भाषा : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं स्वरूप ( Bhasha :Arth, Paribhasha, Visheshtayen Evam Svaroop )

    ⚫️ भाषा : अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं एवं स्वरूप ⚫️
( Bhasha : Arth, Paribhasha, Visheshtayen Evam Svaroop )

भाषा मानव का अर्जित संस्कार है जिसे वह जन्म से प्राप्त नहीं करता | मानव जिस समुदाय में रहता है उसी से भाषा को अर्जित करता है | उदाहरण के रूप में यदि बच्चे का जन्म तमिल भाषा-भाषी परिवार में हुआ है लेकिन उसका लालन-पालन पंजाबी परिवार में होता है तो वह बच्चा बड़ा होकर पंजाबी भाषा को ही अर्जित करेगा |भाषा मानव जाति के लिए नितांत आवश्यक है बिना भाषा के मानव समुदाय की कल्पना भी नहीं की जा सकती | वस्तुतः भाषा के कारण ही मानव समाज का निर्माण हुआ है |

🔷 भाषा का अर्थ 🔷
( Bhasha Ka Arth )

भाषा शब्द संस्कृत की ‘भाष’ धातु से व्युत्पन्न हुआ  है जिसका प्रयोग बोलने के लिए होता है |
पाणिनि ( Panini) कृत ‘अष्टाध्यायी ‘( Ashtadhyayi )  पर लिखे ग्रंथ ‘महाभाष्य’ ( Mahabhashya ) में पतंजलि ( Patanjali ) ने कहा भी है – “वर्णों द्वारा जो सार्थक वाणी व्यक्त होती है वही भाषा है |”
लेकिन पशु-पक्षियों के पास भी अभिव्यक्ति के साधन हैं | एक चींटी दूसरी चींटी को भोजन की सूचना देती है और शीघ्र ही वे भोजन के स्थान पर एकत्रित हो जाती हैं | मधुमक्खियां भी सांकेतिक भाषा के माध्यम से एक दूसरे को अनेक प्रकार की सूचनाएं देती रहती है | डॉल्फिन की भाषा का भी विशेष महत्व है | यहां तक कि पेड़-पौधों की भाषा की चर्चा भी की जाती है | इस संदर्भ में काफी शोध हुआ है और हो भी रहा है परंतु यहां भाषा से हमारा अभिप्राय केवल मानव जाति की भाषा से ही है |

भाषा विज्ञान में भाषा का अर्थ मानव द्वारा उच्चरित ध्वनि संकेतों से है | अलग-अलग समुदाय के ध्वनि संकेत अलग-अलग होते हैं | मानव द्वारा विचार विनिमय के लिए तीन साधनों का प्रयोग किया जाता है, ये हैं :-
क ) स्पर्श संकेत
ख )  दृष्टि संकेत
ग )  श्रव्य संकेत

चोर अंधकार में एक दूसरे को छूकर या हाथ दबा कर अपने भाव व्यक्त करते हैं | प्रेमी-प्रेमिका माता-पिता या गुरुजनों के होते हुए भी आंखों के इशारों में बहुत कुछ कह जाते हैं लेकिन सामान्य बातचीत में हम श्रव्य संकेतों का प्रयोग करते हैं | वक्ता अपनी बात बोल कर कहता है और श्रोता उसे सुनकर भाव ग्रहण करता है |

अतः भाषा से हमारा अभिप्राय श्रव्य संकेतों से है जिनका प्रयोग हम परस्पर विचार विनिमय के लिए करते हैं |
भाषा के अर्थ तथा स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए भाषा की कतिपय परिभाषा ओं पर विचार करना आवश्यक होगा |

🔷 भाषा की परिभाषा ( Bhasha Ki Paribhasha ) :-  भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भाषा की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं  दी हैं | कुछ प्रसिद्ध परिभाषाएं निम्नलिखित हैं –

▶️ भर्तृहरि ( Bhartrihari) के अनुसार – ” भाषा वह साधन है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचार दूसरों को समझाता है तथा दूसरों के विचार समझता है |”

▶️ डॉक्टर बाबूराम सक्सेना के अनुसार – “जिन ध्वनि-चिह्नों के द्वारा मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है, उसे भाषा कहते हैं |”

▶️ डॉ भोलानाथ तिवारी ( Dr. Bholanath Tiwari ) के अनुसार -“भाषा उच्चारण अवयवों से उच्चरित मूलतः प्रायः यादृच्छिक ध्वनि-प्रतीकों की वह व्यवस्था है जिसके द्वारा किसी भाषा समाज के लोग आपस में विचारों का आदान-प्रदान करते हैं |”

▶️ प्लेटो( Pleto)  के अनुसार- “जब कोई विचार ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होता है तो उसे भाषा कहते हैं |”

▶️ हेनरी स्वीट के अनुसार – “जिन व्यक्त ध्वनियों द्वारा विचारों की अभिव्यक्ति होती है उन्हें भाषा कहते हैं |”

उपरोक्त विवेचन से भाषा के संबंध में निम्नलिखित बिंदु स्पष्ट होते हैं – 1. भाषा एक सामाजिक वस्तु है अर्थात इसे समाज में रहकर ही सीख सकते हैं |
2. भाषा ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है |
3. यह ध्वनि प्रतीक यादृच्छिक होते हैं |
4. प्रत्येक भाषा के ध्वनि प्रतीक अन्य भाषा से कुछ अलग होते हैं |
5. यह ध्वनि प्रतीक सार्थक होते हैं |
6. भाषा का उच्चरित रूप अधिक महत्व रखता है और लिखित रूप गौण |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि  भाषा उच्चरित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके माध्यम से किसी समाज के लोग परस्पर अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं |

🔷 भाषा के लक्षण/विशेषताएं/प्रवृतियां 🔷
( Bhasha ke Abhilakshan / Visheshtayen )

भाषा वैज्ञानिकों ने भाषा के प्रमुख अभिलक्षण निम्नलिखित बताए हैं :-
1️⃣ यादृच्छिकता :- यादृच्छिकता का अर्थ है – जैसी इच्छा हो या जैसा माना जाए | इसका अर्थ यह है कि मानव की जैसी इच्छा हुई वैसा उसने शब्द का निर्माण कर लिया | उदाहरण के लिए हिंदी में जिसे ‘पानी’ कहते हैं अंग्रेजी में उसे ‘वाटर’ तथा फारसी में ‘आब’कहते हैं | यह भिन्नता ही यादृच्छिकता है |  इसी प्रकार पद-क्रम भी अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग होता है | उदाहरण के लिए हिंदी में ‘राम ने रावण को मारा |’और अंग्रेजी में ‘Rama killed Ravana.’ कहते हैं |  स्पष्ट है हिंदी में कर्ता, कर्म, क्रिया पद-क्रम होता है जबकि अंग्रेजी में कर्ता, क्रिया, कर्म पद-क्रम आता है | यह क्रम अलग अलग क्यों है इसके पीछे कोई तर्क नहीं है | इसी को हम भाषा की यादृच्छिकता कहते हैं |

2️⃣ परिवर्तनशीलता :- भाषा परिवर्तनशील है | यह परिवर्तन इतना धीरे-धीरे होता है कि लक्षित नहीं होता | काफी समय बीत जाने पर हम इस परिवर्तन को जान पाते हैं | इस संदर्भ में हम संस्कृत के ‘कर्म’ शब्द का उदाहरण ले सकते हैं जो प्राकृत  में ‘कम’ बन गया तथा हिंदी में ‘काम’ हो गया |  ‘मेघ’ से  मेह, दधि  से दही,  दुग्ध से दूध आदमी परिवर्तन के उदाहरण है | वस्तुतः काफी वर्षों बाद भाषा में काफी परिवर्तन आ जाता है |
वैदिक संस्कृत> लौकिक संस्कृत> पालि > प्राकृत> अपभ्रंश> खड़ी बोली विकास क्रम इसी परिवर्तनशीलता का परिणाम है |

3️⃣ सृजनात्मकता :- प्रत्येक भाषा में शब्द और उनके रूप सीमित ही होते हैं | परंतु आवश्यकता पड़ने पर हम नए-नए शब्दों और वाक्यों का सृजन करते रहते हैं | हम प्रतिदिन अनेक प्रकार के वाक्यों का प्रयोग करते हैं लेकिन उनके अर्थ को ग्रहण करने में हमें कोई कठिनाई नहीं होती भले ही वह वाक्य पहले हमने न सुने हों |  यह सब सृजनात्मकता का ही परिणाम है |
साहित्य जगत में यह सृजनात्मकता काफी देखी जा सकती है | जैसे “मेरी इच्छा का दीपक बुझ गया”  प्रतीकों तथा संकेतों के माध्यम से हम शब्दों तथा वाक्यों को नए अर्थ प्रदान करते हैं  | यही सृजनात्मकता है | सृजनात्मकता के कारण नए शब्दों का निर्माण भी होता है और पुराने प्रचलित शब्द नए अर्थ भी प्रदान करते हैं |

4️⃣ ध्वनि व्यवस्था :- भाषा का व्यवहार वक्ता तथा श्रोता के बीच होता है |इसके लिए ध्वनियों  की आवश्यकता होती है | इसके लिए यह भी आवश्यक है कि वक्ता और श्रोता दोनों उन ध्वनियों से परिचित हों |यह तभी संभव है जब वक्ता तथा श्रोता समान भाषिक संस्कारों में पले हों |
वक्ता तथा श्रोता के मानसिक स्तर में समानता हो तो संप्रेषण अधिक सफल होगा |

5️⃣ अनुकरणात्मकता :- भाषा अनुकरण द्वारा सीखी जाती है यह स्वत: कभी नहीं आती | अनुकरण मानव मन की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है | मानव बाल्यावस्था से युवावस्था तक वेशभूषा,  बोलचाल आदि में एक दूसरे का अनुकरण करता है | अनुकरण की यह प्रवृत्ति बाल्यावस्था में सर्वाधिक होती है | बच्चा परिवार में अपने से बड़ों द्वारा बोले जाने वाले शब्दों का अनुकरण करता हुआ भाषा सीखता है |

6️⃣ भाषा एक सामाजिक वस्तु है :- भाषा एक सामाजिक वस्तु है अर्थात भाषा को समाज में रहकर ही सीख सकते हैं | भाषा की उत्पत्ति समाज से ही होती है और समाज में ही उसका विकास होता है | जन्म लेने के बाद शिशु का लालन-पालन जिस समाज में होता है उसी समाज की भाषा को वह बच्चा सीखता है | कई बार बच्चे को दो समाज या वातावरण मिलते हैं जिससे वह दो भाषाएं सीख जाता है | उदाहरण के रूप में यदि किसी बच्चे का जन्म गांव में हुआ है और गांव में ही वह रहता है तो वह गांव की भाषा सीख जाता है और बाद में जब वह बच्चा किसी पब्लिक स्कूल में पढ़ने रखता है तो वह वहां की भाषा भी सीख जाता है |

7️⃣ भाषा एक अर्जित संपत्ति है :- भाषा एक अर्जित संपत्ति है | इसका कारण यह है कि जन्म लेते ही कोई बच्चा भाषा नहीं सीख जाता | जन्म लेने के बाद बच्चे को भाषा सीखनी पड़ती है | बच्चा जिस समाज में रहता है,  अनुकरण और अभ्यास के माध्यम से उस समाज की भाषा को सीख जाता है |
अतः स्पष्ट है कि भाषा हमें स्वत: प्राप्त नहीं होती ; उसे सीखना पड़ता है | भाषा जन्मजात नहीं,  अर्जित संपत्ति है |

8️⃣ भाषा एक परंपरागत वस्तु है :- भाषा एक परंपरागत वस्तु है | इसका कारण यह है कि जिस समाज में हम रह रहे हैं, उस समाज में उस भाषा का प्रचार एवं प्रसार परंपरा से चला आ रहा है | जो भाषा बच्चा सीखता है वह उसके पिता, दादा, परदादा के काल से चली आ रही है | इस प्रकार किसी समाज विशेष में भाषा परदादा से दादा, दादा से पिता व पिता से पुत्रों की और परंपरागत रूप से बढ़ती रहती है |

◼️ उपर्युक्त परिभाषाओं व अभिलक्षणों के आधार पर कहा जा सकता है कि भाषा उच्चरित यादृच्छिक ध्वनि प्रतीकों की व्यवस्था है जिसके माध्यम से किसी समाज के लोग परस्पर अपने विचारों का आदान प्रदान करते हैं | भाषा मानव की सर्वोत्कृष्ट उपलब्धि है |

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