सूनी सी सांझ एक
दबे पांव मेरे कमरे में आई थी |
मुझको भी वहां देख
थोड़ा सकुचाई थी |
तभी मेरे मन में यह बात आई थी
कि ठीक है, यह अच्छी है,
उदास है, पर सच्ची है :
इसी की साँवली छाँव में कुछ देर रहूँगा
इसी की साँस की लहर पर बहूँगा |
चुपचाप इसी के नीरव तलुवों की
लाल छाप देखूँगा
कुछ नहीं कहूँगा | (1)
पर उस सलोनी के पीछे-पीछे
घुस आयीं बिजली की बत्तियाँ
बेहया धड़-धड़ गाड़ियों की :
मानुषों की खड़ी-खड़ी बोलियाँ |
वह रुकी तो नहीं, आई तो आ गई,
पर साथ-साथ मुरझा गई |
उसकी पहले ही मद्धिम अरुणाली पर
घुटन की एक स्याही छा गई |
सोचा था कुछ नहीं कहूँगा
कुछ नहीं कहा :
पर मेरे उस भाव का, संकल्प का
बस, इतना ही रहा | (2)
यह नहीं वह न कहना था
जो कि उसको उदास पर सच्ची लुनाई में बहना था
जो अपने ही अपने न रहने को
तद्गत हो सहना था |
यह तो बस रुँध कर चुप रहना था |
यों न जाने कब कहाँ
वह साँझ
ओझल हो गई |
और मेरे लिए यह
सूने न रहने की
रीते न होने की
बाँझ अनुकंपा समाज की
कितनी बोझल हो गई | (3)
‘सूनी सी साँझ एक’ कविता का प्रतिपाद्य या कथ्य ( ‘Sooni Si Sanjh Ek’ Kavita Ka Pratipadya Ya Kathya )
‘सूनी सी साँझ एक’ अज्ञेय जी की एक महत्वपूर्ण कविता है | प्रस्तुत कविता में कवि ने एक सूनी साँझ का चित्र प्रस्तुत किया है | कवि को सूनी सी साँझ आनंद प्रदान करती है |
कवि साँझ के समय एकांत में कुछ समय बिताना चाहता है परंतु उसके आसपास का भीड़ भरा वातावरण उसके एकांत के पलों को भंग कर देता है | कवि कहता है कि एक दिन सूनी साँझ धीरे-धीरे उसके कमरे में प्रवेश कर गई | वह कवि को देखकर थोड़ा संकोच करने लगी | उसको देखकर कवि के मन में एक विचार आया कि वह साँझ बहुत अच्छी है | वह साँझ उदास थी परंतु सच्ची लग रही थी | कवि विचार करता है कि उस सूनी साँझ की छाया में वह कुछ समय अकेला रहेगा | कवि उस साँझ के साथ कुछ पल एकांत में गुजरना चाहता है | वह साँझ की लालिमा का सुख प्राप्त करना चाहता है | स्वयं कुछ नहीं कहना चाहता परंतु उसी समय बिजली की बत्तियां जलने लगी | वाहनों और लोगों की आवाजों ने मिलकर वातावरण में अशांति फैला दी | देखते ही देखते वह साँझ कवि की आँखों से कहीं दूर ओझल हो गई | कवि कुछ समय एकांत में बिताना चाहता था लेकिन आधुनिक शहरी समाज ने उसकी वह शांति भंग कर दी | कवि के मन के भाव अनकहे ही रह गए |
इस प्रकार ‘सूनी सी साँझ एक’ कविता का मुख्य विषय इस तथ्य को अभिव्यक्त करना है कि जीवन की आपाधापी ने मनुष्य से साँझ के सुखदायी पलों को छिन लिया है |