परिवर्तन जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है | परिवर्तन के बिना जीवन नीरस है | समाज में परिवर्तन हमेशा होता रहता है परंतु परिवर्तन की गति कम या तीव्र हो सकती है |
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (Samajik Parivartan Ka Arth )
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ जानने से पहले परिवर्तन का अर्थ जानना आवश्यक है | साधारण शब्दों में परिवर्तन का अर्थ है- किसी वस्तु या क्रिया की पहली अवस्था में बदलाव आना | परिवर्तन के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती है – वस्तु, समय और भिन्नता की आवश्यकता |
परिवर्तन का संबंध किसी वस्तु से होता है | समय में परिवर्तन के बिना परिवर्तन नहीं हो सकता | परिवर्तन प्राय: तभी होता है जब किसी वस्तु या क्रिया की वर्तमान स्थिति से हम असंतुष्ट हों अर्थात यह जरूरी है कि हम परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव करें तभी परिवर्तन संभव है |
अतः स्पष्ट है कि परिवर्तन हर काल और हर स्थान पर होता रहा है और होता रहेगा | परिवर्तन स्वत: या योजनाबद्ध हो सकता है | परिवर्तन अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी |
सामाजिक परिवर्तन के सही अर्थ को जानने के लिए इसकी कुछ परिभाषा पर विचार करना भी प्रासंगिक होगा |
सामाजिक परिवर्तन की परिभाषाएँ ( Samajik Parivartan Ki Paribhashayen )
1. मैकाइवर के अनुसार – ” सामाजिक संबंधों में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन कहते हैं |”
2. जेन्सन के अनुसार – ” लोगों के कार्य करने के ढंग में परिवर्तन को ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं |”
3. जिंसबर्ग के अनुसार – ” सामाजिक ढांचे में परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन है |”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन उन परिवर्तनों को कहते हैं जिनका संबंध मानवीय संबंधों व व्यवहारों से होता है |
सामाजिक परिवर्तन में निम्नलिखित तथ्य शामिल हैं : –
(क ) सामाजिक ढांचे में परिवर्तन
(ख ) मानव के सामाजिक संबंधों में परिवर्तन
(ग ) मानवीय मूल्यों में परिवर्तन
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं ( Samajik Parivartan Ki Visheshtayen )
सामाजिक परिवर्तन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं : –
(1) सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति सामाजिक होती है
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति सामाजिक होती है | इसका अभिप्राय यह है कि सामाजिक परिवर्तन का संबंध समाज में होने वाले परिवर्तन से होता है | इसका संबंध किसी व्यक्ति-विशेष, समूह-विशेष या धर्म-विशेष से न होकर पूरे समाज से होता है |
(2) सामाजिक परिवर्तन एक जटिल अवधारणा है
सामाजिक परिवर्तन एक जटिल अवधारणा है | सामाजिक परिवर्तन का संबंध गुणात्मक परिवर्तनों से है जिनका नापतोल संभव नहीं है | भौतिक वस्तु का माप-तोल तो किया जा सकता है किंतु सामाजिक मूल्यों, विचारों, विश्वासों में होने वाले परिवर्तनों को मापा नहीं जा सकता | अतः सामाजिक परिवर्तन एक अमूर्त, सूक्ष्म व जटिल अवधारणा है |
(3) सामाजिक परिवर्तन स्वाभाविक होता है
परिवर्तन प्रकृति का नियम है | अतः परिवर्तन स्वाभाविक है | समाज में भी परिवर्तन स्वाभाविक रूप से होते रहते हैं | कोई भी समाज सामाजिक परिवर्तन से नहीं बच सकता | कई बार अनेक शक्तियां समाज में होने वाले परिवर्तनों को रोकने का प्रयास करती हैं परंतु फिर भी सामाजिक परिवर्तन घटित होकर रहता है | वस्तुत: सामाजिक परिवर्तन होते रहते हैं और होते रहेंगे |
(4) सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक घटना है
सामाजिक परिवर्तन सार्वभौमिक घटना है | इसका अर्थ है कि सामाजिक परिवर्तन हर स्थान पर और हर काल में घटित होता है |सामाजिक परिवर्तन भूतकाल में भी हुए हैं, वर्तमान में भी हो रहे हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे | ठीक इसी प्रकार हर स्थान पर भी सामाजिक परिवर्तन होते रहते हैं | लेकिन सामाजिक परिवर्तनों की गति धीमी या तेज हो सकती है
(5) सामाजिक परिवर्तन की भविष्यवाणी संभव नहीं
सामाजिक परिवर्तन की भविष्यवाणी संभव नहीं | सामाजिक परिवर्तन का पूर्व अनुमान नहीं लगाया जा सकता क्योंकि सामाजिक परिवर्तन का कोई निश्चित नियम या सिद्धांत नहीं है |अधिकतर सामाजिक परिवर्तन आकस्मिक रूप से होते हैं |
(6) सामाजिक परिवर्तन सामुदायिक परिवर्तन है
सामाजिक परिवर्तन की एक विशेषता यह है कि सामाजिक परिवर्तन का संबंध है किसी व्यक्ति-विशेष से न होकर समुदाय से होता है | सामाजिक परिवर्तन पूरे समुदाय को प्रभावित करते हैं केवल किसी व्यक्ति-विशेष को नहीं |
◼️ सामाजिक परिवर्तन की परिभाषाओं और विशेषताओं के आधार पर कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन सामाजिक ढांचे व सामाजिक रीति-रिवाजों में बदलाव है | सामाजिक परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है | सामाजिक परिवर्तन की गति धीमी या तेज हो सकती है लेकिन सामाजिक परिवर्तन अवश्यंभावी है |
सामाजिक परिवर्तन के तत्व /कारक या आधार
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य तत्व निम्नलिखित हैं : –
(1) प्राकृतिक या भौगोलिक कारक / तत्त्व
सभी प्राकृतिक व भौगोलिक वस्तुएं भौगोलिक कारक के अंतर्गत आती हैं | जैसे वन, पर्वत, नदी, पहाड़, झरने, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि | कई बार सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारण प्राकृतिक कारक होते हैं | कई बार भयंकर बाढ़ या सुनामी आती है जिससे लाखों लोग मर जाते हैं और लाखों लोग बेघर हो जाते हैं | इससे शेष बचे लोगों की विचारधारा में परिवर्तन आता है | लोग प्राकृतिक शक्तियों व ईश्वर में विश्वास रखने लगते हैं | इससे सामाजिक ढांचे में बदलाव आ जाता है |
(2) आर्थिक कारक
आर्थिक कारण भी सामाजिक परिवर्तन का कारण बनते हैं | कार्ल मार्क्स ने आर्थिक कारकों को सामाजिक परिवर्तन का महत्वपूर्ण कारक माना है | संपत्ति का स्वरुप व वितरण सामाजिक-संरचना को प्रभावित करता है | कार्ल मार्क्स के अनुसार प्राय: समाज में दो वर्ग पाए जाते हैं – पूंजीपति वर्ग व मजदूर वर्ग | दोनों वर्ग वापस में संघर्ष करते रहते हैं | इनके संघर्ष के परिणामस्वरुप एक सामाजिक व्यवस्था नष्ट होती हैं तथा दूसरी समाजिक व्यवस्था का जन्म होता है | जैसे 1917 की रूसी क्रांति के पश्चात रूस में साम्यवादी व्यवस्था बनी और पूंजीवादी व्यवस्था का अंत हो गया |
(3) मनोवैज्ञानिक तत्त्व या कारक
मनोवैज्ञानिक कारक भी सामाजिक परिवर्तन का कारण बनते हैं | मानव के मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन का कारण बनते हैं | तनावग्रस्त मानसिकता सामाजिक संबंधों के विघटन का कारण बनती है | कई बार मनुष्य के मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है | उस जिज्ञासा को शांत करने के लिए मनुष्य नई-नई खोजें करता है जिससे समाज उन्नति करता है और सामाजिक ढांचे में भी परिवर्तन आता है |
(4) जैव कारक
डार्विन के मतानुसार जैव कारक भी सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारण बनते हैं | जैव कारकों से अभिप्राय उन कारकों से हैं जो माता-पिता से उनकी संतान को वंशानुगत रूप से मिलते हैं | स्वास्थ्य, शारीरिक व मानसिक क्षमता, प्रजनन आदि सब जैव कारकों से प्रभावित होते हैं | उदाहरण के लिए अगर किसी समाज में पुरुषों की मृत्यु दर अधिक है तो वहां विधवाओं की संख्या में वृद्धि होगी | महिलाओं की स्थिति तथा बच्चों की शिक्षा-दीक्षा प्रभावित होगी | इससे सामाजिक ढांचे में परिवर्तन स्वाभाविक है |
(5) जनसंख्या
जनसंख्या सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारक है | जनसंख्या संबंधी कारकों में शामिल है – जनसंख्या का आकार, सघनता, रचना, जन्म दर, मृत्यु दर, वृद्धि दर आदि | किसी देश में जन्म-दर अधिक है तो जनसंख्या में वृद्धि होगी ; यदि मृत्यु-दर अधिक है तो जनसंख्या में कमी होगी | जनसंख्या के अधिक बढ़ने से कई बार अनेक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं ; जैसे – भुखमरी, बेरोजगारी, गरीबी, महामारी की समस्या आदि | जनसंख्या वृद्धि से आंतरिक कलह भी बढ़ते हैं | ठीक इसी प्रकार जनसंख्या घटने से कर्मठ लोगों की कमी हो जाती है | दोनों ही स्थितियों में सामाजिक संरचना में परिवर्तन आता है |
(6) प्रौद्योगिक कारक
प्रौद्योगिक कारकों में उद्योगों का विकास, मशीनरी का विकास, तकनीक का विकास, नवीन यंत्रों का आविष्कार आदि आते हैं | इनसे भी सामाजिक परिवर्तन आते हैं ; जैसे – उद्योगों के विकास से संयुक्त परिवार की प्रथा को ठेस पहुंची है तथा एकल परिवार की प्रथा का विकास हुआ है |
( 7) सांस्कृतिक कारक
संस्कृतिक कारकों में नई प्रथाएं, नए कानून, नए मूल्य, रीति रिवाज व त्यौहार आते हैं | सांस्कृतिक कारक सामाजिक परिवर्तन का कारण बनते हैं ; जैसे – वर्तमान समाज में जाति प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि प्रथाओं का निषेध किया गया है ; विधवाओं को पुनर्विवाह की अनुमति मिल गई है | इससे समाज में अनेक परिवर्तन आए हैं |
(8) राजनीतिक कारक
राजनीति का कारक भी सामाजिक परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं | प्राचीन इतिहास में हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि राजवंशों का प्रभाव समाज पर पड़ा है | प्रत्येक राजनीतिक दल की अपनी अलग विचारधारा होती है जिससे समाज में परिवर्तन आता है | जैसे – स्वतंत्रता के बाद भारत में दास-प्रथा और जागीरदारी प्रथा का अंत हुआ है | जाति प्रथा के विरुद्ध कानून बनने लगे हैं | बाल विवाह पर रोक लगी है |
(9) महान लोग
कई बार महान लोग अपने कार्यों से समाज में परिवर्तन ला देते हैं ; जैसे – मध्यकाल में कबीर, नानक, रैदास, दादू दयाल, नामदेव तथा सूफी संतों ने समाज में फैली बुराइयों का विरोध किया जिससे सामाजिक बुराइयां कम हुई, मंदिरों के द्वार सभी जातियों के लिए खुल गए | यही काम बाद में स्वामी दयानंद सरस्वती, विवेकानंद जी, राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फूले आदि समाज सुधारकों ने किया | इस प्रकार सामाजिक ढांचे में परिवर्तन आने लगा |
◼️ अतः स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन का अर्थ है – सामाजिक संरचना में बदलाव | इसका सीधा संबंध सामाजिक परंपराओं और रीति-रिवाजों से है | सामाजिक परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है तथा इसके अनेक कारक हैं जो सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करते हैं |