आदिकाल / वीरगाथा काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ ( Aadikal / Veergathakal Ki Pramukh Visheshtaen )

हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है – आदिकाल, मध्यकाल और आधुनिक काल | सम्वत 1050 से सम्वत 1375 तक का साहित्य आदिकाल के नाम से जाना जाता है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इस काल को वीरगाथा काल की संज्ञा दी है | परंतु परंतु इस काल में मिली अधिकांश वीरगाथात्मक रचनाओं की प्रामाणिकता को लेकर संदेह है | अत: आज अधिकांश विद्वान इस काल को आदिकाल के नाम से जानते हैं |

आदिकाल या वीरगाथा काल की मुख्य विशेषताएँ

आदिकाल के साहित्य की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं :-

1️⃣ संदिग्ध रचनाएँ – इस काल की अधिकांश वीरगाथात्मक रचनाएं इतिहास की दृष्टि से संदिग्ध है | पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, खुमान रासो, परमाल रासो आदि ग्रंथ इतिहास की दृष्टि से संदिग्ध हैं | इनमें से कोई रचना घटनाओं की दृष्टि से, कोई समय की दृष्टि से, कोई पात्रों की दृष्टि से संदिग्ध है | उदाहरण के लिए बीसलदेव रासो का कवि अपने को बीसलदेव का समकालीन मानता है परंतु इस काव्य में उन घटनाओं को भी शामिल किया गया है जो बीसलदेव के बहुत बाद घटित हुई हैं |

2️⃣ ऐतिहासिकता का अभाव – इस काल की वीरगाथात्मक रचनाएं कहने को ऐतिहासिक हैं परंतु उनमें ऐतिहासिकता का अभाव है | इन कवियों ने अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है जिससे इन काव्यों में वर्णित घटनाएं अविश्वसनीय बन गई हैं | इन कवियों ने अपने आश्रयदाताओं से संबंधित जो तिथियां दी हैं वह इतिहास से मेल नहीं खाती |

3️⃣ आश्रयदाताओं का यशोगान – इस काल के अधिकांश कवि दरबारी कवि थे | अतः इन कवियों ने अपने आश्रयदाता राजाओं और सामंतों को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रशस्ति में काव्य लिखा | इन्होंने अपने आश्रयदाताओं का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है तथा उन्हें अपने काव्य में नायक के रूप में प्रस्तुत करके उन्हें युद्धवीर, कर्मवीर, धर्मवीर, दानवीर व कुशल प्रशासक बताया है |

4️⃣ संकुचित राष्ट्रीयता – जिस समय आदिकालीन साहित्य रचा गया उस समय देश छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था | उस समय सौ-पचास गांवों को ही अपना राष्ट्र समझा जाता था और ‘राष्ट्र’ शब्द आज की तरह व्यापक अर्थ में नहीं आया था | उस युग में ऐसे कवि भी हुए जिन्होंने देशद्रोही जयचंद की प्रशंसा में काव्य लिखे |

5️⃣ युद्धों का सजीव वर्णन – इस काल के कवियों ने युद्धों का सजीव वर्णन किया है | इसका कारण यह है कि इस युग के कवि कलम और तलवार दोनों के धनी थे | वे आवश्यकता पड़ने पर स्वयं युद्ध भूमि में लड़ते भी थे | इनके युद्ध-वर्णन में वीर तथा श्रृंगार रस का सुंदर सामंजस्य दिखाई देता है |

6️⃣ वस्तु-वर्णन पद्धति – आदिकालीन कवियों ने वस्तु-वर्णन पद्धति का सहारा लिया है | उन्होंने विभिन्न वस्तुओं, दृश्यों का सुन्दर वर्णन किया है | प्रायः सभी कवियों ने अपने काव्य में नगर, वन, पर्वत, वाटिका, आखेट, रण-सज्जा, विवाह, नख-शिख वर्णन आदि सभी का सुंदर वर्णन किया है |

7️⃣ प्रकृति-वर्णन – आदिकालीन साहित्य में प्रकृति वर्णन आलम्बनगत और उद्दीपनगत दोनों रूपों में मिलता है | आलम्बनगत रूप में नगर, नदी, वन, पर्वत आदि के सुंदर चित्र प्रस्तुत किए गए हैं | जहाँ प्रकृति वर्णन में केवल नाम परिगणन शैली का प्रयोग किया गया है वहाँ काव्य नीरस बन गया है | इस काल में उद्दीपनगत प्रकृति-वर्णन अधिक प्रभावशाली नहीं बन पाया |

8️⃣ जन-जीवन से अछूता काव्य – आदिकाल के अधिकांश कवि दरबारी कवि थे | इनके काव्य का मूल आधार था – जिसका खाना उसी का गाना | इसलिए इस काल के कवियों ने केवल अपने आश्चर्यदाताओं की प्रशस्ति के गीत लिखे | इस प्रकार इस काल का समूचा काव्य जन जीवन से अछूता था |

9️⃣ धार्मिक व लौकिक काव्य – वीरगाथात्मक साहित्य के अतिरिक्त इस काल में धार्मिक साहित्य व लौकिक साहित्य भी रचा गया | इस काल में सिद्धों, नाथों तथा जैन कवियों ने धार्मिक साहित्य की रचना की | सिद्ध कवियों में सरहपा, कण्हपा, शबरपा आदि प्रमुख हैं | गुरु गोरखनाथ नाथ सम्प्रदाय के प्रमुख कवि हैं | जैन कवियों में स्वयंभू और पुष्पदंत प्रमुख हैं | विद्यापति की पदावली लौकिक साहित्य के अंतर्गत आती है |

◼️ 10. कला पक्ष – आदिकाल का साहित्य डिंगल और पिंगल दो भाषाओं में मिलता है | इस काल के कवियों की भाषा में तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्द मिलते हैं |

इस काल के साहित्य में दोहा, छप्पय, कवित्त, रोला, कुंडलियां आदि छंदों का सफल प्रयोग हुआ है | अलंकारों के दृष्टिकोण से शब्दालंकार और अर्थालंकार दोनों प्रकार के अलंकार इनके साहित्य में मिलते हैं | इस काल में प्रबंध काव्य तथा मुक्तक काव्य दोनों प्रकार का काव्य रचा गया |

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