कौन तुम मेरे हृदय में ( Kaun Tum Mere Hriday Mein ) : महादेवी वर्मा

कौन तुम मेरे हृदय में?

कौन मेरी कसक में नित

मधुरता भरता अलक्षित?

कौन प्यासे लोचनों में

घुमड़ घिर झरता अपरिचित?

स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा

नींद के सूने निलय में !

कौन तुम मेरे हृदय में? (1)

अनुसरण निश्वास मेरे

कर रहे किसका निरंतर?

चूमने पदचिन्ह किसके

लौटते यह श्वास फिर-फिर?

कौन बंदी कर मुझे अब

बँध गया अपनी विजय में?

कौन तुम मेरे हृदय में? (2)

एक करुण अभाव में चिर –

तृप्ति का संसार संचित ;

एक लघु क्षण दे रहा

निर्वाण के वरदान शत-शत ;

पा लिया मैंने किसे इस

वेदना के मधुर क्रय में

कौन तुम मेरे हृदय में? (3)

गूँजता उर में न जाने

दूर के संगीत-सा क्या?

आज खो निज को मुझे

खोया मिला, विपरीत-सा क्या?

क्या नहा आई विरह-निशि

मिलन-मधु-दिन के उदय में?

कौन तुम मेरे हृदय में? (4)

तिमिर-पारावार में

आलोक-प्रतिमा है अकम्पित ;

आज ज्वाला से बरसता

क्यों मधुर घनसार सुरभित? (5)

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