⚫️ क्या केजरीवाल की जीत भाजपा में कुछ अच्छे बदलाव लाएगी ⚫️
आम आदमी पार्टी की प्रचंड जीत कई मायनों में महत्त्वपूर्ण है । एक तरफ़ यह जीत जहाँ ‘आप’ द्वारा आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के अपने आश्वासन की दिशा में किये गए सार्थक प्रयासों की जीत है वहीं दूसरी तरफ़ केन्द्रीय स्तर पर सत्तासीन भाजपा के धर्म को अन्य मुद्दों से अधिक प्रमुखता देने की रणनीति की हार भी है । दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान जहाँ भाजपा पहले की तरह राम मंदिर निर्माण,अंतराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को मिल रही डांट को अपनी उपलब्धि बता कर प्रचारित करता रही वहीं आप शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में किये गए अपने कामों का प्रचार करती रही |
केजरीवाल ने पिछली बार जो ऐतिहासिक जीत हासिल की थी उसमें उसके द्वारा किए गए उसी आश्वासन की महती भूमिका थी जिस आश्वासन के बल पर भाजपा सत्तासीन हुई थी । वास्तव में भाजपा का ‘अच्छे दिन’ वाला नारा तब जुमला नहीं वरन लगातार बढ़ रहे भ्रष्टाचार , महँगाई और बेरोज़गारी जैसे मुद्दों से निपटने का भाजपा के एजेंडे का द्योतक था , कम से कम जनता तो यही मानती थी । ऐसे में भाजपा की हिंदुत्ववादी सोच ने हिंदुओं की बाँछें खिला दी । भाजपा की हिन्दुत्त्व विचारधारा उन्हें बोनस की तरह लगी परन्तु जनता की पहली मांग ‘अच्छे दिन’ ही थे | परंतु जल्दी ही ‘अच्छे दिन’ वाला नारा जुमले में बदल गया और हिंदुत्व की रक्षा का मुद्दा प्रमुख हो गया । काम का स्थान राम ने ले लिया और महँगाई और बेरोज़गारी के मुद्दों पर जब भी कोई भाजपा के विरुद्ध आक्रामक हुआ तो पाकिस्तान को ढाल बना लिया गया । हालाँकि आँकड़ों के नज़रिए से देखें तो आज भारतीय सैनिक पहले की अपेक्षा अधिक जान गँवा रहे हैं । कारगिल जैसी बड़ी घटना में भी शहीद हुए भारतीय सैनिकों की संख्या लगभग सौ के आसपास थी जिसमें पाकिस्तान को भी काफ़ी नुक़सान उठना पड़ा था परंतु पुलवामा जैसी आतंकवादी घटना में चालीस से अधिक जवानों का मरना भी सरकार अपने लिए भुनाने लगी और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के द्वारा अपनी बहुत बड़ी असफलता को ढकने में कामयाब भी हुई । कल तक सीमा पार करके आने वाले आतंकवादियों का हवाला देकर हमलावर होने वाली भाजपा के शासन में इतना बड़ा आतंकवादी हमला भी ‘भारत माता की जय’ और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की आड़ में छुप गया । लोगों के मन में जो संशय था की वह पाकिस्तान जो 1965 , 1971 और 1999 के समय भारत के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ था आज चीन के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से साथ देने पर भी चुप कैसे बैठ गया , वह भी सोशल मीडिया कैम्पेन और ‘उड़ी:द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी फ़िल्मों ने दूर कर दिया । इसके बाद भी अगर कोई पुलवामा घटना की जाँच की बात कहे तो देशद्रोही तो वो है ही । सरकार के विरुद्ध उठने वाली हर आवाज को देशद्रोही कहा जाने लगा । अनेक सरकार-समर्थक चैनलों के साथ-साथ समय-समय पर ‘नमो’ जैसे अनेक चैनल भी आये जो मोदी जी को दैवी आभा युक्त अवतार पुरुष सिद्ध करने में लगे रहे । नमो चैनल, मोदी जी पर बनी फ़िल्म और ‘उडी:द सर्जिकल स्ट्राइक’ जैसी फिल्मों के आने का समय भी चुनावी रणनीति का हिस्सा ही लगता है | यह महिमा मंडन परम्परागत मीडिया व सोशल मीडिया पर एक साथ दो स्तरों पर शुरू हुआ था । एक, मोदी जी के विकास पुरुष के रूप में व दूसरे , हिंदू धर्म के पुनरुद्धारक के रूप में परंतु पहले शासनकाल में लाख प्रचारित करने पर भी उनकी विकास पुरुष वाली धूमिल हो गयी और महज़ हिंदू धर्म के रक्षक , पुनरुद्धारक व पाकिस्तान विरोधी की रह गयी ।
इस धर्म रक्षक वाली छवि का मोह तब भंग होने लगा जब बहुत से लोग विभिन्न उद्योगों में छँटनी होने से घर बैठने लगे और उनके पास राम नाम जपने के अलावा और कोई काम ना रहा । तब भी जिनके पेट भरे थे, वे पाकिस्तान विरोधी नारों और ‘जय श्री राम’ के नारों से मुग्ध होते रहे ।
लेकिन अब भाजपा का क़िला ढहने लगा है और जनता उसका विकल्प तलाशने लगी है । मीडिया के द्वारा जहाँ एक ओर मोदी जी को उनके विकास सम्बंधी सभी दावों के झूठे होने के बावजूद एक बड़े नेता के रूप में प्रचारित किया वहीं राहुल के बेदाग़ छवि व शिक्षित युवा होने पर भी कुछ इस तरह से अबोध व नादान बालक के रूप में प्रचारित किया गया जैसे ‘सलाखें’ फ़िल्म में एक ईमानदार मास्टर जी को आँखों पर पट्टी बंधे क़ानून के आगे पागल सिद्ध कर दिया जाता है । यहाँ भी आवाम की आँखों पर क़ानून की तरह पट्टी बंधी है और ईमानदारी ‘सलाखें’ फ़िल्म की भाँति मर रही है । परंतु यहाँ यह भी स्वीकार्य है कि कांग्रेस कोई ज़्यादा ईमानदार पार्टी नहीं थी । ख़ास तौर पर अपने अंतिम शासनकाल में अनेक घोटालों ने जनता के सब्र का बाँध तोड़ दिया और वह किसी विकल्प की तलाश में थी । भाजपा के अलावा अन्य कोई बड़ा राष्ट्रीय दल नहीं था जिसे चुना जा सके । अतः भाजपा स्वाभाविक रूप से जनता की पहली पसंद बनी । सुनियोजित प्रचार और मोदी जी की सीधे आम आदमी को सम्बोधित करती भाषण शैली ने जनता का ध्यान भाजपा की तरफ़ आकर्षित किया ।
लेकिन अपने शासनकाल के पहले चरण में ही जनता का मोह भंग होने लगा हालाँकि ‘पुलवामा घटना’ व ‘धर्म-रक्षक’ छवि के बल पर भाजपा फिर से सत्ता हथियाने में सफल रही ।
लेकिन पिछले कुछ समय में जहाँ भी चुनाव हुए , जनता भाजपा का विकल्प तलाशती नज़र आयी है ।
जहाँ कांग्रेस दूसरा मुख्य दल था वहाँ कोंग्रेस सत्ता में आयी । मध्यप्रदेश और राजस्थान इसके उदाहरण हैं । परंतु जहाँ कांग्रेस कमज़ोर थी वहाँ जनता ने अन्य क्षेत्रीय दलों को भाजपा के विकल्प के रूप में देखा । हरियाणा विधानसभा में भी जनता भाजपा का विकल्प तलाश रही थी परंतु वहाँ कोंग्रेस और जजपा के दो विकल्पों में उलझने के कारण किसी प्रकार से भाजपा फिर सत्ता में आ गयी ।
भाजपा के लिए एक शुभ संकेत अवश्य है की राष्ट्रीय स्तर पर अभी मोदी जी का विकल्प कोंग्रेस के पास नहीं है और केजरीवाल , ममता जैसे नेता जो मोदी जी के सशक्त प्रतिद्वंद्वी हो सकते हैं ; उन्हें अभी राष्ट्रीय स्तर पर आने में समय लगेगा ।
दिल्ली विधानसभा चुनावों से भाजपा को एक सबक़ अवश्य लेना चाहिए की केवल धर्म का राग अलापने और पाकिस्तान विरोधी नारे लगाने से लम्बे समय तक जनता को मूल मुद्दों से भ्रमित नहीं किया जा सकता । जनता के लिए अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना भी दिन प्रतिदिन कठिन होती जा रही है । सरकारी उपक्रम बेचे जा रहे हैं । निजीकरण की समस्या ने बेरोज़गारी को और अधिक भयावह बना दिया है । सरकारी कर्मचारी भी पुरानी पेन्शन योजना के लिए गुहार लगा रहे हैं परंतु सरकार किसी ना किसी बहाने से सरकारी कर्मचारियों से निजात पाना चाहती है । आर बी आई से लोन लेने के कारण सरकार का दिवालियापन देश के सामने ज़ाहिर हो गया है । बेरोज़गारी और महँगाई के कारण जनता बेहाल है ।
आशा है भाजपा जनता की भावनाओं को समझ अपनी विचारधारा में परिवर्तन करेगी |
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