स्वतंत्रता का अर्थ
स्वतंत्रता को अंग्रेजी में लिबर्टी ( Liberty ) कहते हैं जो लैटिन भाषा के लिबर ( Liber ) शब्द से निकला है जिसका अर्थ है – सभी प्रतिबंधों का अभाव अर्थात प्रत्येक मनुष्य पर से सभी प्रकार के प्रतिबंध हटा दिया जाएँ और उसे अपनी इच्छा अनुसार कार्य करने व जीवन जीने का अधिकार दे दिया जाए |
स्वतंत्रता की परिभाषाएं
अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग प्रकार से स्वतंत्रता की परिभाषाएँ दी हैं जिनमें से कुछ कतिपय परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं : –
लॉस्की के अनुसार – “स्वतंत्रता का अर्थ उस वातावरण को कायम रखने से है जिसमें व्यक्ति को पूर्ण विकास के लिए अवसर प्राप्त हो सकें |”
सीले के अनुसार – “स्वतंत्रता अति शासन का उल्टा रूप है |”
कोल के अनुसार – “बिना किसी रूकावट के अपने व्यक्तित्व को प्रकट करने को स्वतंत्रता कहते हैं |”
स्वतंत्रता के विभिन्न प्रकार या रूप
स्वतंत्रता के प्रकारों या रूपों का वर्णन इस प्रकार है : –
1. प्राकृतिक स्वतंत्रता
कुछ विद्वानों का मानना है कि स्वतंत्रता प्राकृतिक वस्तु है और मनुष्य स्वभाव से ही स्वतंत्र होता है | रूसो, हॉब्स, लॉक ने मनुष्य की इसी प्राकृतिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि राज्य और समाज के जन्म से पहले व्यक्ति पूरी तरह स्वतंत्र था और उस पर किसी तरह का कोई बंधन नहीं था | रूसो ने इसीलिए कहा था – “व्यक्ति जन्म से स्वतंत्र पैदा होता है लेकिन वह हर जगह जंजीरों से जकड़ा हुआ है |” लेकिन वह अवस्था स्वेच्छाचारिता की अवस्था रही होगी जिसमें ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ की कहावत लागू रही होगी अर्थात शक्तिशाली और प्रभावशाली लोग ही स्वतंत्रता का भोग कर रहे होंगे तथा दूसरे लोगों की स्वतंत्रता का हनन कर रहे होंगे |
2. नागरिक स्वतंत्रता
नागरिक स्वतंत्रता ऐसी स्वतंत्रता है जिसका उपयोग मनुष्य संगठित समाज के सदस्य के रूप में करता है | इसके अंतर्गत जीवन की सुरक्षा की स्वतंत्रता, आवागमन की स्वतंत्रता, विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता शामिल है | इस तरह नागरिक स्वतंत्रता व्यक्ति के ऐसे अधिकारों से संबंधित है जिसका प्रयोग करके व्यक्ति पूरी तरह से अपना उचित विकास कर पाता है | आज प्रायः सभ्य देशों में नागरिक स्वतंत्रता प्रत्येक नागरिक को प्राप्त होती है |
3. राजनीतिक स्वतंत्रता
अपने राष्ट्र के राजनीतिक जीवन या शासन में भाग लेने के अधिकार को राजनीतिक स्वतंत्रता कहा जाता है | इस तरह राजनीतिक स्वतंत्रता को लोकतंत्र का ही दूसरा नाम कहा जा सकता है | राजनीतिक स्वतंत्रता में देश की शासन प्रणाली में भाग लेने के अधिकारों को प्रदान किया जाता है | इसके अंतर्गत कोई भी नागरिक देश की शासन प्रणाली में हिस्सा ले सकता है | उसे चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त होता है, मत डालने का अधिकार प्राप्त होता है, किसी भी राजनीतिक दल का सदस्य बनने और किसी भी नए राजनीतिक दल का गठन करने की स्वतंत्रता उसे प्राप्त होती है | यह स्वतंत्रता के केवल नागरिकों को ही प्राप्त होती है विदेशी और गंभीर अपराध करने वालों को नहीं |
4. आर्थिक स्वतंत्रता
आर्थिक स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं है कि राज्य नागरिक को आर्थिक क्षेत्र में स्वतंत्र छोड़ दे क्योंकि ऐसा करने से आर्थिक शोषण को बढ़ावा मिलता है | आर्थिक स्वतंत्रता का सही अर्थ है – अभाव और बेरोजगारी से छुटकारा प्रदान करना | दूसरे शब्दों में सभी नागरिकों को भरपेट भोजन मिले, पहनने को उचित कपड़े मिले और रहने के लिए अच्छा मकान मिले | आर्थिक स्वतंत्रता के अंतर्गत राज्य का कोई भी नागरिक अपनी इच्छा के अनुसार तथा अपने कौशल के अनुसार किसी भी व्यवसाय को चुनने के लिए स्वतंत्र होता है |
5. नैतिक स्वतंत्रता
नैतिक स्वतंत्रता का संबंध व्यक्ति के अंतर्मन से है | सामान्यत: आदर्शवादी इस स्वतंत्रता की चर्चा करते हैं | इस स्वतंत्रता के समर्थकों का मानना है कि व्यक्ति अपनी स्वतंत्र नैतिक इच्छाओं का पालन करके ही यथार्थ में स्वतंत्र हो सकता है | नैतिक स्वतंत्रता का अर्थ है कि मनुष्य को अपना नैतिक विकास करने के लिए सभी सुविधाएं प्राप्त हों | ग्रीन, बोसांके और महात्मा गांधी ने व्यक्ति की नैतिक स्वतंत्रता पर बहुत जोर दिया है | उनका कहना है कि मनुष्य नैतिक स्वतंत्रता के बिना नहीं रह सकता | इसका कारण यह है कि नैतिक स्वतंत्रता व्यक्ति को स्वार्थी, लोभ, चोरी,ठगी, बेईमानी, हिंसा, झूठ, ईर्ष्या-द्वेष आदि की गलत भावनाओं से ऊपर उठकर व्यक्तियों का दृष्टिकोण उदार बनाती है |
6. धार्मिक स्वतंत्रता
मानव जीवन में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान है | धार्मिक स्वतंत्रता से हमारा अभिप्राय धार्मिक सहिष्णुता से है | दूसरे शब्दों में प्रत्येक व्यक्ति को अपने विश्वास के आधार पर अपने धर्म का पालन करने, प्रचार करने और पूजा पाठ करने की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए | राज्य को किसी विशेष धर्म का ना तो प्रचार करना चाहिए और ना ही धर्म के आधार पर नागरिकों के साथ किसी तरह का भेदभाव करना चाहिए | राज्य की दृष्टि में प्रत्येक नागरिक एक समान होना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म से संबंध रखता हो |
7. राष्ट्रीय स्वतंत्रता
राष्ट्रीय स्वतंत्रता का उद्देश्य साम्राज्यवाद का विरोध है | इसका अर्थ है कि प्रत्येक राष्ट्र को संप्रभुता प्राप्त होनी चाहिए अर्थात उसे अपनी इच्छा अनुसार अपना शासन चलाने का अधिकार होना चाहिए और वह राष्ट्र घरेलू या विदेशी मामलों में किसी भी दूसरे देश या राष्ट्र के अधीन नहीं होना चाहिए | राष्ट्रीय स्वतंत्रता को उसी तरह स्वाभाविक माना जाता है जिस तरह व्यक्ति का यह स्वाभाविक अधिकार है कि वह स्वतंत्र हो | राष्ट्रीय स्वतंत्रता का अर्थ अपने राष्ट्र को स्वतंत्र बनाए रखने के साथ-साथ अन्य राष्ट्रों की स्वतंत्रता का सम्मान करना भी है तभी प्रतीक राष्ट्र की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो सकती है |
8. व्यक्तिगत स्वतंत्रता
व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अभिप्राय उन कार्यों को करने से है जो व्यक्ति के अपने निजी जीवन से संबंधित हों | कुछ मामले ऐसे होते हैं जो व्यक्ति के निजी जीवन से संबंधित होते हैं | ऐसे कार्यों में कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का हस्तक्षेप सहन नहीं करता | जैसे – रहन-सहन, खान-पान, पारिवारिक जीवन, विवाह-संबंध आदि | व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर भी सामाजिक हित, कानून और व्यवस्था, नैतिकता, राष्ट्र की सुरक्षा आदि के आधार पर अंकुश लगाए जाते हैं | निरंकुशता या पूर्ण स्वतंत्रता जैसी कोई बात नहीं हो सकती |
स्वतंत्रता की सुरक्षा के उपाय
स्वतंत्रता व्यक्ति के लिए बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इसके बिना वह अपना विकास नहीं कर सकता | अत: राज्य में ऐसी व्यवस्था का होना भी आवश्यक है जिससे कि व्यक्ति की स्वतंत्रता को दूसरे व्यक्तियों या सरकार द्वारा छीने जाने से बचाया जा सके अर्थात इसकी रक्षा की जा सके | स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं : –
1. मौलिक अधिकारों की अवधारणा
नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संविधान में स्पष्ट उल्लेख हो | ताकि उनका किसी व्यक्ति या सरकार द्वारा आसानी से उल्लंघन नहीं किया जा सके | यदि सरकार किसी समय भी इन अधिकारों को छीनने का प्रयत्न करती है तो नागरिक न्यायालय की शरण में जाकर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकता है | सभी लोकतांत्रिक देशों के संविधान में मौलिक अधिकारों का वर्णन मिलता है |
2. लोकतंत्र की स्थापना
केवल लोकतंत्र ही एक ऐसी शासन-प्रणाली है जिसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित रह सकती है | इसके अंतर्गत व्यक्तियों के अधिकारों को आसानी से नहीं छीना जा सकता और यदि सरकार ऐसा करने का प्रयत्न करती है तो उसकी आलोचना और विरोध करके या न्यायालय की शरण लेकर उसे ऐसा करने से रोका जा सकता है | इस प्रकार हम कहते हैं कि लोकतांत्रिक शासन-प्रणाली में ही स्वतंत्रता फलती-फूलती है |
3. स्वतंत्र न्यायपालिका
नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह परम आवश्यक है कि न्यायपालिका पूरी तरह से स्वतंत्र हो | वह कार्यपालिका और विधानपालिका से पूरी तरह से पृथक होनी चाहिए | यदि न्यायपालिका किसी के दबाव में होगी तो इसके लिए निष्पक्ष न्याय करना और संबंधित नागरिकों के स्वतंत्रता और समानता जैसे मौलिक अधिकारों की रक्षा करना संभव नहीं हो पाएगा |
4. शक्तियों का विकेंद्रीकरण
स्वतंत्रता की रक्षा के लिए प्रशासन की शक्तियों का विकेंद्रीकरण करना अति आवश्यक है | जिस देश में सारी शक्तियां एक ही स्थान पर केंद्रित हो जाती हैं वहां निरंकुशता विकसित हो जाती है | इसलिए यह आवश्यक है कि शक्तियां केंद्र सरकार, राज्य सरकार तथा स्थानीय सरकारों में विभाजित हों | इससे व्यक्तियों की स्वतंत्रता सुरक्षित रहती है |
5. कानून का शासन
स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए कानून का शासन होना अति आवश्यक है | कानून का शासन का अर्थ यह है कि कानून की दृष्टि में सभी समान हैं | एक देश के सभी नागरिक चाहे स्त्री हो या पुरुष, धनी हो या निर्धन, उनका सामाजिक स्तर चाहे कुछ भी हो कानून की दृष्टि से उनमें कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा | कानून के शासन के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को तब तक कोई दंड नहीं दिया जा सकेगा जब तक कि किसी न्यायालय में उसके विरुद्ध अभियोग जलाकर यह सिद्ध नहीं किया जाए कि उसने किसी निश्चित कानून का उल्लंघन किया है | इस प्रकार ऐसी व्यवस्था से स्वतंत्रता बहुत हद तक सुरक्षित रहती है | इंग्लैंड, फ़्रांस, भारत तथा अमेरिका आदि सभी लोकतान्त्रिक देशों में कानून का शासन प्रचलित है |
6. आर्थिक सुरक्षा
नागरिकों की स्वतंत्रता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को आर्थिक क्षेत्र में भी सुरक्षा प्राप्त हो | जिस देश में धनी और निर्धन के बीच का फासला अधिक होगा, बेरोजगारी और भुखमरी अधिक होगी उस देश के नागरिकों की स्वतंत्रता कभी वास्तविक स्वतंत्रता नहीं हो सकती | जिस व्यक्ति के पास खाने को कुछ नहीं है वह अपनी राजनीतिक अधिकारों का कभी उचित प्रयोग नहीं कर सकता क्योंकि उसके लिए धनी लोगों की बराबरी करना असंभव है | उसकी प्राथमिक केवल अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना होगी |
7. राजनीतिक शिक्षा तथा सतत जागरूकता
स्वतंत्रता की रक्षा के लिए लोगों के पास राजनीतिक शिक्षा का होना भी आवश्यक है | जो लोग अशिक्षित होंगे उन्हें अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं होगा | इसलिए उनके लिए अपनी स्वतंत्रता की रक्षा कर पाना असंभव हो जायेगा | यदि व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता पर होने वाले आघातों व आक्रमणों के विरुद्ध बलपूर्वक आवाज उठाने के लिए तैयार नहीं होंगे तो उनकी स्वतंत्रता सुरक्षित नहीं रह सकती | सच तो यह है कि जब तक राजनीतिक रूप से नागरिक शिक्षित नहीं होते तब तक उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं होती, उन्हें उन प्रावधानों के विषय में नहीं पता होता जो उनकी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए बनाए गए हैं | राजनीतिक शिक्षा के हो जाने के पश्चात नागरिक स्वत: ही जागरूक हो जाता है और अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए और अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हर प्रकार का कदम उठाने के लिए तैयार रहता है |
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