मैला आंचल( Maila Aanchal ) फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishwarnath Renu ) द्वारा रचित एक प्रसिद्ध आंचलिक उपन्यास है | इस उपन्यास का प्रकाशन 1954 ईस्वी में हुआ | इसे हिंदी साहित्य का सर्वश्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास माना जाता है | आंचलिक उपन्यास के मुख्य रूप से दो प्रधान लक्षण माने जाते हैं – 1. किसी क्षेत्र-विशेष के आचार-विचार, रहन-सहन खान-पान, रीति- रिवाज आदि का यथार्थ चित्रण तथा 2. उसी क्षेत्र-विशेष की बोली शब्दों मुहावरों में प्रचलित लोकगीतों का प्रयोग |
इस प्रकार आंचलिक उपन्यास के मुख्य तत्व संस्कृति व भाषा से संबंधित हैं | उपर्युक्त दोनों तत्वों में से पहला तत्व संस्कृति की ओर संकेत करता है तो दूसरा तत्व भाषा की ओर |
मैला आंचल ( Maila Aanchal ) उपन्यास में दोनों तत्वों का सुंदर समावेश मिलता है इस तथ्य को निम्न बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है – (क ) मैला आंचल में अंचल अर्थात क्षेत्र-विशेष का आग्रह, ( ख ) मैला आंचल में क्षेत्र-विशेष व जनजीवन की यथार्थ झांकी, ( ग ) मैला आंचल में क्षेत्र-विशेष के शब्दों व मुहावरों का प्रयोग
( क ) मैला आंचल में अंचल अर्थात क्षेत्र विशेष का आग्रह है
अंचल अर्थात क्षेत्र विशेष का आग्रह आंचलिक उपन्यास का प्रधान लक्षण है | आंचलिक उपन्यास ( Aanchlik Upanyas ) में जिस अंचल या क्षेत्र का चित्रण किया जाता है उस अंचल-विशेष का यथार्थ अंकन किया जाता है | उस अंचल-विशेष के दीन-हीन, दलित, पीड़ित, शोषित, उपेक्षित, तिरस्कृत जीवन की वास्तविक झांकी प्रस्तुत की जाती है |
फणीश्वर नाथ रेणु ( Fanishvar Nath Renu ) द्वारा रचित मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के मेरीगंज गांव के अंचल के जीवन का यथार्थ वर्णन है | रेणु जी ने मेरीगंज का परिचय देते हुए एक स्थान पर लिखा है – ” मेरीगंज एक बड़ा गांव है | बारहों बरन के लोग रहते हैं | गांव के पूरब एक धारा है जिसे कमला नदी कहते हैं | बरसात में कमला भर जाती है | बाकी मौसम में बड़े-बड़े गड्ढों में पानी जमा रहता है | मछलियों और कमल के फूलों से भरे हुए गड्ढे |”
उपन्यासकार इस तथ्य का भी उद्घाटन करता है कि इस गांव का नाम मार्टिन ने अपनी नई दुल्हन मेम मेरी के नाम पर मेरीगंज रख दिया था | मार्टिन ने रोतहट स्टेशन से मेरीगंज तक डिस्ट्रिक्ट बोर्ड से सड़क बनवाई तथा मेरीगंज में पोस्ट ऑफिस खुलवाया | इसके पश्चात मार्टिन अपनी नवविवाहिता पत्नी मेम मेरी को लाने के लिए कोलकाता गए | लेकिन मेरी गंज पहुंचने के ठीक एक सप्ताह बाद मेरी को ‘जड़ैया’ ने जकड़ लिया और एक सप्ताह के भीतर चल बसी | मार्टिन साहब ने महसूस किया कि पोस्ट ऑफिस से पहले यहां डिस्पेंसरी खुलवाना अत्यंत आवश्यक है | अतः डिस्पेंसरी खुदवाने के लिए मार्टीन अथक प्रयास करता है |
उपन्यास का आरंभ मेरीगंज गांव में मलेरिया सेंटर खुलने की व्यवस्था से होता है | गांव वाले अशिक्षित व अज्ञानी होने के कारण मलेरिया वालों को मलेटरी वाले मान लेते हैं | गांव में राजपूत ब्राह्मण, कायस्थ लोग रहते हैं | लोगों में आपसी फूट है, झगड़े होते रहते हैं | पूरे गांव में केवल दस लोग पढे हैंं | गांव की मुख्य पैदावार है – धान, पाट और खेसारी | रबी की फसल भी कभी-कभी अच्छी हो जाती है |
अतः स्पष्ट है कि मैला आंचल ( Maila Anchal ) में अंचल विशेष का यथार्थ चित्रण है | वहां की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्थिति का यथार्थ अंकन है | गांव के लोग भोले-भाले हैं | भोले-भाले का अर्थ है -अनपढ़, अज्ञानी और अंधविश्वासी |
( ख ) “मैला आँचल” में क्षेत्र-विशेष व जीवन की यथार्थ झांकी
क्षेत्र-विशेष के वातावरण की सृष्टि उपरांत आंचलिक उपन्यासों में जनजीवन की यथार्थ झांकी प्रस्तुत की जाती है | प्राय: जीवन की यह झांकी उस क्षेत्र के लोगों के रहन-सहन, खान-पान, आचार- विचार-व्यवहार, तीज-त्यौहार, मान्यताओं-परंपराओं आदि के आधार पर की जाती है | इसे अग्रलिखित बिंदुओं के माध्यम से स्पष्ट किया जा सकता है :- 1. रहन-सहन, 2. खान-पान, 3. रीति-रिवाज एवं परंपराएं, 4. तीज-त्यौहार, 5. लोकगीत |
- रहन-सहन
प्रायः आंचलिक उपन्यासों में यथार्थ का अंकन होता है | ऐसे उपन्यासों में आंचलिक क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा हुआ होता है और समाज में अनेक बुराइयां प्रचलित होती हैं | रेणु ( Renu ) कृत मैला आंचल ( Maila Anchal ) में भी यथार्थ का नग्न चित्रण किया गया है | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) उपन्यास में बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के एक छोटे से गांव मेरीगंज की कथा है | यहां अज्ञानता व दरिद्रता व्याप्त है | आर्थिक पिछड़ेपन के साथ-साथ मानसिक पिछड़ापन भी है | किसान जी तोड़ मेहनत करते हैं परंतु उनकी मेहनत का फल बड़े किसान और महाजन लूट रहे हैं | दो-तीन किसानों को छोड़कर बाकी सभी किसानों के पास नाम मात्र की जमीन है | वह या तो खेतिहर मजदूर है या बटाई पर खेती करते हैं | उनकी आर्थिक स्थिति इन पंक्तियों से उजागर होती है :- ” उन्हें भरपेट रोटी नहीं मिलती शरीर ढकने के लिए वस्त्र मयस्सर नहीं हैं और आवास के नाम पर फूस की झोपड़ी में उनकी सारी जिंदगी कट जाती है |”
गांव में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी में पूड़ी- जलेबी नहीं चखी | बीमार होने पर भी अधिकतर लोग दवा के पैसे नहीं जुटा पाते | कुल मिलाकर उनका रहन-सहन बहुत साधारण है और असभ्य कबीलों के लोगों से बेहतर नहीं है |
2. खान-पान
मेरीगंज के लोगों का खान-पान अति साधारण है | अधिकांश लोग ऐसे हैं जिन्होंने कभी पूरे वस्त्र नहीं पहने, बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने नए वस्त्र नहीं पहने | बहुत से ऐसे हैं जिन्होंने पूड़ी-जलेबी नहीं चखी | जहां तक मैला आँचल ( Maila Aanchal ) की आंचलिकता की बात है इसमें खान-पान का यथार्थ अंकन किया गया है ताकि उस क्षेत्र की तस्वीर पाठकों के सामने आ जाए ||ऐसा करते हुए लेखक उस क्षेत्र-विशेष में प्रचलित खानपान की चीजों का वर्णन स्थानीय भाषा में ही करता है | खान-पान के अंतर्गत चरस, गांजा, ताड़ी, चावल का आटा, गुड, तेल, पूड़ी-जलेबी, मछली, अंडा, रोटी, दूध व चाय आदि का वर्णन करता है | वेशभूषा में खद्दर का कुर्ता, गमछा आदि का वर्णन है वाद्य यंत्रों में खंजरी, ढोलक आदि का वर्णन मैला आँचल ( Maila Anchal ) में मिलता है |
3. रीति-रिवाज एवं परंपराएं
किसी क्षेत्र-विशेष के रीति-रिवाज एवं परंपराओं का यथार्थ अंकन करना भी आंचलिक उपन्यास की विशेषता है | रेणु ( Renu ) कृत मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में भी मेरीगंज में प्रचलित रीति-रिवाजों और मान्यताओं-परंपराओं की सुंदर झांकी मिलती है | मेरीगंज गांव में शादी-ब्याह के अवसर पर होने वाली परंपराओं और प्रथाओं का सुंदर वर्णन है | श्राद्ध के समय की जाने वाली क्रियाओं का भी उल्लेख मिलता है | साधु और ब्राह्मण भोज का भी सुंदर वर्णन है | लेखक इस विषय में एक स्थान पर लिखता है – “सबसे पहले काली थान में पूरी चढ़ाई जाती है | इसके बाद कोठी के जंगल की ओर दो पुड़िया फेंक दी जाती हैं | जंगल के देव-देवी और भूत-पिशाच के लिए | इसके बाद साधु और बाभन भोजन |”
4. तीज-त्योहार
किसी अंचल विशेष में मनाए जाने वाले तीज-त्योहार भी उस अंचल की लोक संस्कृति के परिचायक होते हैं | उन त्योहारों को मनाने के रंग-ढंग व तौर-तरीकों से वहां की जीवन-शैली के विषय में पता चलता है |
मैला आंचल ( Maila Aanchal ) उपन्यास में भी लेखक ने मेरीगंज नामक गांव में मनाए जाने वाले त्योहारों का वर्णन किया है | वैसे तो पूरे उपन्यास में अनेक त्योहारों का वर्णन हुआ है परंतु जिस त्योहार ने वहां की संस्कृति को अच्छे से उद्घाटित किया है वह है – होली का त्योहार | रेणु ( Renu ) जी ने अपने उपन्यास में होली के त्यौहार का बड़ा ही रंगीन चित्रण किया है | मेरी गंज के लोगों के लिए यह त्यौहार केवल एक त्यौहार नहीं बल्कि संजीवनी बूटी है | एक स्थान पर लेखक लिखता है – ” महंगी पड़े या अकाल हो पर्व-त्योहार तो मनाना ही होगा |” एक अन्य स्थान पर होली के महत्व को उजागर करते हुए लेखक लिखता है – ” होली तो मुर्दा दिलों को भी गुदगुदी लगाकर जाती है |” …………×…………….×……………×……………….
” रोनी कराहने के लिए बाकी ग्यारह महीने तो हैं ही | फागुन भर तो हंस लो गा लो |” …………..×……………×……………×……………..
” जो जीये सो खेले फाग”
इस प्रकार होली का त्योहार इन लोगों के लिए जीवन का प्रतीक है | यह त्योहार इनके मृतप्राय जीवन में कुछ प्राणों का संचार करता है |
5. लोकगीत
लोक गीत लोक संस्कृति में लोक जीवन का उद्घाटन करते हैं | आते हैं आंचलिक उपन्यासों में यह लोकगीत और अधिक महत्वपूर्ण हो जाते हैं |
रेणु ( Renu ) जी ने अपने उपन्यास मैला आँचल ( Maila Aanchal ) में विभिन्न अवसरों पर गाए जाने वाले लोकगीतों का समावेश किया है | इन गीतों में स्वतंत्रता संग्राम का रंग भी है और होली का रंग भी | वर्षा ऋतु की सौंधी महक भी है और बिरह की तड़प भी | रेणु ( Renu ) जी ने साल का कोई ऐसा विशिष्ट अवसर नहीं छोड़ा जिसका लोकगीत से रंगा चित्रण न किया हो | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में प्रयुक्त कुछ उदाहरण देखिए :-
आजादी सम्बन्धी लोकगीत :-
“कहीं पे छापो गंधी महात्मा
चरखा मस्त चलाते हैं |
कहीं पे छापो वीर जवाहिर
जेल के भीतर जाते हैं |
क्रांति सम्बन्धी लोकगीत :-
” अरे ज़िन्दगी है किराँती
किराँती से बिताये जा |
दुनिया के पूंजीवाद को
दुनिया से मिटाये जा |“
होली सम्बन्धी गीत :-
“नयना मिलानी करी ले रे सैंया
नयना मिलानी करी ले |
अबकी बेर हम नैहर रहबो
जे दिल चाहे से करी ले |”
वास्तविकता तो यह है कि इन लोकगीतों के कारण ही मेरीगंज की यथार्थ झांकी पाठकों के समक्ष आती है |
(ग ) मैला आंचल में क्षेत्र-विशेष के शब्दों व मुहावरोंं का प्रयोग
क्षेत्र-विशेष के शब्दों व मुहावरों का प्रयोग भी आंचलिक उपन्यास का लक्षण है | मैला आंचल ( Maila Aanchal ) में स्थानीय शब्दों की भरमार है| इस उपन्यास में जिस क्षेत्र का वर्णन है वहां बहुसंख्यक लोग मैथिली बोलते हैं | अतः उपन्यास में मैथिली शब्दों का आधिक्य है | लोकगीत भी स्थानीय भाषा में रचित हैं | देशज शब्दों की भरमार है जो स्थानीय भाषा से लिये गए हैं जैसे – अटर-पटर, पुच्च-फुच्च, भखर-भखर देखना, उहाल, गुहल, खम्हार आदि | कुछ शब्दों को जानबूझकर विकृत कर स्थानीय रूप दिया गया है, यथा – गंधी महात्मा ( गांधी महात्मा ), परभू ( प्रभु ), इस्तरी ( स्त्री ), विदियारथी ( विद्यार्थी ), आंडोलन ( आंदोलन ), बेकूफ ( बेवकूफ ) आदि |
◼️ निष्कर्ष
इस प्रकार लेखक ने मैला आँचल ( Maila Anchal ) उपन्यास में लोक-संस्कृति व लोक भाषा का सुंदर समन्वय प्रस्तुत किया है | लोक-संस्कृति का उद्घाटन आंचलिक वातावरण, आचार-विचार, रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, तीज-त्योहारों के माध्यम से हुआ है | लोक भाषा का उद्घाटन स्थानीय लोक-गीतों व स्थानीय स्तर पर प्रचलित शब्दों के माध्यम से हुआ है | वस्तुत: यह उपन्यास केवल मेरीगंज ही नहीं वरन समस्त मिथिलांचल के लोक-जीवन व संस्कृति को पाठकों के समक्ष उजागर करता है |
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