मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ |
लेकिन मुझे फेंको मत |
क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाये |
अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी
बड़े-बड़े महारथी
अकेली निहत्थी आवाज को
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहे
तब मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया
उसके हाथों में
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ | (1)
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत
इतिहास कि सामूहिक गति सहसा झूठी पड़ जाने पर
क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले | (2)
‘रथ का टूटा पहिया’ कविता का प्रतिपाद्य /संदेश / मूल भाव
‘रथ का टूटा पहिया’ ( Rath Ka Tuta Pahiya ) डॉ धर्मवीर भारती की एक महत्वपूर्ण कविता है | यह कविता उनके कविता संग्रह ‘सात गीत वर्ष’ में संकलित है | इस कविता में कवि ने महाभारत के ‘चक्रव्यूह भेदन’ प्रसंग को आधार बनाकर एक महत्वपूर्ण संदेश दिया है |
इस कविता में ‘टूटा पहिया’ समाज के उपेक्षित तथा हीन समझे जाने वाले वर्ग का प्रतीक है | टूटा पहिया व्यर्थ समझे जाने वाली वस्तुओं का प्रतीक भी हो सकता है | इसे पारंपरिक मूल्यों का प्रतीक भी माना जा सकता है जिन्हें अति आधुनिकता के कारण हम निरर्थक और सार-हीन समझने लगते हैं |
महाभारत के युद्ध में जब अभिमन्यु अपने सभी अस्त्र-शस्त्र खो बैठता है तो ऐसी स्थिति में वह रथ के टूटे पहिए से आत्म-रक्षा करने का प्रयास करता है | इस प्रकार पूर्ण रूप से बेकार मानी जाने वाली वस्तु भी महत्वपूर्ण होती है | समाज में उपेक्षित समझे जाने वाली वस्तु एवं व्यक्ति भी मानव जीवन के उत्थान में सहायक सिद्ध हो सकते हैं | यही बात परंपरागत मूल्यों एवं परंपराओं के संदर्भ में भी कही जा सकती है | जब आधुनिक परिवेश में निराशा, कुंठा व संघर्ष व्याप्त होने लगे तब ऐसी अवस्था में परंपरागत मूल्य जीवनदायी सिद्ध हो सकते हैं |
‘रथ का टूटा पहिया’ कविता का मूल भाव यही है कि प्रत्येक वस्तु का महत्व समझा जाना चाहिए | किसी भी वस्तु को निरर्थक और किसी भी व्यक्ति को उपेक्षित नहीं समझना चाहिए | उसका भी उतना ही महत्व है जितना किसी उपयोगी वस्तु का या श्रेष्ठ व्यक्ति का |
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