( Jet Streams )
जेट-स्ट्रीम का भारतीय मानसून पर प्रभाव
वैसे तो भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं जैसे अक्षांशीय स्थिति और आकार, उच्चावच की विभिन्नता, वायुदाब और पवन की समय-अनुसार बदलती प्रकृति, जल और स्थल का वितरण, समुद्र से निकटता या दूरी आदि परंतु इन सब के साथ-साथ जेट वायु धाराओं का प्रभाव भी भारतीय जलवायु पर पड़ता है |
जेट वायुधाराएं ( Jet Streams ) के भारतीय मानसून पर पड़ने वाले प्रभावों को समझने के लिए जेट स्ट्रीम के विभिन्न प्रकारों को जानना आवश्यक होगा |
जेट स्ट्रीम के प्रकार ( Types Of Jet Streams )
1. पश्चिमी जेट स्ट्रीम: 20 डिग्री से 35 डिग्री उत्तर
2.पूर्वी जेट स्ट्रीम : 8 डिग्री से 35 डिग्री उत्तर
1️⃣ पश्चिमी जेट स्ट्रीम: यह स्थाई जेटस्ट्रीम है | यह साल भर चलती है | इसके प्रवाह की दिशा पश्चिमोत्तर भारत से लेकर दक्षिण पूर्व भारत की और होती है | पश्चिमी जेट-स्ट्रीम का संबंध सूखी, शांत और शुष्क हवाओं से है | यह शीतकाल की आंशिक वर्षा के लिए उत्तरदायी है |
2️⃣ पूर्वी जेट स्ट्रीम: पश्चिमी जेट वायुधाराएं ( Western Jet Streams ) के ठीक विपरीत पूर्वी जेट-स्ट्रीम की दिशा दक्षिण-पूर्व से लेकर पश्चिमोत्तर भारत की ओर है | यह अस्थाई है और इसका प्रभाव जुलाई, अगस्त, सितंबर में देखा जा सकता है | पूर्वी जेट-स्ट्रीम भारत में मूसलाधार वर्षा के लिए उत्तरदायी है | मौसम वैज्ञानिकों का अनुमान है कि संपूर्ण भारत में जितनी भी वर्षा होती है उसका 74% हिस्सा जून से सितंबर महीने तक होता है | यह पूर्वी जेट वायुधाराएं ( Eastern Jet Streams ) से ही संभव हो पाता है |
पूर्वी जेट हवा गर्म होती है इसलिए इसके प्रभाव से सतह की हवा गर्म होने लगती है और गर्म होकर तेजी से ऊपर उठने लगती है | इससे पश्चिमोत्तर भारत सहित पूरे भारत में एक निम्न-वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है | इस निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर अरब सागर से नमी युक्त उच्च वायुदाब की हवाएं चलती हैं | अरब सागर से चलने वाली यही नमी युक्त हवा भारत में दक्षिण पश्चिमी मानसून के नाम से जानी जाती है |
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