कृष्ण काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएँ
( Krishna Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan/Visheshtayen )
हिंदी साहित्य के इतिहास को मोटे तौर पर तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | हिंदी साहित्य-इतिहास के काल विभाजन और नामकरण को निम्नलिखित आलेख के माध्यम से भली प्रकार समझा जा सकता है :
अतः स्पष्ट है कि कृष्ण काव्य धारा सगुण काव्यधारा की एक शाखा है | इन कवियों ने श्रीकृष्ण को अपना आराध्य देव मानकर काव्य रचना की |
कृष्ण काव्य परंपरा
( Krishna Kavya Parampara )
कृष्ण काव्य धारा के कवियों में अष्टछाप के कवियों का विशेष योगदान है | वल्लभाचार्य ( Vallabhacharya ) ने पुष्टीमार्ग ( Pushtimarg ) की स्थापना की | उनके निधन के पश्चात विट्ठलनाथ ( Vitthalnath ) ने अष्टछाप की स्थापना की |
अष्टछाप ( Ashtchhap ) में सम्मिलित आठ कवि थे – कुंभन दास, सूरदास, परमानंद दास, कृष्णदास, गोविंद स्वामी, छीत स्वामी, नंद दास और चतुर्भुज दास | इन 8 कवियों में से प्रथम चार वल्लभाचार्य के शिष्य थे तथा अंतिम चार विट्ठलनाथ के शिष्य थे | अष्टछाप की स्थापना सन 1565 में हुई |
कुंभनदास ( Kumbhandas ) अष्टछाप के कवियों में प्रमुख कवि थे | इनकी कोई स्वतंत्र रचना नहीं मिलती इनके जीवन के बारे में ‘चौरासी वैष्णव की वार्ता’ ( गोस्वामी गोकुलनाथ ) में मिलता है |
सूरदास कृष्ण काव्य धारा ( Krishna Kavya Dhara ) के सर्वाधिक प्रमुख कवि माने जाते हैं | इनकी तीन प्रामाणिक रचनाएं हैं – सूरसागर, सूर सारावली तथा साहित्य लहरी | इनके पद श्रृंगार व माधुर्य से ओतप्रोत हैं | सूरदास जी को वात्सल्य सम्राट भी कहा जाता है |
परमानंद दास जी भी वल्लभाचार्य के शिष्य थे | इनके पद ‘परमानंद दास सागर’ में मिलते हैं |
कृष्णदास भी वल्लभाचार्य के शिष्य थे | इनके कुछ फुटकर पद मिलते हैं |
गोविंद स्वामी तथा छीत स्वामी भी प्रमुख कृष्ण कवि ( Pramukh Krishn Kavi ) हैं | इनके स्वतंत्र ग्रंथ नहीं मिलते इनके भी कुछ फुटकर पद ही मिलते हैं |
नंद दास ( Nanddas ) जी कृष्ण काव्य धारा के प्रमुख कवि हैं | वह विट्ठलनाथ के शिष्य थे | सूरदास के बाद इन्हें कृष्ण काव्य धारा का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है | नंददास की प्रमुख रचनाएँ हैं – रास पंचाध्यायी, रूपमंजरी, रसमंजरी आदि |
चतुर्भुजदास जी भी विट्ठलनाथ के शिष्य थे | इनका भी कोई स्वतंत्र ग्रंथ नहीं मिलता |
अष्टछाप के कवियों के अतिरिक्त भी अन्य कुछ कृष्ण कवि हुए हैं | जिनमें प्रमुख हैं – रहीम, रसखान व मीराबाई |
रहीम जी का नाम कृष्ण काव्य तथा नीति काव्य के लिए प्रसिद्ध है | वह अकबर के दरबारी कवि थे | इनके प्रमुख ग्रंथ हैं – बरवै नायिका भेद व ज्योतिष ग्रंथ |
रसखान जी भी प्रमुख कृष्ण भक्त कवि हुए हैं | इनकी प्रमुख रचनाएं हैं – प्रेम वाटिका, सुजान रसखान |
मीराबाई की कृष्ण भक्ति प्रसिद्ध है | उनके काव्य में जो विरह वेदना मिलती है; वह संपूर्ण हिंदी साहित्य में बेजोड़ है | उनकी प्रमुख रचनाएं हैं – गीतगोविंद की टीका, नरसी जी का मोहरा, मलार राग आदि | इसके अतिरिक्त इनके कुछ फुटकर पद भी मिलते हैं |
राम काव्य धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास जी ने भी कृष्ण भक्ति संबंधी काव्य रचना की है | उनकी रचना ‘कृष्ण गीतावली’ कृष्ण काव्य परंपरा में आती हैं |
कृष्ण काव्य धारा के प्रमुख कवि ( Krishn Kavya Dhara Ke Pramukh Kavi )
कुम्भनदास, सूरदास, परमानंददास, कृष्णदास, गोविन्द स्वामी, छीत स्वामी, चतुर्भुजदास, नंददास, रहीम, रसखान, मीराबाई व तुलसीदास |
कृष्ण काव्य की प्रवृत्तियां /विशेषताएं ( Krishna Kavya Ki Pravrittiyan या Visheshtayen )
कृष्ण काव्य धारा ( Krishn Kavya Dhara ) की प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं :-
1. कृष्ण का स्वरूप : सभी कृष्ण भक्त कवियों ने कृष्ण को ईश्वर का अवतार माना है | उन्होंने कृष्ण को सर्वगुण संपन्न, सर्वशक्तिमान व सर्वदाता माना है | उनके अनुसार इस सृष्टि में सभी कुछ उनके द्वारा रचित है | उनका कृष्ण सर्वज्ञ तथा सर्वव्यापक है |श्रीमद्भागवत पुराण कृष्ण भक्ति का मूल आधार है | इसलिए कुछ स्थानों पर इन कवियों ने कृष्ण का वर्णन मानव रूप में किया है तथा कुछ स्थानों पर अवतारी रूप में | मानव रूप में श्री कृष्ण नंद-यशोदा के पुत्र, ग्वाल बालकों के सखा तथा गोपियों के प्रेमी हैं | अधिकांश कृष्ण भक्त कवियों ने कृष्ण के इसी रूप के आधार पर काव्य रचना की है | बीच-बीच में यह कवि कृष्ण के अवतारी रूप का वर्णन भी करते हैं | ऐसे समय में वे कृष्ण को ब्रह्म मानकर उनका विराट रूप प्रस्तुत करते हैं और उन्हें तीनों लोकों का स्वामी घोषित करते हैं |
2. कृष्ण की लीलाओं का वर्णन : सभी कृष्ण कवियों ने कृष्ण की लीलाओं का सुंदर वर्णन किया है | ब्रज मंडल कृष्ण की लीला भूमि मानी जाती है | वहीं पर उन्होंने विभिन्न प्रकार की लीलाएं व क्रीड़ाएं की | सूरदास ने कृष्ण की बाल लीला का अत्यंत मनोहारी वर्णन किया है | उन्होंने कृष्ण के रूप सौंदर्य एवं उनकी शारीरिक चेष्टाओं व लीलाओं का सरस, मनोरम व स्वाभाविक वर्णन किया है |
राधा-कृष्ण और गोपी-कृष्ण की जिन लीलाओं का वर्णन कृष्ण भक्त कवियों ने किया है वह सब पुराणों पर आधारित है | उन सभी कवियों ने कृष्ण की बाल लीला, किशोर लीला और रास लीला का चित्रण किया है |
3. विषय-वस्तु की मौलिकता : यह तथ्य तो सभी विद्वान स्वीकार करते हैं कि कृष्ण काव्य का उपजीव्य ग्रंथ भागवत पुराण है | वल्लभाचार्य ने अपने शिष्यों को यह आदेश भी दिया कि वह भागवत के दशम स्कंध को आधार बनाकर कृष्ण लीला का वर्णन करें लेकिन यह भी सत्य है कि कृष्ण कवियों ने भले ही भागवत पुराण को अपने काव्य का आधार बनाया हो लेकिन फिर भी उनकी मौलिकता सर्वत्र देखी जा सकती हैं |
भागवत पुराण के कृष्ण निर्लिप्त हैं और वे गोपियों की प्रार्थना पर ही लीलाओं में भाग लेते हैं | लेकिन कृष्ण काव्यों में कृष्ण स्वयं गोपियों की तरफ आकृष्ट होते हैं |
इसी प्रकार भागवत पुराण में सगुण पर निर्गुण की विजय का चित्रण किया गया है जबकि कृष्ण काव्य में निर्गुण पर सगुण की विजय दर्शाई गई है |
भागवत पुराण में कृष्ण को ब्रह्म के रूप में चित्रित किया गया है लेकिन कृष्ण काव्य में कृष्ण को एक सामान्य मानव के रूप में चित्रित किया गया है |
इस प्रकार हम देखते हैं कि कृष्ण काव्य में सर्वत्र मौलिकता के दर्शन होते हैं |
4. भक्ति भावना : भक्ति भावना कृष्ण काव्य की प्रमुख प्रवृत्ति है | कृष्ण कवियों ने यह भक्ति अनेक रूपों में अभिव्यक्त की है |यद्यपि उनके काव्य में नवधा भक्ति मिलती है परंतु मुख्यतः इनकी भक्ति वात्सल्य, सख्य व दांपत्य भाव की है |
गोपियां कृष्ण से प्रेम करती हैं | उनके लिए उन्होंने अपने समाज व परिवार की मर्यादा का परित्याग कर दिया है | उनकी भक्ति दांपत्य भक्ति की श्रेणी में आती है | मीराबाई ने भी दांपत्य भाव की भक्ति की है |
कृष्ण-सुदामा के प्रसंग व कृष्ण-ग्वालों के प्रसंग सख्य भक्ति के अंतर्गत आते हैं |
जब श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया जाता है तो वात्सल्य भाव जागृत होता है | लगभग सभी कृष्ण कवियों ने कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया है परंतु जैसा वर्णन सूरदास ने किया है वैसा वर्णन अन्य किसी ने नहीं किया इसीलिए उन्हें वात्सल्य सम्राट भी कहा जाता है |
कहीं-कहीं दास्य भक्ति भी मिलती है | सूरदास जी ने एक स्थान पर कहां है –
” प्रभु हौं सब पतितन को टीको
और पतित सब दिवस चारी के हौं तो जन्मत ही को |”
माधुर्य भक्ति के कारण इनके काव्य में श्रृंगार रस का सुंदर परिपाक हुआ है |
“जब तै प्रीति श्याम स्याम सौं किन्ही
ता दिन तै मेरे इन नैननि नैकहुं नींद न लीन्ही |”
5. प्रकृति वर्णन : कृष्ण कवियों ने प्रकृति वर्णन में भी पर्याप्त रुचि ली है | इन कवियों ने प्रकृति के आलम्बनगत व उद्दीपनगत, दोनों रूपों का वर्णन किया है | कहीं-कहीं पर प्रकृति को दूती रूप व उपदेशक रूप में भी प्रस्तुत किया गया है |
कृष्ण कवियों ने ब्रजमंडल के प्राकृतिक सौंदर्य को अपने काव्य में स्थान दिया है | इन्होंने गोकुल, गोवर्धन, यमुना-तट आदि का सुंदर वर्णन किया है |
श्रृंगार रस के संयोग पक्ष में इन कवियों ने जो प्रकृति वर्णन किया है वह आलम्बनगत भी है और उद्दीपनगत भी परंतु वियोग पक्ष में इन्होंने प्रकृति का उद्दीपनगत वर्णन किया है|
विरहावस्था में प्रकृति विरहाग्नि को और भड़का देती हैं |
इस विषय में सूरदास जी लिखते हैं –
“बिनु गोपाल बैरिन भई कुंजैं
तब यह लता लगती अति शीतल,
अब भई विषम ज्वाल की पुंजैं |”
6. भक्ति रस : संपूर्ण कृष्ण काव्य में एक ही रस है जिसे हम भक्ति रस कहते हैं | वैसे अनेक विद्वान भक्ति को रस नहीं मानते लेकिन भक्ति रस ही एक ऐसा रस है जो हमें कृष्ण कवियों की रचनाओं में सर्वत्र दिखाई देता है |
वैसे इस काव्य में मुख्यतः है श्रृंगार, वात्सल्य व शांत रस का परिपाक हुआ है|
वीर रस, भयानक व अद्भुत रस बहुत कम मिलते हैं |
सूरदास जी को वात्सल्य सम्राट कहा जाता है |
सूरदास, नंददास, मीराबाई, रसखान आदि कवियों ने श्रृंगार रस के दोनों रूपों का सफलतापूर्वक अपने काव्य में प्रयोग किया है |
मीराबाई की विरह वेदना के कारण उनका वियोग श्रृंगार संपूर्ण हिंदी साहित्य में बेजोड़ है |
7. रीति-तत्वों का समावेश : कृष्ण काव्य धारा के कुछ कवियों की रचनाओं में रीति-तत्वों का समावेश भी मिलता है | इस संदर्भ में सूरदास व नंददास का नाम उल्लेखनीय है | इन दोनों कवियों ने अपनी रचनाओं में नायक-नायिका भेद का वर्णन किया है | सूरदास जी की साहित्य लहरी में नायक-नायिका भेद का वर्णन है |
नंददास की रूपमंजरी, रसमंजरी रचनाओं में नायक-नायिका भेद का वर्णन है | इन रचनाओं में नंददास ने नायिकाओं के 9 भेद तथा नायकों के चार भेद बताए हैं |
8. कला पक्ष : प्रायः सभी कृष्ण कवियों ने साहित्यिक ब्रजभाषा का को अपनाया है | इन कवियों ने ब्रजभाषा के साथ ब्रजमंडल में प्रचलित मुहावरों व लोकोक्तियों का भी सुंदर प्रयोग किया है|
अलंकारों के दृष्टिकोण से इन कवियों ने शब्दालंकार और अर्थालंकार, दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया है | अनुप्रास, यमक, श्लेष, रूपक, उपमा, मानवीकरण आदि इनके प्रिय अलंकार हैं |
चौपाई, सवैया, कवित्त गीतिका आदि इनके प्रिय छंद है|
यहां यह ध्यातव्य है कि सभी कृष्ण कवियों ने गीति शैली को अपनाया है | इसका प्रमुख कारण यह है कि इनकी रचनाओं में गीतात्मकता, संगीतात्मकता, रागात्मकता आदि प्रवृतियां देखी जा सकती हैं | इन कवियों ने अपने पदों में विभिन्न राग-रागनियों का प्रयोग किया है |
◼️ निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि कृष्ण काव्य परंपरा ने हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है | भक्ति काल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल बनाने में कृष्ण काव्य परंपरा का विशेष योगदान है |
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