आदिकाल का नामकरण और सीमा-निर्धारण विद्वानों के बीच विवाद का विषय है | हिंदी साहित्य के इतिहास पर विमर्श करने वाले विद्वानों एवं लेखकों ने इस संबंध में अपने-अपने विचार प्रस्तुत किए हैं | मिश्र बंधुओं, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, महावीर प्रसाद द्विवेदी आदि विद्वानों ने इस विषय में अपने अलग-अलग विचार प्रस्तुत करते हैं |
सामान्यत: किसी काल का नामकरण दो आधारों पर किया जाता है :- (1) प्रमुख साहित्यिक प्रवृत्ति के आधार पर ; जैसे रीतिकाल तथा (2) किसी विशिष्ट व्यक्ति के कृतित्व के आधार पर ;जैसे द्विवेदी युग |
जहां तक हिंदी साहित्य के प्रथम कालखंड के नामकरण का प्रश्न है, उसे प्रारंभिक काल, आदिकाल, वीरगाथा काल, सिद्ध-सामंत युग, चारणकाल, बीजवपन काल आदि नामों से जाना जाता है |
आदिकाल के नामकरण की समस्या को हल करने के लिए हम इन सभी नामों पर विचार करेंगे :-
(1) प्रारंभिक काल ( मिश्र बंधु ) — सर्वप्रथम मिश्र बंधुओं ने अपनी पुस्तक ‘मिश्र बंधु विनोद’ में हिंदी साहित्य के प्रथम कालखंड को ‘प्रारंभिक काल’ ( Prarambhik Kal ) नाम दिया | उन्होंने इस काल को ‘प्रारंभिक काल’ नाम देते हुए इस काल से हिंदी साहित्य का प्रारम्भ माना | लेकिन अनेक आलोचकों ने यह कहकर कि हिंदी साहित्य का प्रारंभ बहुत पहले से शुरु हो चुका था, इस नामकरण को नकार दिया | हालांकि बाद में कुछ परिवर्तनों के पश्चात यही नाम ‘आदिकाल’ के रूप में स्वीकार कर लिया गया |
(2) वीरगाथा काल ( आचार्य रामचंद्र शुक्ल ) — आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ नामक पुस्तक लिखी जो 1929 में प्रकाशित हुई | उन्होंने हिंदी साहित्य-इतिहास के प्रथम कालखंड को ‘वीरगाथा काल’ ( Virgatha Kal ) नाम दिया | उन्होंने अपने इतिहास ग्रंथ में 12 पुस्तकों का चयन किया जिनमें पृथ्वीराज रासो, बीसलदेव रासो, परमाल रासो, विजयपाल रासो, हम्मीर रासो, कीर्तिलता, कीर्ति पताका, विद्यापति की पदावली, अमीर खुसरो की पहेलियां आदि प्रमुख थी | उन्होंने इन ग्रंथों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रवृत्ति वीरता को पाया और इसी आधार पर उन्होंने इस काल का नाम ‘वीरगाथा काल’ रखा |
परंतु उनकी यह धारणा पूरी तरह से उचित नहीं है क्योंकि नवीन शोधों के आधार पर उनके द्वारा बताए गए 12 ग्रंथों में से कुछ ग्रंथ अप्रामाणिक हैं और कुछ ग्रंथ आज तक उपलब्ध नहीं हैं | अमीर खुसरो की पहेलियों और विद्यापति की पदावली में वीरता की प्रवृत्ति नहीं है |
अत: इस काल को ‘वीरगाथा काल’ नाम दिया जाना उचित नहीं है |
(3) चारण काल व सन्धिकाल ( डॉ रामकुमार वर्मा ) — सर्वप्रथम डॉक्टर जॉर्ज ग्रियर्सन ने इस काल को ‘चारण काल ( Charan Kal )’ का नाम दिया | बाद में डॉ रामकुमार वर्मा ने उनके द्वारा दिए गए इस नाम का समर्थन किया | डॉ रामकुमार वर्मा ने हिंदी साहित्य के आरंभिक काल को सम्वत 750 से सम्वत 1375 मानते हुए इसे दो भागों में बांटा है – संधिकाल ( Sandhikal ) और चारण काल | संवत 750 से संवत 1000 तक के काल को उन्होंने संधिकाल कहा है | इसमें उन्होंने सिद्धों, नाथों और जैनियों के साहित्य को रखा है | संवत 1000 से संवत 1375 तक की रचनाओं को उन्होंने ‘चारणकाल’ में शामिल किया है |
डॉ रामकुमार वर्मा के शब्दों में यह काल दो युग-धर्मों और दो भाषाओं का ‘संधिकाल’ है | इस तर्क के आधार पर इस नाम को स्वीकार किया जा सकता है परंतु चारण काल दोषपूर्ण प्रतीत होता है | इस के दो मुख्य कारण हैं | एक, यह नाम सही सिद्ध करने के लिए जिन ग्रंथों को गिनवाया गया वह अधिकांश अप्रमाणिक हैं | दूसरे, ‘चारण काल’ नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि इस काल में केवल दरबारी कवियों की रचनाएं ही थी | परंतु यह सर्वविदित है कि इसमें अनेक स्वतन्त्र कवि भी हुए |
(4) सिद्ध-सामंत युग ( राहुल सांकृत्यायन ) — महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने इस काल को ‘सिद्ध-सामंत युग’ ( Siddh-Samant Yug ) कहा है | यह नाम केवल सिद्धों और सामंतों की ओर संकेत करता है | इसमें सिद्ध साहित्य को शामिल किया जा सकता है | इस नाम को स्वीकार कर लेने पर इस काल में रचित अन्य साहित्य तथा अन्य साहित्यिक प्रवृत्तियाँ अनदेखी रह जाती हैं | विद्यापति की पदावली, अमीर खुसरो का साहित्य, पउम चरिउ तथा नाथ साहित्य को अनदेखा करना उचित नहीं है | अत: यह नाम भी दोषपूर्ण है |
(5) बीजवपन काल ( आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ) — आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने इस काल को ‘बीजवपन काल’ कहा है | बीजवपन का अर्थ बीज का बोना है | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुसार हिंदी साहित्य का बीज इस काल में बोया गया | अधिकांश विद्वान इस नाम को भी तर्कसंगत नहीं मानते क्योंकि इस काल में अपने पूर्ववर्ती साहित्य की अनेक काव्य रूढ़ियां और परंपराएं मिलती हैं | दूसरे, इस काल में कुछ नई साहित्यिक प्रवृत्तियों का प्रचलन भी हुआ जो अपने चरम पर पहुंची | तीसरे, इस काल के साहित्यकारों ने उत्कृष्ट साहित्य रचा जिसके आधार पर इस काल को ‘बीजवपन काल’ ( Bijavpan Kal ) कहना न्याय-संगत नहीं होगा |
(6) आदिकाल ( आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ) — आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी साहित्य-इतिहास के इस कालखंड को आदिकाल ( Aadikal ) का नाम दिया है | उन्होंने यह नाम इस काल के नामकरण से संबंधित सभी मतों का सूक्ष्म विवेचन करने के पश्चात दिया है | उनके शब्दों में इस काल में कोई ऐसी विशिष्ट प्रवृत्ति नहीं हुई जिसके आधार पर इसका नाम रखा जा सके | इसीलिए उन्होंने इस काल को आदिकाल नाम दिया |
डॉ नगेंद्र भी इस नाम का समर्थन करते हैं | वे कहते हैं – “वास्तव में आदिकाल ही ऐसा नाम है जिसे किसी न किसी रूप में सभी साहित्यकारों ने स्वीकार किया है |”
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि हिंदी साहित्य इतिहास के प्रथम कालखंड के ‘आदिकाल’ नाम को अधिकांश विद्वानों ने स्वीकार किया है | वस्तुतः भाषा, भाव तथा रचना-शैली की दृष्टि से इसे आदिकाल कहना ही अधिक उचित प्रतीत होता है |
आदिकाल की समय-सीमा
आदिकाल के नामकरण की भांति इसकी समय-सीमा भी विवादास्पद है | आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आदिकाल की समय-सीमा सम्वत 1050 से सम्वत 1375 मानी है |
महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने आदिकाल को सिद्ध सामंत युग कहा है | वे अपभ्रंश को पुरानी हिंदी का नाम देकर इसकी समय-सीमा आठवीं सदी से तेरहवीं सदी तक मानते हैं | परंतु उनका यह काल-निर्धारण इसलिए दोषपूर्ण है क्योंकि आठवीं सदी से पहले भी अपभ्रंश भाषा में काव्य रचा गया और सोलवीं सदी तक यह प्रक्रिया चलती रही |
इतना स्पष्ट है कि आठवीं सदी से ही बोलचाल की भाषा अपभ्रंश से अलग होकर साहित्य रचना का माध्यम बन गई थी | इस साहित्यिक भाषा को कुछ विद्वानों ने उत्तर अपभ्रंश, कुछ ने पुरानी हिंदी या अवहट्ठ कहा है परंतु वास्तविकता यह है कि वह हिंदी ही है | अत: आदिकाल की पूर्व सीमा आठवीं सदी मानी जा सकती है |
आदिकाल की अंतिम सीमा जॉर्ज ग्रियर्सन ने 1400 ईस्वी, मिश्र बंधुओं ने 1389 ईo और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 1318 ईo ( सम्वत 1375 ) मानी है | डॉ रामकुमार वर्मा तथा अन्य अनेक विद्वान आदिकाल की अंतिम सीमा के संबंध में आचार्य शुक्ल जी के मत से सहमत हैं |
उपर्युक्त विवेचन के आलोक में आदिकाल की समय-सीमा आठवीं सदी से लेकर 14 सदी तक मानी जा सकती है |
यह भी देखें
आदिकाल / वीरगाथा काल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ ( Aadikal / Veergathakal Ki Pramukh Visheshtaen )
आदिकाल : प्रमुख कवि, रचनाएं व नामकरण ( Aadikal ke Pramukh Kavi, Rachnayen Evam Naamkaran )
आदिकाल की परिस्थितियां ( Aadikal Ki Paristhitiyan )
रीतिकाल : समय-सीमा व नामकरण ( Reetikal: Samay Seema v Naamkaran )
रीतिकाल : परंपरा एवं प्रवृत्तियां ( Reetikal : Parampara Evam Pravritiyan )
रीतिबद्ध काव्य-परंपरा व प्रवृत्तियां ( Reetibaddh Kavya Parampara v Pravritiyan )
रीतिसिद्ध काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां ( Reetisiddh kavya: Parampara Evam Pravritiya )
रीतिमुक्त काव्य : परंपरा व प्रवृत्तियां ( Reetimukt Kavya: Parampara Evam Pravrittiya )
हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग : भक्तिकाल ( Hindi Sahitya Ka Swarn Yug :Bhaktikal )
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