अभिधा शब्द-शक्ति उस शब्द-शक्ति को कहते हैं जो किसी शब्द के कोशगत अथवा उसके प्रसिद्ध सांकेतिक अर्थ को प्रकट करती है | आचार्यों ने इसे ‘प्रथमा’ या ‘अग्रिम’ नाम भी दिया है |
उदाहरण – वाटिका में सुंदर फूल खिले हैं | इस वाक्य में ‘फूल’ शब्द का कोशगत अर्थ प्रकट होता है | अत: यहाँ अभिधा शब्द-शक्ति है |
अभिधा के भेद ( Abhidha Ke Bhed )
शब्दों की रचना के आधार पर अभिधा के तीन भेद हैं – ( क ) रूढ़ि अभिधा, (ख ) यौगिक अभिधा तथा ( ग ) योगरूढ़ि अभिधा |
(क ) रूढ़ि अभिधा – जिन शब्दों के सार्थक टुकड़े नहीं किए जा सकते और जो परंपरा से किसी विशेष अर्थ में रूढ़ हो गये हैं, वहाँ रूढ़ि अभिधा होती है | जैसे – आँख, कान, नाक, पेड़, फूल आदि |
(ख ) यौगिक अभिधा – जो शब्द दो या दो से अधिक रूढ़ शब्दों के योग से बनते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं तथा जो शब्द-शक्ति इनके अर्थ का बोध कराती है, उसे यौगिक अभिधा कहते हैं | जैसे – पुस्तकालय, विद्यालय आदि |
(ग ) योगरूढ़ि अभिधा – जो शब्द दो रूढ़ शब्दों से मिलकर बने होते हैं परंतु किसी विशिष्ट अर्थ में रूढ़ हो जाते हैं, उन्हें योगरूढ़ शब्द कहते हैं तथा जो शब्द-शक्ति उनके अर्थ का बोध कराती है, उसे योगरूढ़ि अभिधा कहते हैं | जैसे – चारपाई का अर्थ है- चार पायों वाली लेकिन अब यह शब्द चार पायों वाली सभी वस्तुओं के लिये प्रयोग न होकर केवल ‘खाट’ अर्थ के लिए ही रूढ़ हो गया है | इसलिए यह योगरूढ़ शब्द है | ठीक इसी प्रकार ‘पंकज ‘का अर्थ है – पंक ( कीचड़ ) में उत्पन्न होने वाला परंतु अब यह शब्द केवल कमल के लिए रूढ़ हो गया है |