गोदान ( Godan ) मुंशी प्रेमचंद जी की एक प्रौढ़ रचना है | इसमें मुंशी प्रेमचंद ( Premchand ) जी ने अपने युग का यथार्थ वर्णन किया है | प्रेमचंद कलम के सिपाही माने जाते हैं | वे अपनी लेखनी के माध्यम से ग्रामीण समस्याओं को सुलझा कर नारकीय जीवन जीने वाले ग्रामीणों को दुखों से मुक्ति दिलाना चाहते थे तथा शहरी जीवन की समस्याओं को दूर करके वहां मानवता का प्रचार करना चाहते थे | इसी कारण गोदान उपन्यास में गोदान में ग्रामीण व नागरिक कथाएं एक साथ चलती हैं | एक ओर ग्राम का यथार्थ चित्रण है तो दूसरी और शहरी जीवन का यथार्थ अंकन |
1. गोदान में ग्रामीण संस्कृति
गोदान मुख्य रूप से ग्रामीण संस्कृति का दस्तावेज है | उपन्यास का नायक होरी लखनऊ के बेलारी गांव का रहने वाला है | यह गांव राय साहब अमरपाल सिंह की जमींदारी में आता है | वह उसका खूब शोषण करता है | सभी किसान उसके शोषण का शिकार थे | जमींदार राय साहब के अतिरिक्त साहूकार, ब्राह्मण, पंच, पुलिस आदि भी ग्रामीणों पर अत्याचार करते थे | वे उन्हें लूटने का कोई अवसर नहीं चूकते थे | गांव प्राय: जिस भोलेपन व परस्पर सद्भाव के लिए जाने जाते हैं, उसके उदाहरण गोदान में कम ही मिलते हैं | केवल होरी ही एक ऐसा पात्र हैं जो आरंभ से लेकर अंत तक दया, सद्भाव व मर्यादा की मूर्ति बना रहता है |
मुख्य रूप से गोदान उपन्यास में ग्रामीण व नागरिक समाज में प्रचलित बुराइयों या समस्याओं का यथार्थ वर्णन है | ग्रामीण कथा में जिन बुराइयों का वर्णन है उन्हें निम्नांकित बिंदुओं के द्वारा समझा जा सकता है : –
(क ) ऋण की बुराई या समस्या
गोदान की मूल समस्या ऋण संबंधी समस्या है | होरी जैसे किसानों को जमींदार राय साहब दोनों हाथों से लूटते हैं | लगान, बेगार, नजराना, शगुन आदि न जाने कितनी प्रथाएं हैं जिनके माध्यम से किसानों को लूटा जाता है | वह मजबूर होकर यह सब चुकाते हैं | कई बार उन्हें साहूकारों से ऋण लेना पड़ता है | इस ऋण पर ब्याज बढ़ता जाता है | फिर यह ऋण कभी नहीं उतरता | उनका शोषण करने वाला गांव में केवल एक मगरमच्छ नहीं बल्कि दातादिन, झिंगुरी सिंह, सहुआइन दुलारी, नोखे राम आदि अनेक हैं | होरी ( Hori ) अकेला ही कर्जदार नहीं है बल्कि गांव के अन्य किसान भी इसी प्रकार ऋण के बोझ से दबे हैं | उनका ऋण भी लगातार बढ़ता जा रहा है | ऋण चुकाने की चिंता केवल होरी ( Hori ) की नहीं उस जैसे अनेक किसानों की है | एक स्थान पर लेखक कहता है – ” उसे संतोष था तो यही कि यह विपत्ति अकेले उसी के सिर पर न थी | प्राय: सभी किसानों का यही हाल था |”
अधिकांश की दशा तो उससे भी बदतर थी | शोभा और हीरा को होरी से अलग हुए अभी कुल तीन साल ही हुए थे मगर दोनों पर चार-चार सौ रुपये का बोझ लद लग गया था | झींगुर दो हल की खेती करता है परंतु उस पर भी एक हजार का ऋण है | जियावन मेहतो के घर भिखारी भी भीख नहीं पाता |
परंतु किसानों की इस ऋण की समस्या को प्रेमचंद ( Premchand ) ने मुख्यत: होरी के माध्यम से स्पष्ट किया है | होरी ऋण से इतना दब जाता है कि उसे बेदखली से बचने के लिए मानो अपनी बेटी रूपा को बेचना पड़ता है | वह एक प्रौढ़ व्यक्ति रामसेवक से रूपा का विवाह कर देता है और उससे 200 रुपये ले लेता है |
वस्तुतः यह शोषण इतना अधिक था कि ग्राम की दशा बहुत दु:खद थी | होरी जैसे किसान अपना सब कुछ लुटा बैठे थे |
( ख ) शोषण की बुराई
जमींदार प्रथा में शोषण अपने चरम पर था | दीन-हीन व बेबस व्यक्ति का चारों तरफ से शोषण किया जाता था | होरी एक गरीब व ईमानदार किसान है परंतु सभी उसका शोषण करते हैं | होरी के अतिरिक्त धनिया, हीरा, शोभा, सिलिया आदि सभी का किसी ने किसी प्रकार से शोषण होता है | इसका मूल कारण है उनकी रूढ़िवादिता, धर्मांधता व मर्यादा का बंधन | किसान बेचारा गर्मी-सर्दी, आंधी, लू, वर्षा के थपेड़ों को सहकर खेत में अन्न उपजाता है परंतु उसका अन्न खेतों से ही उठ जाता है | जमींदार, पटवारी, पंडित, दरोगा सभी तो उसको लूटते हैं |
रामसेवक एक स्थान पर कहता है – ” थाना पुलिस कचहरी सब हैं हमारी रक्षा के लिए लेकिन रक्षा कोई नहीं करता | चारों तरफ से लूट है | जो गरीब है, बेबस है, उसकी गर्दन काटने के लिए सभी तैयार रहते हैं |”
वस्तुतः यह शोषण इतना अधिक था कि ग्राम की दशा बहुत दुखद थी होरी जैसे किसान अपना सब कुछ लुटा बैठे थे |
( ग ) छुआछूत की बुराई
अस्पृश्यता की समस्या प्रेमचंद ( Premchand ) के युग से भी बहुत पुरानी है | प्रेमचंद ने अपने अनेक उपन्यासों में इस बुराई पर आघात किया है | उन्होंने अपने आप को श्रेष्ठ समझने वाले ब्राह्मणों व पंडितों के काले कारनामों को अपने उपन्यासों में उजागर किया है | गोदान ( Godan ) उपन्यास में भी इस समस्या पर पर्याप्त विचार किया गया है | मातादीन ब्राह्मण है और सीलिया चमारिन | मातादीन सीलिया की मजबूरी का लाभ उठाकर अपने प्रेम-जाल में उसे फंसा लेता है | वह अपने जनेऊ की कसम खाकर उसे पत्नी के रूप में स्वीकार करता है परंतु सिलिया का सतीत्व लूटकर उसे कहीं का नहीं छोड़ता और उसे स्वीकार करने से मना कर देता है परंतु प्रेमचंद इस समस्या को यहीं तक सीमित नहीं रखता | उनकी नजर में ऐसे ब्राह्मणों को सबक अवश्य मिलना चाहिए यही कारण है कि एक दिन सिलिया की मां के साथ कुछ चमार आते हैं और मातादीन की जनेऊ तोड़ देते हैं | उसकी खूब दुर्गति करते हैं उसके मुंह में हड्डी देकर उसका ब्राह्मणत्व नष्ट कर देते हैं |
होरी ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा रखता है परंतु मातादीन की कहानी सुनकर वह भी उसको धिक्कारने लगता है – ” कसाई कहीं का कैसा तिलक लगाए हुए हैं | मानो भगवान का असली भगत है | रंगा हुआ सियार |”
इस प्रकार प्रेमचंद ने गोदान उपन्यास में तथाकथित श्रेष्ठ जातियों को बेनक़ाब किया है |
( घ ) अंतरजातीय विवाह की अस्वीकृति
प्रेमचंद ने गोदान उपन्यास में कुछ उपकथाओं के माध्यम से अंतरजातीय विवाह की समस्या को भी उजागर किया है क्योंकि उस समय इस प्रकार के विवाह मान्य नहीं थे | ऐसे विवाह करने वालों का सामाजिक बहिष्कार किया जाता था | गोबर मेहतो है तथा झुनिया अहिरन | गोबर और झुनिया का परस्पर प्रेम हो जाता है | झुनिया गर्भवती हो जाती है और गोबर शहर भाग जाता है | एक बार तो होरी और धनिया भी झुनिया को अपने घर शरण नहीं देना चाहते लेकिन बाद में होरी दयामूर्ति होने के कारण झुनिया को अपने घर में शरण देता है | इसका भयंकर परिणाम होरी को भुगतना पड़ता है | पंच उस पर ₹100 नकद तथा 30 मन अनाज का दंड लगाते हैं | होरी असमर्थ होते हुए भी यह दंड स्वीकार कर लेता है |
अंतरजातीय विवाह के अनेक उदाहरण इस उपन्यास में मिलते हैं – पंडित मातादीन व सिलिया चमारिन, गौरीराम मेहतो व चमारिन का विवाह, झिंगुरी सिंह व ब्राह्मणी का विवाह आदि |
प्रेमचंद इस अंतर्जातीय विवाह-परंपरा का समर्थन करते हुए नजर आते हैं | वे यह काम अपने उपन्यास के कुछ पात्रों के संवादों के माध्यम से करते हैं | एक स्थान पर मातादीन कहता है – ” मैं ब्राह्मण नहीं चमार ही रहना चाहता हूँ | जो अपना धर्म माने वह ब्राह्मण, जो धर्म से मुंह मोड़े वह चमार |”
( ङ ) नारी-दुर्दशा
ग्रामीण कथा में नारी शोषण के अनेक चित्र मिलते हैं | धनिया गरीबी के कारण दु:ख भोग रही है | उसकी बेटी रूपा की शादी एक प्रौढ़ रामसेवक से हो जाती है | बदले में वह ₹200 देता है | यह वास्तव में नारी शोषण की पराकाष्ठा है | ठीक ऐसी ही स्थिति गांव की अन्य महिलाओं की है | गोबर झुनिया से प्रेम विवाह करता है परंतु उसके विवाह को अवैध बताया जाता है | गोबर भाग जाता है पीछे से झुनिया गर्भवती होकर अनेक दु:ख भोगती है | वह तो शुक्र है होरी का कि वह उसे अपनी पुत्रवधू स्वीकार कर लेता है परंतु उसके बदले में होरी को ₹100 नकद व 20 मन अनाज का हर्जाना भरना पड़ता है | घर पहले ही तंगहाल था | अब घर में और मंदी आ जाती है | खाने के लाले पड़ जाते हैं | धनिया, झुनिया व घर के अन्य सदस्यों को अनेक कष्ट झेलने पड़ते हैं | झुनिया को लोगों के ताने भी सुनने पड़ते हैं |
ब्राह्मण दातादीन कामुक स्वभाव का है | वह गरीब महिलाओं पर बुरी नजर रखता है और अक्सर उन्हें कामुक प्रस्ताव देता है | कुछ औरतें गरीबी व बेबसी के कारण उसका शिकार बन जाती हैं | उसका पुत्र मातादीन भी ऐसा ही है | वह सिलिया को अपने प्रेम जाल में फंसा लेता है और उसे कामवासना पूर्ति का साधन बना लेता है | धनी झिंगुरी सिंह कामवासना में इतना लिप्त है की पहली पत्नी की मृत्यु के पश्चात तुरंत दूसरा विवाह कर लेता है और जब उससे कोई संतान उत्पन्न नहीं होती तो पचास साल की उम्र में तीसरा विवाह कर लेता है | गौरीराम मेहतो एक चमारिन को फंसाए था |
इस प्रकार प्रेमचंद जी ने दिखाया है कि ग्रामीण परिवेश में स्त्रियों की स्थिति शोचनीय थी | लोग स्त्री को भोग विलास की वस्तु मानते थे और उनका शारीरिक शोषण करना चाहते थे |
2. गोदान में नागरिक जीवन
गोदान में विशेष रुप से तत्कालीन लखनऊ शहर का वर्णन मिलता है जिससे कुछ दूरी पर खोरी का गांव बेलारी है | जहां ग्रामीण जीवन अभावग्रस्त है वहीं शहरी जीवन आनंदमय है परंतु यह आनंद उच्च वर्ग तक सीमित है | शहर में अनैतिकता, फूहड़ता, नारी-उत्पीड़न, नारी-उच्छृंखलता आदि समस्याएं हैं |
शहरी कथा को निम्नलिखित बिंदुओं से समझा जा सकता है :-
( क ) जमींदार वर्ग
उपन्यास में रायसाहब अमरपाल सिंह अवध प्रांत के जमींदार हैं | उनके अधीन सभी किसान उनका कहना मानते हैं | रायसाहब के कारिंदे किसानों से लगान, नजराना आदि वसूल करते हैं | किसानों से इतना अधिक वसूला जाता था जितना उन्हें खेती से नहीं मिलता था | अतः सभी किसान दुखी थे |
इसमें कोई संदेह नहीं कि जमींदार वर्ग किसानों का शोषण करता था परंतु जमींदारों की भी अपनी कुछ समस्याएं थी | उन्हें भी बड़े अफसरों को रिश्वत देनी पड़ती थी | बड़े अफसरों के दौरे पर आने पर व शिकार खेलने जाने पर जमींदार उनके पीछे लगे रहते थे |जिस प्रकार रायसाहब दूसरों का शोषण करते थे उसी प्रकार रायसाहब जैसे जमींदारों का भी शोषण होता था परंतु यह सारा धन आगे किसानों से प्राप्त करते थे भले ही उनके पास कुछ हो या ना हो |
प्रेमचंद इस समस्या का समाधान देते हुए कहते हैं कि यदि जमींदारी प्रथा समाप्त कर दी जाए तो न तो इन जमींदारों को कष्ट होगा और न ही किसानों को |
( ख ) मिल-मजदूर
गोदान उपन्यास में मिस्टर खन्ना चीनी मिल के मालिक हैं | उनकी मिल में वेतन को लेकर मजदूर हड़ताल कर देते हैं | मिस्टर खन्ना मजदूरी कम देते हैं तो हड़ताल भयंकर रूप धारण कर लेती है | जिसका प्रभाव मिस्टर खन्ना पर भी पड़ता है और मिल मजदूरों पर भी | मजदूरों की नौकरी चली जाती है | गोबर की नौकरी भी चली जाती है और उसे चोट भी लगती है | इस प्रकार गोदान उपन्यास में मजदूरों की समस्याओं को भी उठाया गया है | उनके दर्द को भी अभिव्यक्ति मिली है परंतु कोई समाधान नहीं निकल पाता | जीत पूंजीपतियों की ही होती है परंतु प्रेमचंद मजदूरों की समस्याओं को पाठकों तक लाने में सफल सिद्ध हुए हैं |
( ग ) नारी शिक्षा
प्रेमचंद से पूर्व ही भारत में नारियाँ उच्च शिक्षा ग्रहण करने लगी थी परंतु ऐसी नारियों की संख्या बहुत कम थी | मिस मालती इंग्लैंड में पढ़ी है और एम बी बी एस की परीक्षा पास करके डॉक्टर बन गई है | वह पाश्चात्य रंग में रंगी है | परंतु प्रेमचंद ऐसा नहीं चाहते | वह नारी शिक्षा के तो समर्थक हैं परंतु पाश्चात्य सभ्यता के नहीं |
एक स्थान पर प्रोफेसर मेहता कहते हैं – ” मैं नहीं कहता देवियों को विद्या की आवश्यकता नहीं है | है और पुरुषों से अधिक है, मैं नहीं कहता देवियों को शक्ति की आवश्यकता नहीं है | है और पुरुषों से अधिक है लेकिन वह विद्या और वह शक्ति नहीं जिससे पुरुषों ने संसार को हिंसा-क्षेत्र बना डाला है |”
वस्तुतः प्रेमचंद स्त्रियों को शिक्षित भी बनाना चाहते थे और उन्हें सेवा व त्याग की मूर्ति भी बनाना चाहते हैं |
( घ ) नारी-स्वतंत्रता व अधिकार
प्रेमचंद ने नारी-स्वतंत्रता और अधिकारों की समस्या को एक अलग ढंग से लिया है | प्रेमचंद नारी-स्वतंत्रता के पक्षधर थे परंतु उन्हें वे अधिकार न देना चाहते थे जो पुरुषों को प्राप्त हैं | वे नहीं चाहते थे कि नारी पाश्चात्य-सभ्यता से परिपूर्ण हो | वे चाहते थे कि नारी पर कोई अत्याचार न हो, अनुचित बंधन न हो परंतु एक मर्यादा अवश्य हो |
मिस्टर खन्ना की पत्नी गोविंदी समझदार भारतीय नारी है | वह पति द्वारा तिरस्कृत है परंतु प्रोफ़ेसर मेहता उसे न्यायालय जाने से रोकते हैं और उसे गृहस्थ जीवन को सार्थक बनाने का उपदेश देकर घर वापस भेज देते हैं |
अतः प्रेमचंद नारी स्वतंत्रता तो चाहते हैं परंतु उसे पाश्चात्य संस्कृति से दूर रखना चाहते हैं | वास्तव में मुंशी प्रेमचंद जी की नारी-स्वतंत्रता की परिभाषा उस परिभाषा से भिन्न है जो प्राय: आधुनिक विचारक प्रस्तुत करते हैं | इस दृष्टिकोण से मुंशी प्रेमचंद जी कितने सही हैं यह एक अलग विषय है |
( ङ ) स्वच्छंद प्रेम
प्रेमचंद ने गोदान उपन्यास में स्वच्छंद प्रेम का विरोध किया है | मिस मालती एक पाश्चात्य सभ्यता में पली नारी है | विदेशी शिक्षा के कारण वह तितली बनकर रहती है | मिल मालिक मिस्टर खन्ना उस पर लट्टू हैं | वह दिल से प्रोफेसर मेहता को चाहती है | वह स्वयं मिस्टर खन्ना से कहती है – “मैं रूपवती हूं | तुम भी मेरे चाहने वालों में से एक हो |”
परंतु प्रेमचंद इस प्रकार की नारी को भारतीय गुणों से युक्त नारी नहीं मानते | स्वच्छंद प्रेम उन्हें उचित प्रतीत नहीं होता | वह मालती के जीवन में परिवर्तन लाकर उसे सेवा व त्याग की मूर्ति बना देते हैं | उसकी दृष्टि में सेवा और त्याग नारी के सबसे बड़े गुण हैं | संभवत: इसी कारण प्रेमचंद ने मालती का प्रेम-संबंध प्रोफेसर मेहता से भी स्थापित नहीं करवाया |
◼️ उपर्युक्त विवेचन के आलोक में कहा जा सकता है कि गोदान उपन्यास में दो कथाएं एक साथ चलती हैं – ग्रामीण कथा व शहरी कथा | दोनों कथाओं में परिवेश का यथार्थ अंकन मिलता है | ग्रामीण कथा गांव में प्रचलित बुराइयों व समस्याओं का वर्णन करती है तथा शहरी कथा शहर का यथार्थ अंकन करती है | जहां तक अनेक विद्वान आलोचकों के इस आरोप का प्रश्न है कि गोदान में विच्छृंखलता है, अंशत: उचित प्रतीत होता है | दोनों कथाएं एक दूसरे के समानांतर चलती हैं | दोनों आपस में एक बिंदु पर नहीं मिलती लेकिन दोनों कथाएं एक दूसरे से अप्रत्यक्ष रूप से कहीं ना कहीं जुड़ी भी हैं | ग्रामीण जीवन की त्रासदी में बुरे शहरी पात्रों की सक्रियता और अच्छे शहरी पात्रों की उदासीनता निर्णायक भूमिका निभाती है | ठीक इसी प्रकार ग्रामीण जीवन में व्याप्त अज्ञानता, अंधविश्वास और रूढ़िवादिता भी शहरी जीवन के भोग-विलास, अत्याचारी प्रवृत्ति और ऐश्वर्य संपन्न जीवन शैली का एक कारण बनती है | अगर दोनों कथाएं आपस में नहीं भी जुड़ती तो भी अनुचित नहीं है | क्योंकि लेखक का मुख्य उद्देश्य युगीन परिवेश का यथार्थ अंकन है जिसमें लेखक पूर्णत: सफल रहा है | वास्तव में उपन्यासकार ने तत्कालीन समाज के प्रत्येक पक्ष को पाठकों के सामने जीवंत कर दिया है | केवल ग्रामीण कथा के होने से पाठक उस समय के शहरी जीवन की झलक से अछूते रह जाते | ऐसा लगता है कि मुंशी प्रेमचंद ( Munshi Premchand ) जी ने अपनी इस प्रौढ़ कृति के माध्यम से तत्कालीन शहरी व ग्रामीण समाज में व्याप्त सभी बुराइयों, उनके कारणों, कुप्रभावों व उनको दूर करने की आवश्यकताओं को एक ही रचना के माध्यम से कहने का अद्वितीय प्रयास किया है |
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