उपेंद्रनाथ अश्क ( Upendranath Ashk ) छायावादोत्तर काल के प्रसिद्ध नाटककार हैं | इन्होंने हिंदी नाटक को नई पहचान दी | इन्होंने अपनी लेखनी से अनेक नाटकों की रचना की जो हिंदी नाट्य विधा को नए आयाम प्रदान करते हैं |
अश्क़ जी के कुछ प्रसिद्ध नाटक निम्नलिखित हैं :-
जय-पराजय ( 1937 ),
वैश्या ( 1938 ),
लक्ष्मी का स्वागत ( 1938 ),
स्वर्ग की झलक ( 1939 ),
जोंक ( 1939),
आपस का समझौता ( 1939 ),
पहेली ( 1939 ),
देवताओं की छाया में ( 1939 ),
विवाह के दिन ( 1940 ),
छठा बेटा ( 1940 ),
नया-पुराना ( 1941 ),
चमत्कार ( 1941 ),
खिड़की ( 1941 ),
सूखी डाली ( 1941 ),
बहनें ( 1942 ),
कामदा ( 1942 ),
मेमुना ( 1942 ),
चिलमन ( 1942 ),
चुम्बक ( 1942 ),
तौलिये ( 1943 ),
तूफ़ान से पहले (1947 ),
चरवाहे ( 1948 ),
कस्बे के क्रिकेट क्लब का उद्घाटन ( 1950 ),
कैद और उड़ान ( 1950 ),
मस्केबाजों का स्वर्ग ( 1951),
पर्दा उठाओ पर्दा गिराओ ( 1951 ),
पैंतरे ( 1953 ),
अलग-अलग रास्ते ( 1954 ),
अंजो दीदी ( 1955 ),
अंधी गली के आठ एकांकी ( 1956 ),
भंवर ( 1961 ) |
उपेंद्रनाथ अश्क ( Upandranath Ashk, 1910-1996 ) जी के नाटक ‘जय-पराजय’ पर प्रसाद ( Prasad ) का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है परंतु अन्य नाटक अपनी अलग पहचान लिए हुए हैं |
‘कैद और उड़ान’ नाटक में एक ऐसी स्त्री का चित्रण है जो सामाजिक रूढ़ियों की कैद में घुटती रहती हैं और समस्त बंधनों को तोड़ स्वच्छंद आकाश में उड़ान भरना चाहती है |
‘अलग-अलग रास्ते’ में एक नारी समझौतावादी है तो दूसरी विद्रोह करने वाली |
‘भंवर’ में एक नारी के मन में उठने वाले भंवर का वर्णन है |
‘अंजो दीदी ( 1955)’ अश्क़ जी की सबसे प्रौढ़ रचना मानी जाती है | इस नाटक में अश्क़ जी ने उच्च मध्यम वर्ग केे खोखले संस्कारों को एक मानसिक रोग की भांति प्रस्तुत किया है | यह नाटक हिंदी नाटक विधा में उनका प्रतिनिधि नाटक माना जा सकता है |