न्याय का अर्थ ( Meaning of Justice )
न्याय को अंग्रेजी भाषा में ‘जस्टिस’ ( Justice ) कहते हैं जो लेटिन भाषा के ‘जस’ ( Jus ) शब्द से बना है जिसका अर्थ है – बंधन अथवा बांधना | इसका अभिप्राय यह है कि न्याय उस व्यवस्था का नाम है जिसके द्वारा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ सामाजिक, आर्थिक व कानूनी आधार पर संबंधित है | आधुनिक सन्दर्भ में न्याय का अर्थ है – वह व्यवस्था जो व्यक्तिगत अधिकारों का सामाजिक कल्याण के साथ समन्वय स्थापित करे | साधारण शब्दों में न्याय उचित व्यवस्था स्थापित करना है |
न्याय की परिभाषा ( Definition of Justice )
न्याय के सही अर्थ को जानने के लिए कुछ परिभाषाओं पर विचार करना आवश्यक है | न्याय की कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं : –
1. मरियम के अनुसार – ” न्याय वह व्यवस्था है जिसमें समाज द्वारा मान्य सभी सुविधाएं और अधिकार दिए जाते हैं |”
2. बेन और पीटर्स के अनुसार – ” जब तक भेदभाव का कोई उचित कारण न हो तब तक सभी व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करना न्याय है |”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट हो जाता है कि जो नैतिक है, तर्कसंगत है, निष्पक्षता और समानता पर आधारित है वही न्याय है |
न्याय की विशेषताएं या लक्षण
न्याय की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं : –
1. सत्य – सत्य और न्याय में गहरा संबंध होता है | न्याय सत्यता पर आधारित होता है | जो सत्य नहीं है, वह न्याय नहीं हो सकता |न्यायाधीश भी सत्य के आधार पर ही न्याय करता है | न्यायालयों में न्यायाधीश विभिन्न मुकदमों में सत्य को खोजने की कोशिश करते हैं |
2. निष्पक्षता – निष्पक्षता न्याय की दूसरी महत्वपूर्ण कसौटी है |इसका अभिप्राय यह है कि किसी व्यक्ति से किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता | किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, वंश या क्षेत्र के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता | यदि इन आधारों पर किसी व्यक्ति से भेदभाव किया जाता है, तो वह न्याय की अवहेलना है | सभी व्यक्ति कानून के सामने समान हैं | अतः निष्पक्षता न्याय का महत्वपूर्ण अंग है |
3. स्वतंत्रता – स्वतंत्रता न्याय का तीसरा महत्वपूर्ण अंग है | इसका अर्थ यह है कि स्वतंत्रता के वातावरण में ही न्याय की स्थापना की जा सकती है | स्वतंत्रता में भाषण की स्वतंत्रता, घूमने-फिरने की स्वतंत्रता, शिक्षा ग्रहण करने की स्वतंत्रता, कोई भी धर्म अपनाने की स्वतंत्रता तथा किसी भी पेशे को चुनने की स्वतंत्रता आदि शामिल हैं | लेकिन स्वतंत्रता पर उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं | अतः उचित स्वतंत्रता न्याय का महत्वपूर्ण अंग है | जहां स्वतंत्रता नहीं है, वहां न्याय नहीं |
4. मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति – मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं होती हैं ; जैसे – रोटी, कपड़ा और मकान | इसके साथ-साथ समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार मूलभूत आवश्यकताएं बदलती रहती हैं | यह मूलभूत आवश्यकताएं हर हाल में पूरी होनी चाहिए तभी न्याय की स्थापना हो सकती है |
5. मनुष्य की प्रकृति का आदर – न्याय की एक महत्वपूर्ण विशेषता है – मनुष्य की प्रकृति अर्थात स्वभाव को सम्मान प्रदान करना | इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी व्यक्ति को उसकी शक्ति से बाहर कार्य करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए | ऐसा करना अन्याय है | जैसे बच्चों, बूढ़ों और बीमार व्यक्तियों को भारी काम नहीं देना चाहिए | अगर कोई ऐसा करता है तो यह अन्याय है |
उपर्युक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि न्याय एक ऐसी अवधारणा है जो व्यक्ति तथा समाज के हितों में समन्वय स्थापित करती है | एक ओर न्याय व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करता है तो दूसरी ओर सामाजिक व्यवस्था का संरक्षण करता है |
न्याय के विभिन्न्न पक्ष या रूप
1. न्याय का कानूनी पक्ष – न्याय के कानूनी पक्ष से तात्पर्य है जो कानून के अनुसार है | राज्य में कानून के द्वारा ही लोगों को न्याय प्राप्त होता है | न्यायालय भी कानून के द्वारा ही लोगों के झगड़ों का निपटारा करता है | न्यायालय न्याय करते समय कानूनों के अनुसार चलता है |
न्याय के कानूनी पक्ष में दो बातें शामिल हैं – (1 ) कानूनों का न्याय संगत होना, ( 2 ) न्याय कानून के अनुसार होना |
2. न्याय का राजनीतिक पक्ष – न्याय के राजनीतिक पक्ष से तात्पर्य है – राजनीति में सभी की सहभागिता | सभी लोगों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों तथा सभी लोगों को शासन की शक्तियां प्राप्त हों |
न्याय के राजनीतिक पक्ष में निम्न बातें शामिल हैं : –
(क ) लोकतंत्र की स्थापना
(ख ) सभी नागरिकों को मताधिकार प्रदान करना
(ग ) सभी नागरिकों को चुनाव लड़ने का अधिकार
(घ ) सभी नागरिकों को राजनीतिक विचार प्रकट करने का अधिकार
( ङ ) सभी नागरिकों को अनुचित कार्यों के लिए सरकार की आलोचना करने का अधिकार
3. न्याय का सामाजिक पक्ष – न्याय के सामाजिक पक्ष का अर्थ है – सामाजिक न्याय | सामाजिक न्याय एक प्राचीन अवधारणा है | कौटिल्य ( Kautilya ) ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में सामाजिक न्याय की बात कही है | आधुनिक समय में सामाजिक न्याय की अवधारणा पर अधिक बल दिया गया है | यह लोकतंत्र का आधार है | सामाजिक न्याय का अर्थ है कि एक ऐसे समाज का निर्माण किया जाए जो समानता पर आधारित हो | जिसमें धर्म, रंग, वंश, जाति, क्षेत्र आदि के आधार पर कोई भेदभाव ना हो |
सामाजिक न्याय की कुछ मुख्य बातें निम्नलिखित हैं : –
(क ) सामाजिक व्यवस्था में सुधार
( ख ) सामाजिक समानता की स्थापना
( ग ) विशेष अधिकारों की समाप्ति
( घ ) शोषण की समाप्ति
( ङ ) अल्पसंख्यकों की सुरक्षा
4. न्याय का आर्थिक पक्ष – उदारवादियों ने जहां न्याय के कानूनी, राजनीतिक व सामाजिक पक्ष पर बल दिया है वहीं मार्क्सवादियो ने न्याय के आर्थिक पक्ष पर बल दिया है | वे इसे न्याय का मूल आधार मानते हैं | न्याय के आर्थिक पक्ष का अर्थ है – आर्थिक समानता | आर्थिक न्याय का अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों को आर्थिक विकास के अवसर मिलें, आर्थिक विषमता कम से कम हो और लोगों को आर्थिक शोषण से मुक्त कराया जाए | ऐसे लोगों की सहायता की जाए जो धन कमाने में असहाय हैं | समाज के कमजोर वर्गों की सहायता भी की जानी चाहिए |
न्याय के आर्थिक पक्ष में निम्नलिखित बातें शामिल हैं : –
(क ) सभी को अपनी इच्छा और योग्यता के अनुसार काम करने का अधिकार
(ख ) समान कार्य के लिए समान वेतन
(ग ) लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति
(घ ) असहाय लोगों को आर्थिक सहायता
(ङ ) श्रमिकों के हितों की रक्षा
(च ) आर्थिक क्षेत्र में राज्य का हस्तक्षेप ताकि सभी को आर्थिक सुरक्षा मिल सके, किसी का आर्थिक शोषण न हो
◼️ इस प्रकार हम कह सकते हैं कि न्याय एक ऐसी अवधारणा है जो व्यक्ति तथा समाज दोनों के विकास के लिए आवश्यक है | न्याय केवल कानून तक सीमित नहीं है, उसके राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक पक्ष भी हैं | सभी पक्ष अनिवार्य रूप से आवश्यक हैं | यदि किसी एक पक्ष की अवहेलना की जाए तो न्याय की अवधारणा पूरी नहीं हो पाती |