एरिक्सन के सिद्धांत के अनुसार पूरे जीवन में विकास के आठ चरण क्रमानुसार चलते रहते हैं | प्रत्येक चरण में एक विशिष्ट विकासात्मक मानक होता है जिसे पूरा करने में आने वाली समस्याओं का समाधान करना आवश्यक होता है |
🔹 एरिक्सन के अनुसार समस्या कोई संकट नहीं है बल्कि संवेदनशीलता और सामर्थ्य को बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण बिंदु होती है | कोई व्यक्ति समस्या का जितनी सफलता के साथ समाधान करता है उसका उतना ही अधिक विकास होता है |
मनोसामाजिक सिद्धांत के आठ चरण ( Stages Of Erikson’s Psychosocial Development Theory )
🔹1. विश्वास बनाम अविश्वास ( Trust Vs Mistrust )
यह एरिकसन का पहला मनोसामाजिक चरण है जिसका जीवन के पहले वर्ष में अनुभव किया जाता है | विश्वास के अनुभव के लिए शारीरिक आराम, कम से कम डर, भविष्य के प्रति कम से कम चिंता है जैसी स्थितियों की आवश्यकता होती है | विश्वास के अनुभव से सकारात्मक विचार आते हैं ; जैसे – संसार रहने के लिए अच्छी जगह है |
2. स्वायत्तता बनाम शर्म (Autonomy Vs Shame )
एरिक्सन के दूसरे विकासात्मक चरण में यह स्थिति शैशवावस्था के उत्तरार्ध में ( बाल्यावस्था से पहले ) आती है | अपने पालक के प्रति विश्वास होने के बाद बालक यह आविष्कार / मान्यता स्थापित करता है कि यह व्यवहार उसका स्वयं का है | वह अपने आप में स्वायत्त है | अगर बालक पर अधिक बंधन लगाए जाएं या कठोर दंड दिया जाए तो उसके अंदर शर्म या संदेह की भावना विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है |
3. पहल बनाम अपराध बोध ( Initiative Vs Guilt )
यह चरण पाठशाला जाने के आरंभ में होता है यह प्रारंभिक शैशवावस्था की तुलना में अधिक चुनौतियों भरा चरण है | इस उम्र में बच्चों को उनके शरीर, उनके खिलौने और पालतू पशुओं के बारे में ध्यान देने को कहा जाता है | अगर बालक गैर जिम्मेदार है और उसे बार-बार मजबूर किया जाता है तो उसके अंदर अपराध बोध की भावना विकसित हो सकती है |
4. उद्यम बनाम हीन भावना ( Industry Vs Inferiority )
यह चरण बाल्यावस्था के मध्य में परिलक्षित होता है | बालक द्वारा की गई पहल से वह नए अनुभवों के संपर्क में आता है और जैसे-जैसे वह बचपन के मध्य और अंत तक पहुंचता है तब तक वह अपनी उर्जा को बौद्धिक कौशल और ज्ञान हासिल करने की दिशा में मोड़ देता है | बाल्यावस्था का अंतिम चरण कल्पनाशीलता से भरा होता है | यह समय बच्चे के सीखने का सबसे अच्छा समय है वह जिज्ञासा से भरा होता है | इस चरण में बालक में हीन भावना उत्पन्न हो सकती है वह स्वयं को अयोग्य व हीन समझ सकता है |
5. पहचान बनाम पहचान-भ्रान्ति ( Ego Vs Role Confusion )
यह चरण किशोरावस्था में होता है | इसमें व्यक्ति को इन प्रश्नों का समाधान करना पड़ता है कि वह कौन है, किससे संबंधित है और उनका जीवन कहां जा रहा है? किशोरों को बहुत सी नई भूमिकाओं का सामना करना पड़ता है ; जैसे – व्यावसायिक व रोमांटिक | यदि इसके सकारात्मक रास्ते पता लगाने का मौका ना मिले तब पहचान-भ्रान्ति ( Role Confusion ) की स्थिति हो जाती है |
6. आत्मीयता बनाम अलगाव ( Intimacy Vs Isolation )
यह एरिक्सन का छठा चरण है | इसका अनुभव युवावस्था के आरंभिक वर्षों में होता है | यह व्यक्ति के पास दूसरों से आत्मीय संबंध स्थापित करने का विकासात्मक मानक है | ऐरिक्सन का मत है कि आत्मीयता का अर्थ है स्वयं को दूसरे में खोजना | व्यक्ति की किसी अन्य व्यक्ति के साथ मित्रता विकसित हो जाती है और एक आत्मीय ( Intimacy ) संबंध बन जाता है यदि ऐसा नहीं होता तो अलगाव ( Isolation ) की भावना उत्पन्न हो जाती है |
7. उत्पादकता बनाम स्थिरता (Generativity Vs Stagnation )
यह ऐरिक्सन का सातवां चरण है जो मध्य-वयस्क अवस्था में अनुभव होता है | इस चरण का मुख्य उद्देश्य नई पीढ़ी के विकास में सहायता से संबंधित होता है | नई पीढ़ी के लिए कुछ नहीं कर पाने की भावना से स्थिरता की भावना उत्पन्न होती है |
8. संपूर्णता बनाम निराशा ( Ego Integrity Vs Despair )
यह ऐरिक्सन के मनोसामाजिक सिद्धांत का आठवां एवं अंतिम चरण है | यह वृद्धावस्था में अनुभव होता है | इस चरण में व्यक्ति अपने अतीत को टुकड़ों में याद करता है और एक सकारात्मक निष्कर्ष निकालता है या फिर बीते हुए जीवन के बारे में असंतुष्टि भरी सोच बना लेता है | अच्छी सोच से संपूर्णता की भावना का विकास होता है | नकारात्मक सोच से निराशा की भावना का विकास होता है |
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