मूल्यांकन : अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं (Mulyankan : Arth, Paribhasha Aur Visheshtayen )
◼️ मूल्यांकन का अर्थ ( Meaning Of Evaluation )
मूल्यांकन अध्यापन-अधिगम प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण अंग है | यह पढ़ाने में अध्यापकों की तथा सीखने में विद्यार्थियों की मदद करता है |
मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है न कि आवधिक|मूल्यांकन मूल्य-निर्धारण में, शैक्षिक स्तर का आंकलन करने में तथा विद्यार्थियों की उपलब्धि को जानने में सहायक होता है |
मूल्यांकन, मूल्य-निर्धारण और मापन
( Mulayankan, Mulya Nirdharan Aur Mapan )
मूल्यांकन, मूल्य निर्धारण और मापन यद्यपि एक दूसरे से मिलते-जुलते शब्द हैं तथापि इनमें पर्याप्त अंतर है |
◼️ मूल्य निर्धारण – मूल्य निर्धारण का अर्थ है – वे प्रक्रियाएं और सामग्री जो विद्यार्थियों की प्राप्ति को मापने के लिए बनाई जाती हैं |
इसका मुख्य कार्य यह मालूम करना है कि कार्यक्रम के उद्देश्य किस सीमा तक पूरे हुए हैं |
▪️ वास्तव में मूल्य निर्धारण का अर्थ मूल्यांकन की तुलना में संकुचित है तथा मापन की तुलना में विस्तृत |
◼️ मापन – मापन मुख्यत: आंकड़ों को एकत्र करने से संबंध रखता है | जैसे- किसी परीक्षा में छात्रों के प्राप्तांक |
जिस प्रकार से वस्तुओं की लंबाई-चौड़ाई जैसी विशेषताओं का मापन किया जाता है, इसी प्रकार से व्यवहार-विज्ञान में इसका अर्थ है – मनोवैज्ञानिक विशेषताओं, जैसे – मानसिक विकृति और इसी तरह अन्य दृश्य घटनाओं के प्रति दृष्टिकोण को मापना |
मापन का अर्थ है शिक्षार्थी द्वारा किए गए किसी कार्य पर समंक देना जैसे 33/50 अर्थात 50 में से 33 अंक |
मूल्यांकन की आवश्यकता एवं महत्व/ उपयोगिता
( Mulyankan Ka Mahattv Evam Avashyakta )
👉 कक्षा के उद्देश्यों को पूरा करने में
👉 विद्यार्थियों क़ी अधिगम कठिनाइयां मालूम करने में
👉 नए अधिगम अनुभवों की तैयारी में
👉 विशिष्ट कार्यकलाप के लिए कक्षा में विद्यार्थियों के समूह बनाना
👉 समायोजन की समस्याओं का निराकरण करने में
👉 विद्यार्थी की प्रगति रिपोर्ट तैयार करने में
👉 मूल्यांकन शिक्षक को सही दिशा में प्रेरित करता है |
अच्छे मूल्यांकन की विशेषताएं
( Achche Mulyankan Ki Visheshtayen )
1️⃣ वैधता – वैध मूल्यांकन वह होता है जो वास्तव में उसी बात का परीक्षण करें जिसके बारे में वह जानना चाहता है अर्थात उदेश्य में वर्णित जो व्यवहार हमें जांचना है केवल उसी की जांच की जाए |
2️⃣ विश्वसनीयता – समतुल्य परिस्थितियों में किसी प्रश्न का उत्तर पूर्णत: एक ही प्रकार का होगा तो ऐसा मापन विश्वसनीय कहलाएगा |
यदि एक ही उत्तर पर एक परीक्षक 75 अंक देता है और दूसरा परीक्षक 45 अंक देता है तो मूल्यांकन विश्वसनीय नहीं माना जाएगा |
3️⃣ व्यावहारिकता – मूल्यांकन की प्रक्रिया, लागत, समय और प्रयोग व्यावहारिक होने चाहिए |
4️⃣ न्याय-संगतता – मूल्यांकन सभी विद्यार्थियों के लिए समान रूप से न्याय-संगत होना चाहिए | इसका अर्थ यह है कि विद्यार्थियों को मूल्यांकन के विषय में पहले से सूचना मिलनी चाहिए ; जैसे वह सामग्री जिसमें उसका परीक्षण होना है, परीक्षा की संरचना आदि के विषय में उसे जानकारी मिलनी चाहिए |
5️⃣ उपयोगिता – मूल्यांकन विद्यार्थी के लिए उपयोगी होना चाहिए | इसके परिणामों से विद्यार्थियों को अवगत होना चाहिए ताकि वह अपनी कमजोरियों को और जिन बातों में उसे महारत है, उनको जान सके | इस प्रकार वह अधिक सुधार लाने की सोच सकता है |
मूल्यांकन से ही पता चलता है कि किस दिशा में सुधार करना है – पठन सामग्री में, अध्यापन-विधि में या सीखने की शैली में |
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन ( Continuous And Comprehensive Evaluation )
विद्यालय में मूल्यांकन के अंतर्गत छात्रों के व्यक्तित्व के विकास संबंधी सभी क्षेत्रों को शामिल किया जाता है | इसमें शैक्षिक व गैर शैक्षिक दोनों क्षेत्र शामिल हैं | अत: यह व्यापक होता है |
▪️ मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया है | यह छात्र की क्षमताओं और उसकी कमियों को बार-बार बताती है ताकि उन्हें अपने आप को समझने तथा सुधारने का बेहतर अवसर मिलता रहे |
▪️ यह शिक्षकों को भी प्रतिपुष्टि ( Feedback ) उपलब्ध कराता है ताकि वे अपनी शिक्षण विधियों में सुधार कर सकें |
सतत एवं व्यापक मूल्यांकन [ continuous and Comprehensive Evaluation (CCE ) ] के प्रकार्य / उपयोगिता या महत्त्व
1️⃣ सतत मूल्यांकन से विद्यार्थी की प्रगति की सीमा और स्तर के निर्धारण में नियमित सहायता मिलती है |
2️⃣ सतत मूल्यांकन से कमजोरियों का निदान किया जा सकता है और इसकी सहायता से शिक्षक प्रत्येक अलग-अलग विद्यार्थी की योग्यता, कमजोरियों और उसकी आवश्यकताओं का पता लगा सकता है | इससे शिक्षक को तात्कालिक प्रतिपुष्टि (फीडबैक) प्राप्त होती है, जिसके आधार पर वह यह निर्णय करता है कि क्या किसी इकाई-विशेष के विषय का पूरी कक्षा में पुन: शिक्षण किया जाए अथवा कुछ विद्यार्थियों को उपचारी निर्देश दिए जाएं |
3️⃣ इससे शिक्षक को प्रभावी शिक्षा कार्य-नीति तैयार करने में सहायता मिलती है |
4️⃣ इससे क्षमता और अभिरुचियों के क्षेत्रों को सुनिश्चित किया जा सकता है |
5️⃣ इससे भविष्य के लिए अध्ययन क्षेत्र, पाठ्यक्रम आदि के चयन के संबंध में निर्णय लेने में सहायता मिलती है |
6️⃣ यह शैक्षिक और गैर-शैक्षिक क्षेत्रों में विद्यार्थी की प्रगति संबंधी सूचना उपलब्ध कराता है और इस प्रकार शिक्षार्थी की भावी सफलता का अनुमान लगाने में सहायता मिलती है |
Other Related Posts
मनोविज्ञान का सम्प्रत्य : अर्थ, परिभाषा और विशेषताएँ (Concept Of Psychology )
शिक्षा मनोविज्ञान ( Educational Psychology )
शिक्षा मनोविज्ञान प्रश्नोत्तरी -1 ( Shiksha Manovigyan Prashnottari -1)
शिक्षा मनोविज्ञान प्रश्नोत्तरी -2( Educational Psychology -2 )
बुद्धि : अर्थ एवं प्रकार ( Intelligence : Meaning and Types )
पियाजे का नैतिक विकास का सिद्धांत ( Piaget’s Moral Development Theory )
कोहलबर्ग का नैतिक विकास का सिद्धांत ( Kohlberg’s Theory Of Moral Development )
प्रयास एवं भूल सिद्धांत ( Thorndike’s Trial and Error Theory )
सक्रिय / नैमित्तिक अनुबंधन सिद्धांत ( Sakriya Ya Naimittik Anubandhan Siddhant )
पियाजे का संज्ञानात्मक विकास सिद्धांत
एरिक्सन का मनोसामाजिक सिद्धांत ( Erikson’s Psychosocial Development Theory