प्रेस की स्वतंत्रता ( Press Ki Svatantrta )

 जब से आधुनिक प्रेस की स्थापना हुई है तभी से प्रेस  की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के प्रयास किए जाते रहे हैं | विशेषत: जब पत्रकारिता सरकार के विरुद्ध मुखर होती है तो प्रेस की आजादी पर खतरा मंडराने लगते हैं | 1878 ईस्वी में वर्नाकुलर प्रेस एक्ट से लेकर 1975 की इमरजेंसी के समय तथा वर्तमान में सरकार के द्वारा एनडीटीवी के विरुद्ध उठाए गए कदम इसका प्रमाण हैं | जहां सरकारें प्रेस पर अंकुश लगाकर उसकी स्वतंत्रता को छिनती हैं वहीं दलाल पत्रकारों के द्वारा अपनी नीतियों की प्रशंसा करवाकर भी प्रेस को उसके वास्तविक उत्तरदायित्व से भटकाती हैं | बदले में उन पत्रकारों तथा उन टीवी चैनलों व समाचार पत्रों के मालिकों या पत्रकारों को अनेक अप्रत्यक्ष लाभ दिए जाते हैं |  कभी-कभी प्रत्यक्ष रूप से भी सरकारें उनके साथ आ खड़ी होती हैं | वर्तमान में ज़ी टीवी ग्रुप के सर्वेसर्वा सुभाष चंद्रा ( 2016  में हरियाणा से राज्यसभा सांसद चुने गए ) को सत्तासीन दल के द्वारा राज्यसभा के लिए चुनना इस बात की पुष्टि करता है कि सरकार और मीडिया के बीच हमेशा से मिलीभगत रही है – कभी प्रच्छन्न तो कभी प्रत्यक्ष |
सर्वप्रथम यह जान लेना आवश्यक है कि प्रेस की स्वतंत्रता से क्या अभिप्राय है | संक्षेप में विभिन्न एलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या न्यू मिडिया  सहित परम्परागत रूप से प्रकाशित पत्र-पत्रिकाओं को प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रेस की स्वतंत्रता कहा जाता है।

जहां तक प्रेस की स्वतंत्रता के विषय में उठाए गए कदमों की बात है, 1990 के दशक में इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास किया गया ज़ब विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस ( 3 मई )  की स्‍थापना 1991 में यूनेस्‍को और संयुक्‍त राष्‍ट्र के जन सूचना विभाग ने मिलकर की थी। तब से हर साल 3 मई को विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। इससे पहलेे नामीबिया में विंडहॉक  में हुए सम्मेलन मेंं प्रेस की स्वतंत्रता सम्मेलन पर जोर दिया गया था |
संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा ने भी 3 मई को विश्‍व प्रेस स्‍वतंत्रता की घोषणा की थी । यूनेस्‍को ने  1993 में इससे संबंधित प्रस्‍ताव को स्‍वीकार किया गया था।
इस दिन के मनाने का उद्देश्‍य प्रेस की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है | प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात करने वाली अनेक बातों जैसे  प्रकाशनों की कांट-छांट, उन पर जुर्माना लगाना, प्रकाशन को निलंबित कर‍ देना और बंद कर‍ देना आदि रोकथाम करना विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का मुख्य उद्देश्य कहा जा सकता है | इनके अलावा पत्रकारों, संपादकों और प्रकाशकों को परेशान किया जाता है और उन पर हमले भी किये जाते हैं। रवीश कुमार जैसे पत्रकारों को सोशल मीडिया पर गालियां देना, जान से मारने की धमकी देना और गौरी लंकेश ऐसे पत्रकारों की हत्या कर देना भी प्रेस की स्वतंत्रता के लिए उठाए गए बहुत भयानक कदम कहे जा सकते हैं |
इस प्रकार की घटनाएं विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का महत्व वर्तमान में और अधिक पढ़ा जाती है | इस प्रकार यह दिन प्रेस की आजादी को बढ़ावा देने और इसके लिए दुनिया भर में सार्थक प्रयासों को प्रोत्साहित करने की दिशा में काम करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण दिवस है |

प्रेस की आजादी जैसे कि पहले कहा जा चुका है विभिन्‍न इलैक्‍ट्रोनिक माध्‍यमों और प्रकाशित सामग्री तथा फोटोग्राफ वीडियो आदि के जरिए संचार और अभिव्‍यक्ति की आजादी है। इस प्रकार मोटे तौर पर प्रेस की आजादी का मुख्‍य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्‍य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की आजादी की रक्षा जरूरी है। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। किसी भी  लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है, और भारत उनमें से एक है |  आज हर व्यक्ति व्यस्त है | पहले की भांति घण्टों गप्पे मारना, आस-पड़ोस और देश प्रदेश की घटनाओं की चर्चा करना आज हमारी दिनचर्या में नहीं | ऐसी में देश विदेश की खबरें प्राप्त करने के लिए मीडिया ही एकमात्र सहारा है | हमारे पास इतना समय नहीं है कि हम उन खबरों की सत्यता को परख सकें | ऐसे में स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है | पत्रकारिता के माध्यम से हम देश के युवा को जैसे चाहे वैसे दिशा दे सकते हैं | अगर पत्रकारिता चाटुकार है तो शासक अपनी घोर असफलताओं पर भी जनता से श्रेय ले सकता है अथवा यूं कहिए कि अपने घर असफलताओं का भी जश्न मना सकता है | हमें समझना चाहिए कि प्रेस केवल खबरे पहुंचाने का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह नये युग के निर्माण और जन चेतना जागृत  करने का भी सशक्त माध्यम है। प्रेस केवल यथास्थिति ही नहीं दिखाती, बल्कि भविष्य के सपने भी दिखाती है | मीडिया सरकार की बुराइयों को भी उजागर करती है और उसे अच्छे कदम उठाने के सुझाव भी देती है | वास्तव में मीडिया हमारे संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों की भांति है जो सरकारों को मानव की मूलभूत आवश्यकताओं पूर्ति की दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करते हैं |
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस जहाँ एक ओर प्रेस की स्वतंत्रता का जश्न मनाता है वहीं दूसरी ओर  दुनिया भर में प्रेस की आजादी का मूल्यांकन करने का अवसर भी है |  यह दिवस हमें प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिये सचेत रहने का स्मरण दिलाता है | यह दिवस मीडिया की आजादी पर हमलों से मीडिया की रक्षा करने, के साथ-साथ  मरने वाले पत्रकारों को श्रद्धांजलि अर्पित करने का कार्य करता है।  प्रेस की आजादी का मुख्य रूप से यही मतलब है कि शासन की तरफ से इसमें कोई दखलंदाजी न हो, लेकिन संवैधानिक तौर पर और अन्य कानूनी प्रावधानों के जरिए भी प्रेस की स्वतंत्रता  की रक्षा जरूरी है। यह दिवस प्रेस के सम्मुख आने वाली विभिन्न बाधाओं  एवं संकटों के बीच अपने प्रयासों के दीप जलाये रखने के संकल्प का दिवस है |

                    प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ

प्रेस की स्वतंत्रता  का सामान्य अर्थ  है – किसी भी व्‍यक्ति को अपनी राय प्रस्तुत करने और सार्वजनिक तौर पर इसे जाहिर करने का अधिकार है। एक तरह से यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का द्योतक है |  इस स्वतंत्रता में बिना किसी हस्तक्षेप  के किसी मुद्दे पर अपना पक्ष रखने  तथा किसी भी मीडिया के जरिए,  सूचना और विचार हासिल करने और सूचना  देने की आजादी शामिल है। यह स्वतंत्रता केवल देश की सीमा के भीतर ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर है | इसका उल्‍लेख संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा घोषित मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुछेद 19 में किया गया है।

                              उपसंहार

वर्तमान समय में  सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी तथा मीडिया के नए स्वरूप सोशल मीडिया के जरिए थोड़े समय के अंदर ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों तक सभी तरह की महत्‍वपूर्ण ख़बरें पहुंच जाती हैं। यह समझना भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि सोशल मीडिया की सक्रियता से प्रेस की स्वतंत्रता का विरोध करने वालों को भी स्‍वयं को संगठित करने के लिए बढ़ावा मिला है और इसके द्वारा संगठित होकर ऐसे तत्व मीडिया कर्मियों को धमका रहे हैं और उनको पर जानलेवा हमले कर रहे हैं |
यहां यह भी ध्यातव्य है कि अभी तक की गई कोशिशों के बावजूद मीडिया न तो पूरी तरह से स्वतंत्र है और न  ही निष्पक्ष | यद्यपि मीडिया की आजादी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन वर्तमान हालातों को देखते हुए लगता है कि यह प्रयास  पर्याप्त नहीं हैं | दुनिया के बहुत से देशों में पत्रकारों को अपनी जान बचाने के लिए अपने देश  से भागना पड़ा और दूसरे देश में शरण लेनी पड़ी | शुक्र है कि भारत में अभी ऐसी स्थिति तो नहीं है परंतु विगत कुछ वर्षों में बिगड़ी अवश्य है जो चिंता का विषय है |

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