संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया ( मैथिलीशरण गुप्त ) : व्याख्या
निज रक्षा का अधिकार रहे जन-जन को,
सब की सुविधा का भार किंतु शासन को |
मैं आर्यों का आदर्श बताने आया,
जन-सम्मुख धन को तुच्छ जताने आया |
सुख-शांति हेतु में क्रांति मचाने आया,
विश्वासी का विश्वास बचाने आया | (1)
मैं आया उनके हेतु कि जो तापित हैं,
जो विवश, विकल, बल-हीन, दीन शापित हैं |
हो जाएं अभय वे, जिन्हें कि भय भासित हैं,
जो कौणप-कुल से मूक-सदृश शासित हैं |
मैं आया जिसमें बनी रहे मर्यादा,
बच जाए प्रबल से, मिटै न जीवन सादा |
सुख देने आया दु:ख झेलने आया,
मैं मनुष्यत्व का नाट्य खेलने आया | (2)
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक में संकलित कविता ‘संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया’ से उद्धृत है | यह कविता मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित महाकाव्य ‘साकेत’ ( Saket ) के आठवें स्वर्ग का अवतरण है | इस कविता में गुप्त जी ने श्रीराम की आदर्श शासन-व्यवस्था व शासक के कर्तव्यों पर प्रकाश डाला है |
व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि मैथिलीशरण गुप्त ने श्री राम के माध्यम से आदर्श शासक के कर्तव्यों का उल्लेख किया है | श्री राम कहते हैं कि शासक को अपनी प्रजा के हितों के लिये सदैव तत्पर रहना चाहिए | जनता को अपनी रक्षा करने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए लेकिन उसकी सुख सुविधाओं का ध्यान रखना शासक का कर्तव्य है | श्री राम कहते हैं कि मैं यहां अपने पूर्वजों के आदर्शों को बताने के लिए आया हूँ | वे कहते हैं कि मानव जीवन के समक्ष धन का कोई महत्त्व नहीं है अर्थात मानव जीवन व उसके हित सर्वोपरि हैं ; धन गौण है | श्री राम कहते हैं कि वह जनता की सुख-शांति के लिए समाज में परिवर्तन लाना चाहते हैं और शासन व्यवस्था को लोकतांत्रिक बनाकर शासन-व्यवस्था में लोगों के विश्वास को पुनर्स्थापित करने आये हैं |
श्री राम कहते हैं कि वह उन लोगों के लिए यहां पर आए हैं जो दुखी और शोक-संतप्त हैं | जो लोग किसी कारणवश विवश, व्याकुल, निर्बल, दीन-हीन और शापित हैं ; मैं उनकी सहायता के लिए आया हूँ | मैं चाहता हूं कि जो लोग दूसरों की शक्ति से भयभीत है वह भय-रहित हो जायें | जो लोग राक्षस कुल के द्वारा गूंगों की भांति शासित किए जा रहे हैं अर्थात जिन्हें बोलने का भी अधिकार प्राप्त नहीं है ; मैं उन्हीं लोगों को स्वतंत्र कराने आया हूँ | श्री राम कहते हैं कि वह शासक के रूप में इस धरा पर इसलिए अवतरित हुए हैं कि जीवन की मर्यादा बनी रहे, प्रबल लोगों के भय से सीधे-सादे लोग भयरहित होकर जीवन-यापन कर सकें | मैं यहां स्वयं दुख झेलकर दूसरों को सुख देने के लिए आया हूँ | मैं इस संसार में मानवता का नाटक रचने के लिए आया हूँ | अर्थात इस धरा पर मानव रूप में जन्म लेकर में एक अच्छे शासक के आदर्शों की स्थापना करके यहां पर मानवता की आधारशीला रखने के लिए आया हूँ |
विशेष – (1) श्री रामचंद्र जी के माध्यम से एक आदर्श शासक के गुणों को अभिव्यक्त किया गया है |
(2) अनुप्रास, अन्त्यानुप्रास व रूपक अलंकारों की सुन्दर छटा है |
(3) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है |
मैं यहां एक अवलंब छोड़ने आया,
गढ़ने आया हूँ नहीं तोड़ने आया |
मैं यहां जोड़ने नहीं बांटने आया,
जगदुपवन के झंखाङ छांटने आया |
मैं राज्य भोगने नहीं, भुगाने आया,
हंसों को मुक्ता-मुक्ति चुगाने आया |
भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया,
नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया | (3)
संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया,
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया |
अथवा आकर्षण पुण्यभूमि का ऐसा,
अवतरित हुआ मैं आप उच्च फल जैसा | (4)
प्रसंग – पूर्ववत |
व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि ने श्री रामचंद्र जी के माध्यम से एक आदर्श शासक के गुणों को प्रस्तुत किया है | श्री रामचंद्र जी कहते हैं कि मैं एक आदर्श शासन व्यवस्था स्थापित करने आया हूं जो आने वाले शासकों के लिए अवलंब बन सके | मैं समाज को विभाजित करने के लिए नहीं बल्कि एक सुव्यवस्थित समाज का निर्माण करने के लिए आया हूँ | श्री रामचंद्र जी आगे कहते हैं कि मैं अन्य शासकों के भांति यहां पर धन-वैभव जोड़ने के लिए नहीं बल्कि अपना सर्वस्व अपनी प्रजा में बांटने के लिए आया हूँ | मैं राज-सुख भोगने के लिए नहीं बल्कि लोगों को सुख प्रदान करने के लिए आया हूँ | मैं हंस के समान पवित्र लोगों को मुक्तामणि चुगाने के लिए आया हूँ | मैं इस संसार को नई समृद्धि से आपूरित करने आया हूँ | मैं मनुष्य को ईश्वर के गुणों से युक्त करके उसे ईश्वरत्व प्रदान करने आया हूँ | कहने का भाव यह है कि श्री रामचंद्र जी मानव रूप में एक आदर्श शासक के रूप में अवतरित हुए हैं और वह अपनी प्रजा को केवल सुख-समृद्धि प्रदान नहीं करना चाहते बल्कि स्वतंत्रता, समानता, भाईचारा आदि भावनाओं से भी समाज को ओतप्रोत करना चाहते हैं | इसके साथ-साथ वे उनमें नैतिक गुणों का संचार करके उन्हें ईश्वरत्व प्रदान करना चाहते हैं |
श्री रामचंद्र जी कहते हैं कि मैं यहां स्वर्ग का संदेश लेकर नहीं आया हूं बल्कि मैं तो इस धरा को ही स्वर्ग के समान सुंदर बनाने आया हूँ | इस प्रकार श्री रामचंद्र जी कहना चाहते हैं कि उनका इस धरा पर अवतरित होने का प्रमुख कारण यही है कि वह एक आदर्श शिक्षक बनकर यहां के लोगों को सुख-समृद्धि से संपन्न करें और उन्हें नैतिक गुणों का उत्थान करें | इसके अतिरिक्त श्री रामचंद्र जी की पवित्र भारत भूमि के विषय में कहते हैं कि इस पवित्र भूमि का आकर्षण ही कुछ ऐसा है कि मैं यहां जन्म लेकर धन्य हो गया | मेरा यहां पर अवतरित होना वास्तव में मुझे मिला एक महान फल है |
विशेष – (1) श्री रामचंद्र जी के माध्यम से एक आदर्श शासक के गुणों को अभिव्यक्त किया गया है |
(2) अंतिम पंक्तियों में कवि का राष्ट्र प्रेम झलकता है |
(3) अनुप्रास, अन्त्यानुप्रास व रूपक अलंकारों की सुंदर छटा है |
(4) भाषा सरल, सहज एवं प्रवाहमयी है |
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