तुम, जो आज से पूरे सौ वर्ष बाद
मेरी कविताएं पढ़ोगे
तुम, मेरी धरती की नयी पौध के फूल
तुम, जिनके लिए मेरा तन-मन खाद बनेगा
तुम, जब मेरी इन रचनाओं को पढ़ोगे
तो तुम्हें कैसा लगेगा :
इस का मेरे मन में बड़ा कौतूहल है | (1)
बचपन में तुम्हें हिटलर और गांधी की कहानियां सुनाई जाएंगी
उस एक व्यक्ति की
जिस ने अपने देशवासियों को मोह की नींद सुला कर
सारे संसार में आग लगा दी,
और जब लपटें उसके पास पहुंची
तो जिस ने डर कर आत्महत्या कर ली
ताकि उन का मोह न टूटे ;
और फिर उस व्यक्ति की
जिस ने अपने देशवासियों को सोते से जगा कर
सारे संसार को शांति का रास्ता बताया
और जब संसार उसके चरणों पर झुक रहा था
तब जिस के देशवासी ने ही उसके प्राण ले लिये
कि कहीं सत्य की प्रतिष्ठा न हो जाये | (2)
तुम्हें स्कूलों में पढ़ाया जायेगा
कि सौ वर्ष पहले
इनसानी ताकतों के दो बड़े राज्य थे
जो दोनों शांति चाहते थे
और इसीलिए दोनों दिन-रात युद्ध की तैयारी में लगे रहते थे,
जो दोनों संसार को सुखी देखना चाहते थे
इसीलिए सारे संसार पर कब्जा करने की सोचते थे | (3)
और यह भी पढ़ाया जायेगा
कि एक और राज्य था
जो संसार-भर में शांति का मंत्र फूँकता रहा
पर जिसे अपने ही घर में
भाई-भाई के बीच दीवार खड़ी करनी पड़ी
जो हर पराधीन देश की मुक्ति में लगा रहता था
पर जिसके अपने ही अंग पराये बंधन में जकड़े रहे | (4)
तुम्हें विश्वविद्यालयों में बताया जायेगा
कि इनसान का डर दूर करने के लिए
सौ वर्ष पहले वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसे आविष्कार किये
जिन से इनसान का डर, और भी बढ़ गया ;
और यह यह भी
कि उस ने चाँद-सितारों में भी पहुंचने के सपने देखे
जब कि उसके सारे सपने चकनाचूर हो गए थे |
और तभी किसी दिन
किसी प्राचीन काव्य-संग्रह में
तुम मेरी कविताएं पढोगे ;
और उन्हें पढ़ कर तुम्हें कैसा लगेगा
यह जानने का मेरे मन में बड़ा कौतुहल है | (5)
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