( Bhasha Vigyan Ke Adhyayan Ki Dishayen/ Padhtiyan )
भाषा के अध्ययन की दिशाएं / भाषा के अध्ययन की पद्धतियां ( Bhasha Ke Adhyayan Ki Dishayen ya Padhtiyan )
भाषा विज्ञान के अध्ययन की तुलनात्मक, वर्णनात्मक, संरचनात्मक, प्रायोगिक आदि अनेक दिशाएं उपलब्ध होती हैं परंतु आधुनिक शोध के परिणामस्वरूप कुछ नई दिशाओं का विकास हुआ है | यहां भाषा के अध्ययन की तीन दिशाओं का विवेचन किया जा रहा है – वर्णनात्मक, ऐतिहासिक तथा तुलनात्मक |
सुप्रसिद्ध भाषा विज्ञानी सस्यूर ने भाषा के अध्ययन की दो दिशाएं बताई हैं – 1. एककालिक अथवा वर्णनात्मक या स्थित्यात्मक दिशा, 2. कालक्रमिक अथवा ऐतिहासिक या गत्यात्मक दिशा |
सस्यूर ( Sasyur ) ने शतरंज के खेल का उदाहरण देकर इन दोनों अध्ययन दिशाओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया है | शतरंज के खेल में मोहरों की स्थिति के आधार पर खेल की तात्कालिक स्थिति किसी भी समय समझी या समझाई जा सकती है | उस क्षण खेल का जायजा क्या है इस प्रकार का अध्ययन एककालिक कहलाएगा | लेकिन शतरंज के खेल का आरंभ से लेकर वर्तमान स्थिति तक अध्ययन करना कालक्रमिक अथवा ऐतिहासिक अध्ययन कहलाएगा |
डॉक्टर ओo पीo भारद्वाज ( Dr O. P. Bhardwaj ) ने भाषा के अध्ययन की दो दिशाएं बताई हैं, वह हैं – 1. क्षैतिज अध्ययन दिशा, 2. ऊर्ध्वाधर अध्ययन दिशा |
क्षैतिज अध्ययन दिशा के अंतर्गत एककालिक या वर्णनात्मक अध्यन किया जाता है और ऊर्ध्वाधर अध्ययन दिशा के अंतर्गत कालक्रमिक या ऐतिहासिक अध्ययन किया जाता है | इस प्रकार के अध्ययन को वह निम्न प्रकार से आरेखित करते हैं :-
इस आरेख में ‘क’ एककालिक या वर्णनात्मक अध्यन दिशा तथा ‘ख’ कालक्रमिक या ऐतिहासिक अध्ययन दिशा की ओर संकेत करता है |
1️⃣ भाषा का वर्णनात्मक अथवा एककालिक अध्ययन ( Bhasha Ka Varnnatmak Athva Ekkalik Adhyayan )
भाषा के एककालिक अध्ययन ( Bhasha Ka Ekkalik Adhyayan ) से हमारा अभिप्राय किसी निश्चित समय में भाषा का व्याकरणिक अध्ययन करना है | इसमें किसी निश्चित समय में भाषा की संरचना पर प्रकाश डाला जाता है | इसे वर्णनात्मक अध्ययन दिशा या व्याकरणात्मक अध्ययन दिशा भी कहते हैं | उदाहरण के रूप में वीरगाथा काल, भक्ति काल, रीतिकाल, भारतेंदु युग, द्विवेदी युग की हिंदी भाषा का अध्ययन एककालिक अथवा वर्णनात्मक अध्ययन कहलाएगा |
आधुनिक भाषा वैज्ञानिक सस्यूर ( Sasyur ) ने एककालिक अध्ययन को नवीन रूप प्रदान किया परंतु पाणिनि ने एककालिक या वर्णनात्मक अध्यन का प्रवर्तन किया था |
बाद में सस्यूर तथा ब्लूम फील्ड ने वर्णनात्मक अध्यन को उपयोगी सिद्ध किया |
डॉ ओo पीo भारद्वाज ने एककालिक या वर्णनात्मक अध्ययन दिशा को क्षैतिज अध्ययन दिशा कहा है |
भाषा के वर्णनात्मक अध्यन द्वारा बनाए गए सिद्धांतों की प्रामाणिकता को ऐतिहासिक अध्ययन दिशा द्वारा जांचा जा सकता है |
2️⃣ भाषा का ऐतिहासिक अथवा कालक्रमिक अध्ययन ( Bhasha Ka Aitihasik Athva Kalkramik Adhyayan )
भाषा के ऐतिहासिक एवं कालक्रमिक अध्ययन में भाषा विशेष के विकास की खोज की जाती है | यह भाषा के अध्ययन की दूसरी महत्वपूर्ण दिशा मानी जाती है | इसे ऐतिहासिक काल क्रमिक, गत्यात्मक, ऊर्ध्वाधर आदि नामों से भी जाना जाता है | इसके अंतर्गत किसी भाषा के प्राचीन काल से लेकर अर्वाचीन काल तक के विकास का अध्ययन किया जाता है | 19वीं सदी तक भाषाओं का ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन होता रहा है | इसी अध्ययन के फलस्वरूप यह निष्कर्ष निकाला गया कि प्रत्येक आधुनिक भाषा की कोई न कोई मूल भाषा रही है जिससे उसका विकास हुआ है |
इस प्रकार संसार की असंख्य भाषाओं के पारिवारिक स्रोत का अध्ययन होने लगा | इस अध्ययन से यह पता चला कि संस्कृत और ग्रीक जैसी प्राचीन भाषाओं से कौन-कौन सी भाषाएं विकसित हुई | हिंदी भाषा के आधुनिक रूप तक पहुंचने के लिए जो वैदिक संस्कृत से लेकर आज तक की विकास प्रक्रिया का अध्ययन किया गया है उसे ऐतिहासिक अध्ययन या काल क्रमिक अध्ययन ही कहते हैं |
ऐतिहासिक अध्ययन के परिणाम स्वरुप ही हम यह जान पाए हैं कि भारोपीय भाषा परिवार संसार के अन्य भाषा परिवारों में प्रमुख स्थान रखता है लेकिन जहां वर्णनात्मक अध्ययन पूरी तरह प्रामाणिक होता है वहीं ऐतिहासिक अध्ययन प्रामाणिक नहीं होता |
3️⃣ तुलनात्मक अध्ययन
यह भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन की तीसरी महत्वपूर्ण दिशा है | इस प्रकार के भाषा अध्ययन में दो या दो से अधिक भाषाओं जो एक ही भाषा परिवार से संबंध हो का तुलनात्मक विश्लेषण किया जाता है | यह तुलनात्मक अध्ययन भाषा के प्राचीन रूपों का भी हो सकता है और वर्तमान रूपों का भी | जब पाश्चात्य देशों का भारत के साथ संपर्क हुआ तो कुछ भाषा विज्ञानियों ने भारतीय भाषाओं का अध्ययन करना आरंभ किया | उसी से यह स्पष्ट हुआ कि कुछ पाश्चात्य भाषाओं में तथा भारतीय भाषाओं में गहरा संबंध है |यह सब भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन के कारण ही हो पाया | तुलनात्मक अध्ययन के फलस्वरूप ही कुछ पाश्चात्य और भारतीय भाषाओं को एक ही भाषा परिवार में रखा गया जिसे भारोपीय भाषा परिवार कहा जाता है |
उदाहरण के लिए हिंदी के संख्यावाची शब्द एक, दो, तीन, चार, पांच आदि जर्मन तथा अंग्रेजी के संख्यावाची शब्दों से अत्यधिक मेल खाते हैं |
तुलनात्मक अध्ययन के अंतर्गत वर्णनात्मक एवं ऐतिहासिक अध्ययन दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है | इस प्रकार हम तुलनात्मक अध्ययन के दो प्रकार कर सकते हैं –
(क ) तुलनात्मक वर्णनात्मक (एककालिक ) अध्ययन |
(ख ) तुलनात्मक ऐतिहासिक (कालक्रमिक) अध्ययन |
तुलनात्मक अध्ययन दिशा के चार और भेद किए जा सकते हैं-
(क) प्रकारात्मक अध्ययन दिशा
(ख ) प्रयोगात्मक अध्ययन दिशा
(ग ) संरचनात्मक अध्ययन दिशा
(घ ) बोली वैज्ञानिक अध्ययन दिशा
🔹(क ) प्रकारात्मक अध्ययन – प्रकारात्मक अध्ययन में दो भिन्न भाषाओं की संरचनात्मक समानताओं व विषमताओं को रेखांकित किया जाता है |
🔹(ख ) प्रयोगात्मक अध्ययन – प्रयोगात्मक अध्ययन में किसी भाषा विशेष को बोलने वालों से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित किया जाता है और वैज्ञानिक यंत्रों द्वारा उनके मुख से उत्पन्न ध्वनियों का अध्ययन किया जाता है |
🔹(ग ) संरचनात्मक अध्ययन – संरचनात्मक अध्ययन में ध्वनि-ग्रामों, रूप-ग्रामों और वाक्य विश्लेषण का अध्ययन किया जाता है |
🔹(घ ) बोली वैज्ञानिक अध्ययन – इस अध्ययन दिशा के अंतर्गत भाषा के विभिन्न रूपों, उनके क्षेत्रों तथा उनकी सीमाओं का अध्ययन किया जाता है | उदाहरण के रूप में भाषा के अनेक रूप हो सकते हैं, यथा – व्यक्तिगत बोली, अनु बोली, बोली, विभाषा, भाषा |
🔷 निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि भाषा के अध्ययन की तीन प्रमुख दिशाएं हैं – वर्णनात्मक, ऐतिहासिक और तुलनात्मक |
जहां वर्णनात्मक अध्ययन दिशा को एककालिक अध्ययन दिशा कहा जाता है वही ऐतिहासिक अध्ययन दिशा को काल क्रमिक अध्ययन दिशा की संज्ञा दी जाती है | तुलनात्मक अध्ययन दिशा में ऐतिहासिक तथा वर्णनात्मक अध्ययन दोनों पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है |
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