय, न्याय विज्ञान, संचार, कार्यालय, तकनीकी आदि क्षेत्रों में हो रहा है | इन सभी क्षेत्रों में प्रयुक्त होने वाली प्रयोजनमूलक हिंदी की विशिष्ट शब्दावली और पारिभाषिक शब्दावली होती है | संचार प्रयुक्ति की अपनी विशिष्ट शब्दावली होती है | इसी प्रकार से वाणिज्य, शासन, तकनिकी, विधि आदि की भी अपनी-अपनी विशिष्ट शब्दावली होती है | इस प्रकार प्रयोजनमूलक हिंदी में परियोजनीयता होनी नितांत आवश्यक है |
2. एकरूपता
प्रयोजनमूलक हिंदी में एक विषय के संदर्भ में प्रयुक्त शब्द का एक सुनिश्चित अर्थ होता है और वह संबंधित क्षेत्र-विशेष पर आधारित रहता है | क्षेत्र-विशेष के बदल जाने पर उस शब्द का अर्थ भी बदल सकता है | जैसे ‘सेल’ शब्द का अर्थ जीव विज्ञान में कोशिका, भौतिकी में बैटरी और साहित्य में कक्ष होता है | सामान्य व्यवहारिक हिंदी में एक शब्द के अनेक अर्थ हो सकते हैं | जैसे ‘कमल’ के पर्यायवाची शब्द पंकज, जलज, सरोज हैं तथा ‘कृष्ण’ का अर्थ श्याम, काला, कृष्ण नामक व्यक्ति भी हो सकता है | कृष्ण नामक व्यक्ति को किशन, कन्हैया, घनश्याम, गोपाल भी कह कर बुला सकते हैं तथा ‘अंधे’ को सूरदास कहकर पुकारते हैं | इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग प्रयोजनमूलक हिंदी में नहीं होता है इसमें पारिभाषिक शब्दावली की वर्तनी व अर्थ सुनिश्चित होता है तथा इसके प्रयोग में एकरूपता बनी रहती है | यहां ‘अंधे’ के लिए ‘अंधा’ शब्द ही प्रयोग किया जाता है तथा ‘काले’ के लिए ‘काला’ ही लिखा जाता है | इसलिए प्रयोजनमूलक हिंदी में अलंकारिक भाषा अथवा लक्षणा-व्यंजना शब्द-शक्ति का भी प्रयोग नहीं किया जाता | इसमें सीधे और विशिष्ट अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए अभिधात्मक भाषा का प्रयोग करते हैं | इससे इसकी एकरूपता बनी रहती है |
3. मानकता
प्रयोजनमूलक हिंदी में हिंदी भाषा के मानक रूप का प्रयोग किया जाता है जिससे एकरूपता बनी रहे तथा भावों के आदान-प्रदान में किसी प्रकार की कठिनाई न हो | इसके लिए विभिन्न में वैज्ञानिक, तकनीकी, वाणिज्यिक, व्यवसायिक आदि क्षेत्रों से संबंधित पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण किया जाता है | मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सहयोग से वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा पारिभाषिक शब्दावली निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया गया है और किया जा रहा है | इसमें विषय-वस्तु पर विशेष ध्यान दिया जाता है | कार्यालय, पत्रकारिता, वाणिज्य, व्यापार, उद्योग, विज्ञान, चिकित्सा-शास्त्र आदि से संबंधित शब्दों का निर्माण किया जाता है | प्रयोजनमूलक हिंदी का मानक रूप सामान्य बोलचाल की हिंदी से भिन्न तथा प्रत्येक स्थिति में एक जैसा होता है | प्रयोजनमूलक हिंदी के मानक रूप से इसके प्रयोग में स्पष्टता तथा एकरूपता आ जाती है |
4. भाषिक भंगिमा
जिस प्रकार भाषा व्यवहार में भाषा के विभिन्न रूपों अथवा भेदों-प्रभेदों का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार से प्रयोजनमूलक हिंदी के प्रगतिशील स्वरूप में विधि, बैंकिंग, कार्यालयी, तकनीकी, वैज्ञानिक आदि से संबंधित क्षेत्रों में होने वाले नवीनतम प्रयोगों तथा खोजों को अभिव्यक्ति प्रदान करने के लिए उसी प्रकार की शब्दावली का निर्माण किया जाता है | इस शब्दावली का निर्माण संबंधित प्रयोग अथवा खोज के देश में अथवा विदेश में होने के आधार पर किया जाता है | देशी खोज के लिए भारतीय शब्दावली तथा विदेशी खोज के लिए विदेशी शब्दावली का भारतीय परिवेश के अनुसार निर्धारण किया जाता है | इस शब्दावली का निर्माण खोजकर्ता या प्रयोग-कर्त्ता के नाम के आधार पर भी किया जा सकता है | इसके लिए भाषा के सरल तथा सहज रूप को अपनाया जाता है जिससे बना हुआ शब्द स्पष्ट हो तथा एक निश्चित अर्थ प्रदान कर सके |
◼️ अतः स्पष्ट है कि परियोजनीयता, एकरूपता, मानकता और भाषिक भंगिमा वे तत्व है जो प्रयोजनमूलक हिंदी का स्वरूप निर्धारित करते हैं | इन तत्वों के कारण जहां प्रयोजनमूलक भाषा उस विशिष्ट क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों को लाभान्वित करती हैं वहीं धीरे-धीरे आम आदमी भी उन शब्दों से उसी अर्थ में जुड़ने लगता है जिस अर्थ को वे उस विशिष्ट क्षेत्र में अभिव्यक्त करना चाहते हैं | उदाहरण के लिए कंप्यूटर, एमआरआई, सीटी स्कैन, एक्स-रे आदि शब्द अब आम आदमी भी प्रयोग कर रहा है | यह सही है कि प्रयोजनमूलक भाषा के लिए पारिभाषिक शब्दों का निर्माण करते समय पहली नजर में यह अवश्य लगता है कि यह शब्द जनसामान्य है कि लिए अग्राह्य होंगे लेकिन जैसे-जैसे उन शब्दों का प्रचलन दैनिक-जीवन में होने लगता है वे शब्द आम आदमी के लिए भी ग्राह्य बन जाते हैं |