पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण : समन्वयवादी सिद्धांत ( Paribhashik Shabdavali : Samnvayvadi Siddhant )

 पारिभाषिक शब्दावली : समन्वयवादी सिद्धांत

पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर विद्वानों में  आपसी मतभेद है | पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर तीन संप्रदाय प्रचलित हैं – राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय, अंतरराष्ट्रीयतावादी संप्रदाय और समन्वयवादी संप्रदाय  | कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण राष्ट्रवादी सम्प्रदाय के अनुसार होना चाहिए| इस मत के समर्थक मानते हैं कि भारत में प्रयुक्त होने वाली पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के लिए संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए | अंतर्राष्ट्रीयवादी संप्रदाय के समर्थक अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेना चाहते हैं जबकि समन्वयवादी संप्रदाय के समर्थक दोनों संप्रदायों के समन्वित रूप को स्वीकार करने पर बल देते हैं |

          समन्वयवादी संप्रदाय

                ( Samanvyvadi Sampraday )
 
 

पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण की समन्वयवादी विचारधारा राष्ट्रीयतावादी विचारधारा और अंतरराष्ट्रीयतावादी विचारधारा के बीच संतुलन स्थापित करने पर बल देती है |
सन 1961 में भारत सरकार ने देश के भाषाविदों, विद्वानों और वैज्ञानिकों की सहायता से एक रूपरेखा बनाई और पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के सिद्धांतों को निर्धारित किया | आयोग ने यह निर्णय लिया  कि भारतीय भाषाओं में अंतरराष्ट्रीय शब्दों को किस सीमा तक ग्रहण किया जाए तथा संस्कृत भाषा को आधार बनाकर पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करते समय सामान्य बोलचाल की भाषा में प्रचलित शब्दों को कहां तक ग्रहण किया जाए |

◼️   पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण की समन्वयवादी विचारधारा की कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं इस प्रकार हैं :-

1. इस संप्रदाय के अनुसार पारिभाषिक शब्दों का निर्माण करते समय राष्ट्रीयतावादी तथा अंतरराष्ट्रीयतावादी, दोनों संप्रदायों को अपनाया जाये |
2. इस विचारधारा के अनुसार सर्वप्रथम हिंदी के उपलब्ध शब्दों को ग्रहण किया जाए, उसके बाद हिंदी में रचे-बसे सभी देशी भाषाओं के तथा विदेशी भाषाओं के शब्द लिए जाएं यदि फिर भी काम न चले और किसी अप्रचलित विदेशी शब्द को हिंदी में ग्रहण करना पड़े तो उसका हिंदी भाषा में अनुकूलन कर लिया जाए – जैसे ‘एकेडमी’ (Academy ) का अकादमी तथा ‘intrim’ का अंतरिम |
3. ऐसे पारिभाषिक शब्द जो अपने अंतरराष्ट्रीय रूप में ही हमारी भाषा में चलन में आ गए हैं, उन्हें ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया जाए |
4. ज्यों का त्यों स्वीकार कर ली गई अंतरराष्ट्रीय शब्दावली का देवनागरीकरण कर लिया जाए |

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