सूरदास का वात्सल्य वर्णन ( Surdas Ka Vatsalya Varnan)

सूरदास भक्तिकालीन सगुण काव्यधारा की कृष्ण काव्यधारा के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं | उनका श्रृंगार वर्णन एवं वात्सल्य वर्णन संपूर्ण हिंदी साहित्य में अनूठा है | सूरदास जी से पहले हिंदी साहित्य में किसी कवि ने वात्सल्य वर्णन करने का कार्य नहीं किया | सूरदास जी पहले कवि हैं जिन्होंने वात्सल्य वर्णन किया और इतने प्रभावशाली ढंग से किया के हिंदी साहित्य में उन्हें ‘वात्सल्य सम्राट’ के नाम से जाना जाता है |

सूरदास जी ने बाल्यावस्था की संपूर्ण झांकी अपने काव्य में प्रस्तुत कर दी है | उन्होंने नेत्रहीन होकर भी जिस प्रकार बाल सुलभ क्रियाओं का वर्णन किया है वह किसी चमत्कार से कम नहीं |

सूरदास जी के काव्य में बाल लीला से संबंधित पदों की संख्या लगभग एक हजार है | श्री कृष्ण के जन्म से ही उनकी बाल लीलाओं का वर्णन आरम्भ हो जाता है | सूरदास जी के वात्सल्य वर्णन की प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं : –

1️⃣ जन्मोत्सव का वर्णन – सूरदास जी ने श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है | वे कहते हैं कि श्री कृष्ण के जन्म के कारण संसार में शोभा का अंत नहीं रहा और यह शोभा नंद के भवन में पूर्ण रूप से उमड़ रही थी तथा ब्रज की गलियों में भी बह रही थी |

सोभा सिंधु न अंत लहि री |

देखी आई आज गोकुल मैं, घर-घर बेचत फिरति दही री |

2️⃣ यशोदा मैया की क्रियाएँ – सूरदास जी ने यशोदा मैया की बाल कृष्ण के साथ की गई क्रियाओं का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है | जैसे कृष्ण की अंगुली पकड़कर आंगन में चलना, उसको देखकर तालियां बजाना, बालकृष्ण को पालने में झुलाना, लोरी सुनाना, विभिन्न प्रकार की चेष्टाएँ करके उसे प्रसन्न करने की कोशिश करना |

एक उदाहरण देखिए –

“जसोदा हरि पालने झुलावै

हलरावै, दुलरावै, मल्हावै, जोइ सोइ कछु गावै |”

इस प्रकार की क्रियाओं को करते हुए माता यशोदा को अपार सुख मिलता है जिसे पढ़कर पाठक जी अभिभूत हो जाते हैं |

3️⃣ बाल छवि का वर्णन – सूरदास जी ने बालक कृष्ण की बाल छवि का बहुत ही सुंदर वर्णन किया है | कभी वे बालक के रूप सौंदर्य का वर्णन करते हैं, कभी बाल कृष्ण को सोते हुए दिखाते हैं, कभी उन्हें घुटनों के बल चलते हुए दिखाते हैं, कभी अपने एक अंगूठे को पकड़कर अपने मुख में डालते हुए दिखाते हैं तो कभी अपने हाथ में मक्खन लिए बाल कृष्ण की छवि प्रस्तुत करते हैं | श्री कृष्ण की बाल छवि के आगे वे करोड़ों कामदेवों को भी निछावर कर देते हैं |

4️⃣ बाल क्रीड़ाओं का वर्णन – सूरदास जी ने कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं का भी बड़ा सुंदर वर्णन किया है | श्री कृष्ण अपनी बाल क्रीड़ाओं से माता यशोदा तथा गोकुलवासियों को प्रसन्न करते हैं | श्री कृष्ण का खेलना-कूदना, अपने माता-पिता को तंग करना, गोपियों को तंग करना, माखन चुराना, ग्वालों संग खेलना आदि का अत्यंत सुंदर वर्णन किया गया है |

5️⃣ बाल स्वभाव एवं बाल हठ का वर्णन – सूरदास जी ने अपने काव्य में श्री कृष्ण के बाल स्वभाव एवं बाल हठ का सुंदर चित्रण किया है | उनका यह वर्णन बाल मनोविज्ञान के अनुकूल है | कभी कृष्ण चंद्रमा को खिलौने के रूप में मांगने की जिद करते हैं, कभी गाय चराने की | कृष्ण माता यशोदा से छोटी-छोटी बातों की शिकायतें करते हैं | बाल स्वभाव के अनुरूप वे अपनी माता से ऐसे प्रश्न पूछते रहते हैं जिनका जवाब देते नहीं बनता | कृष्ण अपनी माता यशोदा से पूछते हैं कि मेरी चोटी कब बढ़ेगी |

6️⃣ बाल लीला का वियोग पक्ष – सूरदास जी ने वियोग वात्सल्य का अति सुंदर चित्रण किया है जब श्री कृष्ण मथुरा जाने को तत्पर होते हैं तो यशोदा का स्नेह भरा मन तड़प उठता है | वह नहीं चाहती कि कृष्ण उनकी आंखों से पल भर के लिए भी ओझल हो | जब श्री कृष्ण मथुरा चले जाते हैं तो उनकी वापसी के इंतजार में माता यशोदा का मन अशांत हो जाता है | उन्हें ऐसा लगता है कि मथुरा में कृष्ण का पालन-पोषण सही प्रकार से नहीं हो रहा | वे हमेशा उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहती हैं |

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि सूरदास का वात्सल्य वर्णन अद्वितीय है | इस विषय में लाला भगवानदीन जी लिखते हैं –

“सूरदास जी ने बाल चित्रण में कमाल कर दिया है | यहाँ तक कि हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि गोस्वामी तुलसीदास जी भी इस विषय में इनकी समता नहीं कर सकते हैं |”

सूरदास जी को बाल मनोविज्ञान का सम्यक ज्ञान था | उन्होंने बाल कृष्ण के रूप-सौंदर्य, स्वभाव, क्रियाओं आदि का सहज वर्णन किया है | उनके बाल वर्णन को देखकर कुछ विद्वान यहाँ तक कहते हैं – “सूर ही वात्सल्य है और वात्सल्य ही सूर है |”

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