पथ के साथी ( Path Ke Sathi ) महादेवी वर्मा ( Mahadevi Varma ) द्वारा रचित संस्मरणात्मक कृति है | इस रचना में उन्होंने अपने युग के सात महान साहित्यकारों से संबंधित संस्मरण प्रस्तुत किए हैं | इस रचना में महादेवी वर्मा की शैली भी निराली है और भाषा भी | जिस कृति की भाषा-शैली सुंदर व प्रभावशाली हो उसका प्रभाव भी चिरस्थाई होता है |
साहित्य की कोई भी विधा क्यों न हो कला-पक्ष और भाव-पक्ष हमेशा जुड़े होते हैं | कला-पक्ष यदि शरीर है तो भाव-पक्ष आत्मा |यह सही है कि प्रमुख तत्व आत्मा है लेकिन बाहरी सुंदरता का भी अपना ही महत्व होता है | सुंदर भाव को अगर सुंदर भाषा व भाषा-शैली के माध्यम से अभिव्यक्त किया जाए तो उसका महत्व व प्रभाव और अधिक बढ़ जाता है |
महादेवी वर्मा एक महान कवयित्री भी थी और महान गद्य लेखिका भी | पथ के साथी उनकी एक गद्य रचना है | महादेवी वर्मा की गद्य-शैली हिंदी गद्य-साहित्य में अनुपम है | उनकी भाषा आकर्षक भी है और प्रभावशाली भी | सामान्यत: उनकी भाषा और शैली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं :-
1. काव्यात्मकता
महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) मुख्यतः कवियत्री हैं | वे छायावाद के चार आधार स्तंभों में से एक मानी जाती हैं | अतः छायावाद ( Chhayavad ) में जो विशेषताएं मिलती हैं वही विशेषताएं उनके गद्य में भी दिखाई देती हैं | संस्कृतनिष्ठ भाषा में वे अपने भावों को अभिव्यक्त करती हैं | प्राकृतिक उपमान उन्हें प्रिय हैं | उनके गद्य में भी पद्य ( काव्य ) सा प्रवाह है | शब्दों में लय, प्रवाह व गति है |
इस प्रकार महादेवी के गद्य में छायावाद ( Chhayavad ) के पद्य का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है | पंत, निराला, प्रसाद, गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर आदि सभी सातों साहित्यकारों के संस्मरणों में इसके उदाहरण मिलते हैं |
विवेच्य व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंकन करना हो चाहे उनसे जुड़ी घटनाओं का, उनके साहित्य के योगदान का वर्णन करना हो या उनके प्रभाव का, महादेवी वर्मा की शैली में काव्यात्मकता की झलक स्पष्ट दिखाई देती है | गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ( Ravindranath Taigore ) के जीवन के अंतिम क्षणों में लेखिका अन्य साहित्यकारों को जिम्मेदारी का अहसास कराने के लिए कहती है – “दीपक चाहे छोटा हो चाहे बड़ा सूर्य जब अपना कर्तव्य सौंप कर चुपचाप डूब जाता है तब जल उठना ही उसके अस्तित्व की शपथ है |”
अत: स्पष्ट है कि ‘पथ के साथी’ (Path Ke Sathi ) गद्य-रचना में काव्यात्मक भाषा का प्रयोग हुआ है | लेखिका का कवि हृदय गद्य में भी स्वयं को रोक नहीं पाया | इस कारण से ही यह गद्य रचना अनुपम एवं आकर्षक बन गई है |
2. चित्रात्मकता
इस रचना में लेखिका ने अपने पथ के साथियों के व्यक्तित्व, जीवन, घटनाओं को चित्र रूप में प्रस्तुत किया है | उन्होंने छोटी-छोटी घटनाओं का चित्रण भी इस प्रकार किया है कि वह चित्र पाठकों के हृदय पर सदा के लिए अंकित हो जाता है | महादेवी वर्मा ( Mahadevi Varma ) ने केवल ‘पथ के साथी’ में ही नहीं बल्कि ‘स्मृति की रेखाएं’ और ‘अतीत के चलचित्र’ में भी सफल चित्र उकेरे हैं |
जहां तक इस रचना की बात है उनकी भाषा शैली के कारण उनके पात्र सजीव बन गए हैं | उनकी चित्रात्मक शैली अत्यंत सफल सिद्ध हुई है | इसका कारण यह है कि उन्होंने जिन चित्रों को प्रस्तुत किया है वह काल्पनिक नहीं हैं, लेखिका ने स्वयं उन चित्रों को देखा है |
लेखिका ने चित्रात्मक शैली का प्रयोग व्यापक स्तर पर किया है | उन्होंने पात्रों का बाहरी चित्र भी प्रस्तुत किया है और उनके आंतरिक गुणों का अंकन भी किया है | उन पात्रों से संबंधित विभिन्न घटनाओं और उनसे संबंधित व्यक्तियों का चित्रण भी किया है | विवेच्य पात्र के आसपास का चित्रण भी किया है | इसके साथ-साथ लेखिका ने अपने चरित्र और व्यक्तित्व के चित्र भी प्रस्तुत किए हैं | इस प्रकार चित्रात्मकता पथ के साथी की मुख्य विशेषता बनकर उभरी है | चित्रात्मकता के कारण न केवल इस रचना का कला-पक्ष समृद्ध हुआ हैै बल्कि भाव-पक्ष को भी संबल मिला है |
3. आलंकारिकता
महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) ने अलंकारों के प्रति कभी मोह नहीं रखा – न गद्य में और न पद्य में | परंतु अनायास ही इस कृति में अलंकारों का समावेश हो गया है | इस रचना में जहां कहीं भी अलंकार आए हैं भाषा की शोभा बड़ी है | खास बात यह है कि अलंकारों के आने से भाव-पक्ष भी मजबूत हुआ है |
इस रचना में अनुप्रास, पुनरुक्ति, उदाहरण, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा विरोधाभास आदि अलंकारों का अनायास समावेश हुआ है | अर्थालंकारों का प्रयोग अधिक हुआ है | शब्दालंकारों की तरफ उनका मानो ध्यान ही नहीं था | इसका कारण यह है कि लेखिका का ध्यान भावों की अभिव्यक्ति की तरफ अधिक था, कला-पक्ष की तरफ नहीं | लेकिन फिर भी इस कृति में अलंकारों ने शोभा वृद्धि की है और आलंकारिकता इस कृति की मुख्य विशेषता बन गई है |
4. स्वाभाविकता और सरलता
महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) ने इस कृति में सरल व स्वाभाविक भाषा-शैली का प्रयोग किया है | न उन्होंने इस कृति में अलंकारों का प्रयोग किया है और न ही जटिल भाषा का प्रयोग किया है | अगर कहीं अलंकार आए भी हैं तो वे अनायास आए हैं जानबूझकर उनका प्रयोग नहीं किया गया है |
प्रायः आम बोलचाल की शब्दावली का प्रयोग किया गया है | यही कारण है कि लेखिका ने स्टेशन, वेटिंग रूम जैसे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी किया है | सरल वाक्य में अपनी बात कह दी है | भाषा अत्यंत स्वाभाविक है |
जब वह अपनी बाल सहेली सुभद्रा कुमारी चौहान ( Subhadra Kumari Chauhan ) का संस्मरण लिखती हैं तो उनकी भाषा संवादात्मक हो जाती है क्योंकि उनका ह्रदय आत्मीयता से भर जाता है |
यही कारण है कि उनके संस्मरणों में कहीं भी बनावटीपन दिखाई नहीं देता | सब कुछ स्वाभाविक लगता है | कृत्रिम या काल्पनिक कुछ भी नहीं | अत: स्वाभाविकता व सरलता उनके संस्मरणों की प्रमुख विशेषता बन गई है |
5. हास्य और व्यंग्य
महादेवी वर्मा ( Mahadevi Varma ) ने ‘पथ के साथी‘ कृति में अपने पथ के साथी रहे सात साहित्यकारों के संस्मरणों को प्रस्तुत किया है | उनका मुख्य उद्देश्य विवेच्य पात्र के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालना रहा है परंतु फिर भी इस रचना में नीरसता नहीं है | इन संस्मरणों में लेखिका ने कुछ ऐसे रोचक प्रसंगों को शामिल किया है कि स्वत: ही हास्य-व्यंग्य का पुट शामिल हो गया है | महादेवी वर्मा और प्रसाद ( Prasad ) के बीच का वार्तालाप देखिए – मेरे भारी- भरकम नाम के विपरीत देखकर प्रसाद जी ने कहा – ” आप तो महादेवी जी नहीं जान पड़ती |’ मैंने भी वैसे ही लहजे में उत्तर दिया – “आप भी कहां प्रसाद लगते हैं, चित्र में बौद्ध-भिक्षु जैसे लगते हैं | “
इस प्रकार के हास्य-व्यंग्य से परिपूर्ण प्रसंगों को अपने संस्मरण में प्रस्तुत कर उन्होंने इन संस्करणों को रोचक व सरस बना दिया है | अपने व्यंग्य के माध्यम से उन्होंने समाज की खोखली मान्यताओं और रूढ़ियों पर भी आक्षेप किया है |
6. प्रतीकात्मकता
महादेवी वर्मा ने इस रचना में कई स्थानों पर प्रतीकात्मकता का सहारा लिया है परंतु यह प्रतीकात्मकता भावों को जटिल नहीं बनाती बल्कि इन्हें सरल बनाती है | गहन भावों को स्पष्ट करने के लिए कभी-कभी प्रतीक आवश्यक हो जाते हैं | इस रचना में प्रयुक्त कुछ प्रतीकात्मक शब्दों के प्रयोग को देखिए : –
“उनके पास मिश्री की डली हो चाहे लवण-खंड |” इस वाक्य में ‘मिश्री की डली‘ व ‘लवण-खंड’ दोनों प्रतीकात्मक शब्द हैं |
“अर्थ-संकट की अनेक दुर्गम घाटियां उन्हें पार करनी पड़ी |” इसमें ‘दुर्गम घाटियां‘ प्रतीकात्मक शब्द है |
“दीपक चाहे छोटा हो या बड़ा | सूर्य जब अपना कर्तव्य सौंप कर चुपचाप डूब जाता है तब जल उठना ही उसके अस्तित्व की शपथ है |” इन पंक्तियों में ‘दीपक‘ और ‘सूर्य‘ प्रतीकात्मक शब्द हैं |
इस प्रकार लेखिका ने प्रतीकों के माध्यम से भावों की गहराई को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है |
7. संस्कृतनिष्ठ शब्दावली
महादेवी वर्मा ने अपनी अन्य रचनाओं की भांति इस रचना में भी तत्सम शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है | वह संस्कृत की महान विदुषी थी और संस्कृत के शब्दों को भलीभांति जानती थी | इसलिए उन्होंने भावों की गहनता और गंभीरता दर्शाने के लिए संस्कृतनिष्ठ शब्दावली को अपनाया | चाहे गद्य हो या पद्य, उनकी भाषा में अधिकांश शब्द तत्सम हैं | उनकी खास बात यह है कि संस्कृत के शब्दों से लगाव होते हुए भी उन्हें तद्भव, देशज व अन्य भाषाओं के शब्दों से कोई द्वेष नहीं | इस रचना में भी संस्कृत के शब्दों की भरमार होते हुए भी उन्होंने अन्य भाषाओं के शब्दों व तद्भव शब्दों का सुंदर प्रयोग किया है परंतु उनके व्यक्तित्व में संस्कृत के शब्द रच-बस गए हैं | पथ के साथी ( Path Ke Sathi ) में भी ऐसा ही कुछ है | कोई भी परिच्छेद ऐसा नहीं है जहां संस्कृत शब्दावली की बहुलता न हो | वस्तुतः संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग उनके साहित्य की प्रमुख विशेषता है जो इस रचना में भी परिलक्षित होती है |
8. संक्षिप्तता व विशदता
महादेवी वर्मा ( Mahadevi Verma ) की गद्य शैली दो विरोधी तत्वों को समाहित किए हुए है | उनकी लेखन-शैली में संक्षिप्तता व विशुद्धता का गुण है | वह किसी बात को संक्षेप में कहने की क्षमता भी रखती हैं और उसे स्पष्ट रूप से प्रस्तुत करने का सामर्थ्य भी | महादेवी वर्मा कम से कम शब्दों में अपनी बात कहती हैं और उदाहरणों द्वारा उस बात को इतना स्पष्ट भी बना देते हैं कि वह बात पाठकों के मन पर सदा के लिए अंकित हो जाती है | यह उनकी गद्य-शैली की अनूठी विशेषता है |
निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि महादेवी वर्मा की गद्य-शैली अनूठी है | पथ के साथी उनकी गद्य शैली का सर्वश्रेष्ठ नमूना है | उनकी गद्य-शैली में काव्यात्मकता, चित्रात्मकता, आलंकारिकता, प्रतीकात्मकता, स्वाभाविकता, संक्षिप्तता, स्पष्टता आदि अनेक विशेषताएं मिलती हैं | उनके गद्य में भी छायावादी काव्य की झलक मिलती है | गद्य में भी काव्य की भांति लय, प्रवाह व रोचकता उत्पन्न करना कठिन काम है लेकिन वे यह काम बखूबी करती हैं | संस्कृत कवियों ने कहा है कि गद्य कवियों की कसौटी है | महादेवी वर्मा ( Mahadevi Varma ) अपनी रचना पथ के साथी में गद्य की कसौटी पर खरी उतरती हैं |