कौन तुम मेरे हृदय में?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?
स्वर्ण-स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में !
कौन तुम मेरे हृदय में? (1)
अनुसरण निश्वास मेरे
कर रहे किसका निरंतर?
चूमने पदचिन्ह किसके
लौटते यह श्वास फिर-फिर?
कौन बंदी कर मुझे अब
बँध गया अपनी विजय में?
कौन तुम मेरे हृदय में? (2)
एक करुण अभाव में चिर –
तृप्ति का संसार संचित ;
एक लघु क्षण दे रहा
निर्वाण के वरदान शत-शत ;
पा लिया मैंने किसे इस
वेदना के मधुर क्रय में
कौन तुम मेरे हृदय में? (3)
गूँजता उर में न जाने
दूर के संगीत-सा क्या?
आज खो निज को मुझे
खोया मिला, विपरीत-सा क्या?
क्या नहा आई विरह-निशि
मिलन-मधु-दिन के उदय में?
कौन तुम मेरे हृदय में? (4)
तिमिर-पारावार में
आलोक-प्रतिमा है अकम्पित ;
आज ज्वाला से बरसता
क्यों मधुर घनसार सुरभित? (5)