पारिभाषिक शब्दावली : राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय
( Paribhashik Shabdavali ke Nirman Ka Rashtriytavadi Siddhant )
पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर विद्वानों में आपसी मतभेद है | पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण को लेकर तीन संप्रदाय प्रचलित हैं – राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय, अंतरराष्ट्रीयतावादी संप्रदाय और समन्वयवादी संप्रदाय | कुछ विद्वान मानते हैं कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण राष्ट्रवादी सम्प्रदाय के अनुसार होना चाहिए| इस मत के समर्थक मानते हैं कि भारत में प्रयुक्त होने वाली पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के लिए संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग किया जाना चाहिए | अंतर्राष्ट्रीयवादी संप्रदाय के समर्थक अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को ज्यों का त्यों स्वीकार कर लेना चाहते हैं जबकि समन्वयवादी संप्रदाय के समर्थक दोनों संप्रदायों के समन्वित रूप को स्वीकार करने पर बल देते हैं |
🔷 राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय 🔷
( Rashtriytavadi Siddhant )
पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के राष्ट्रीयतावादी / शुद्धतावादी / संस्कृतवादी संप्रदाय के प्रवर्तक डॉ रघुवीर ( Dr. Raghuvir ) थे | इस मत के समर्थकों का मानना है कि भारतीय पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के लिए संस्कृत भाषा पूर्णतया सक्षम है | इस भाषा के माध्यम से निर्मित किए गए पारिभाषिक शब्द न केवल हिंदीभाषी लोगों के लिए बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं के लोगों के लिए भी सुबोध एवं ग्राह्य होंगे |
◼️ समर्थन में तर्क : पारिभाषिक शब्दावली के निर्माण के राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय के समर्थक प्रायः इसके समर्थन में निम्नलिखित तर्क देते हैं :
1. संस्कृत भाषा में 600 धातुएं, 80 प्रत्यय और 26 उपसर्ग हैं जिनसे लाखों शब्दों का निर्माण सरलता से किया जा सकता है |
2. संस्कृत भाषा से निर्मित के शब्द भारतीयों के लिए अंतरराष्ट्रीय शब्दावली की अपेक्षा अधिक ग्राह्य होंगे |
3. भारत की अधिकांश भाषाएं संस्कृत भाषा से निर्मित हैं | अत: संस्कृत भाषा से निर्मित पारिभाषिक शब्दावली अन्य भाषाओं के लोगों के लिए भी ग्राह्य होगी |
4. संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है | अतः संस्कृत भाषा में पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करना तर्कसंगत होगा |
इस भाषा में बने शब्द पारिभाषिक शब्दावली की परिभाषा ऊपर खरे उतरेंगे |
5. अन्य भाषाओं के शब्दों को हिंदी भाषा में ज्यों का त्यों स्वीकार करने से हिंदी भाषा विकृत हो जाएगी |
6. हिंदी भाषा कि अपनी अस्मिता को बचाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि हम अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण अपनी भाषा में करें |
7. राष्ट्रीयतावादी संप्रदाय के आधार पर पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करने से उन लोगों को भी संतुष्टि मिलेगी जो हर बात में भारतीय संस्कृति की महानता का गायन करते रहते हैं और किसी भी अंतरराष्ट्रीय देन को स्वीकार करने में संकोच करते हैं |
◼️ विपक्ष में तर्क : पारिभाषिक शब्दावली के राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क दिये जा सकते हैं :
1. पारिभाषिक शब्दावली के राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत के समर्थक यह तर्क देते हैं कि संस्कृत भाषा के माध्यम से सभी अंतरराष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दों का निर्माण किया जा सकता है परंतु यह कथन सत्य नहीं है |
2. पारिभाषिक शब्दावली के राष्ट्रीयतावाद सिद्धांत के समर्थक केवल अंतरराष्ट्रीय भाषा का ही विरोध नहीं करते बल्कि वे भारत में प्रचलित अन्य भाषाओं यहां तक कि हिंदी में प्रचलित तद्भव शब्दों का भी विरोध करते हैं | इसका परिणाम यह होगा कि पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण बहुत अधिक कठिन हो जाएगा और इस प्रकार निर्मित पारिभाषिक शब्दावली का प्रचलन सरलता से नहीं हो पाएगा |
3. पारिभाषिक शब्दावली के राष्ट्रीयतावादी सिद्धांत के समर्थकों का यह तर्क भी उचित प्रतीत नहीं होता कि संस्कृत भाषा में निर्मित शब्द भारतीयों के लिए अधिक ग्राह्य होंगे क्योंकि अन्य भाषाएं तो बड़ी दूर की बात अब हिंदी भाषी लोग भी संस्कृत के शब्दों से परहेज करते हैं |
4. वैश्वीकरण के इस दौर में अंतर्राष्ट्रीय पारिभाषिक शब्दावली को ज्यों का त्यों स्वीकार करना अधिक उपयुक्त होगा |
◼️ समाधान
इस सिद्धांत के समर्थकों का कहना है कि कुछ लोग यह कहकर इस सिद्धांत की आलोचना करते हैं कि इस प्रकार बने शब्द अधिक कठिन होंगे लेकिन उन लोगों को यह बात ध्यान में रखनी चाहिए की अंग्रेजी भाषा में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्द भी ग्रीक और लैटिन धातु के प्रयोग से बने हैं | आरंभ में वे भी कठिन रहे होंगे लेकिन चलन में आने के बाद धीरे-धीरे वे जनसामान्य के द्वारा स्वीकार कर लिये गए | इसके अतिरिक्त हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पारिभाषिक शब्दावली सामान्य बोलचाल की शब्दावली नहीं है | यह विशेषज्ञों के द्वारा प्रयुक्त की जाने वाली शब्दावली है | अतः इसका कठिन होना स्वाभाविक ही है |
कुछ विद्वान यह सुझाव भी देते हैं कि भारत एक मिश्र संस्कृति है इसलिए पारिभाषिक शब्द ऐसे होने चाहिए जो संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेजी, तद्भव देशज व विदेशी शब्दों के सहयोग से बने हों |
◼️ निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है की पारिभाषिक शब्दावली के राष्ट्रीयतावादीसिद्धांत का अपना विशिष्ट महत्व है | हिंदी भाषा के लिए पारिभाषिक शब्दावली का निर्माण करते समय इसी सिद्धांत को प्राथमिकता दी जानी चाहिए लेकिन यह तथ्य भी स्वीकार करना चाहिए कि सभी शब्दों का निर्माण इस सिद्धांत के द्वारा नहीं किया जा सकता | ऐसी स्थिति में हमें अंतरराष्ट्रीयतावादी सिद्धांत और समन्वयवादी सिद्धांत का प्रयोग करने में संकोच नहीं करना चाहिए |
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