वे मुस्काते फूल नहीं –
जिनको आता है मुरझाना,
वे तारों के दीप नहीं –
जिनको भाता है बुझ जाना ; (1)
वे नीलम के मेघ नहीं –
जिनको है घुल जाने की चाह,
वह अनंत ऋतुराज, नहीं-
जिसने देखी जीने की राह | (2)
वे सूने से नयन, नहीं-
जिनमें बनाते आँसू-मोती,
वह प्राणों की सेज नहीं –
जिसमें बेसुध पीड़ा सोती ; (3)
ऐसा तेरा लोक, वेदना –
नहीं, नहीं जिसमें अवसाद,
जलना जाना नहीं, नहीं-
जिसने जाना मिटने का स्वाद | (4)
क्यों अमरों का लोक मिलेगा
तेरी करुणा का उपहार
रहने दो हे देव ! अरे
यह मेरा मिटने का अधिकार ! (5)
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