आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

( यहाँ NCERT की कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्मपरिचय’ की व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं )

आत्मपरिचय

मैं जग जीवन का भार लिए फिरता हूँ ;

फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ ;

कर दिया किसी ने झंकृत जिन को छूकर

मैं सांसों के दो तार लिए फिरता हूँ | (1)

व्याख्या – कविवर हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं की सभी सामान्य लोगों की भांति वह भी अपने जीवन में विभिन्न सांसारिक दायित्वों का भार लिये हुए हैं लेकिन इसके बावजूद वह अपने जीवन से प्यार करते हैं | कवि कहता है कि आज भी मेरे प्रियतम की स्मृतियां मेरी सांसों के दोतारे को झंकृत कर जाती हैं और मधुर संगीत प्रस्फुटित करती रहती हैं |

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,

मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,

जग पूछ रहा उनको जो जग की गाते,

मैं अपने मन का गान किया करता हूँ | (2)

व्याख्या – कविवर हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि वह प्रेम रूपी मदिरा का पान करता है और कभी भी इस संसार की परवाह नहीं करता | कहने का भाव यह है कि कवि प्रेम की मस्ती में मग्न रहता है और कभी भी इस संसार की व्यर्थ परंपराओं और रीति-रिवाजों की परवाह नहीं करता | कवि के अनुसार यह संसार उन लोगों का गुणगान करता है जो इस संसार का गुणगान करते हैं लेकिन कवि अपने मन के अनुसार जीवन-यापन करता है |

मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ,

मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ ;

है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता

मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ | (3)

व्याख्या – कवि कहता है कि मैं अपने हृदय की अनुभूतियों को अपनी कविता के माध्यम से व्यक्त करता हूँ | कविता के माध्यम से अभिव्यक्त की गई मेरी अनुभूतियां ही मेरी तरफ से इस संसार को दिया गया उपहार हैं | यह संसार मुझे अपूर्ण प्रतीत होता है | अतः मैं सपनों के संसार में विचरण करता हूँ |

मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,

सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ ;

जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,

मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ | (4)

व्याख्या – कवि हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि मैं अपने हृदय में विरह की अग्नि जलाए रखता हूँ | अर्थात अपने प्रिय की विरह वेदना में जलता रहता हूँ | लेकिन फिर भी मैं सुख और दुख दोनों ही स्थितियों में मग्न रहता हूँ | इस संसार में लोग भवसागर को पार करने के लिए नाव बनाने की चेष्टा करते हैं अर्थात इस भवसागर से पार हो जाना चाहते हैं लेकिन मैं इस भवसागर की लहरों पर मस्ती से बहता रहता हूँ | अर्थात यह संसार कवि को प्रिय है और वह आवागमन के चक्कर से मुक्ति प्राप्त नहीं करना चाहता, वह इस संसार में रहकर प्रत्येक क्षण को संपूर्णता से जीना चाहता है |

मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,

उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,

जो मुझको बाहर हंसा, रुलाती भीतर,

मैं, हाय, किसी की याद लिए करता हूँ | (5)

व्याख्या – हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि मैं युवावस्था की मस्ती से ओतप्रोत रहता हूँ लेकिन साथ ही मेरी इस मस्ती में एक निराशा भी छिपी है | अपनी निराशा के कारणों को स्पष्ट करते हुए कवि कहता है कि यद्यपि वह बाहर से हंसता रहता है लेकिन भीतर ही भीतर वह रोता रहता है क्योंकि उसे अपने प्रिय की यादें विदग्ध करती रहती हैं |

कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?

नादान वहीं है, हाय, जहां पर दाना |

फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे?

मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना | (6)

व्याख्या – कविवर बच्चन जी कहते हैं कि इस संसार में अनेक विद्वान पुरुष हुए हैं, अनेक संत-महात्मा हुए हैं जिन्होंने सत्य को जानने की चेष्टा की लेकिन कोई भी आज तक सत्य को नहीं जान पाया | नादान मनुष्य आज भी भौतिक सुख-साधनों के पीछे भागते रहते हैं | इसलिए कवि कहता है कि क्या फिर यह संसार मूर्ख नहीं है जो अभी भी सीखने की कोशिश करता है | इसलिए कवि अपने सीखे हुए ज्ञान को भी भुलाना चाहता है | कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि जैसे-जैसे हम सीखते चले जाते हैं वैसे-वैसे हम और अधिक दुखी होते चले जाते हैं क्योंकि सांसारिक ज्ञान हमें ईर्ष्या, द्वेष, अहंकार और धार्मिक संकीर्णता सिखाता है |

मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,

मैं बना-बना कितने जग रोज मिटाता ;

जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,

मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता | (7)

व्याख्या – कविवर बच्चन जी कहते हैं कि मैं अपनी विचारधारा से कुछ और हूँ जबकि इस संसार की विचारधारा कुछ और है | इस प्रकार हम दोनों में किसी प्रकार का कोई संबंध स्थापित कैसे हो सकता है | अर्थात कवि की विचारधारा संसार की विचारधारा से सर्वथा भिन्न है | कवि कहता है कि इस संसार में रहते हुए लोग वैभव के साधनों का संचय करते हैं लेकिन मैं ऐसे सांसारिक सुख-साधनों से युक्त पृथ्वी को ठुकराता हूँ |

मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,

शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,

हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,

मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ | (8)

व्याख्या – बच्चन जी कहते हैं कि मेरे रुदन में भी एक विशेष प्रकार का संगीत है और मेरी शीतल वाणी में क्रांति की अग्नि है अर्थात कवि की विरह वेदना की शाब्दिक अभिव्यक्ति सुंदर गीतों का रूप धारण कर लेती है यद्यपि कवि मधुर व कमलकांत शब्दावली में श्रृंगारपरक कविताएं लिखता है परंतु उसकी कविताओं में सामाजिक रूढ़ियों और शोषणकारी व्यवस्था के प्रति क्रांति का स्वर भी स्पष्ट रूप से दिखाई देता है |

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,

मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना ;

क्यों कवि कह कर संसार मुझे अपनाए,

मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना | (9)

व्याख्या – कविवर बच्चन जी कहते हैं कि जब मैं अपनी दुःखात्मक अनुभूतियों को शाब्दिक अभिव्यक्ति देता हूं तो संसार कहता है कि मैंने गीत रच दिया है और जब मेरी भावनाओं का अतिरेक होता है तो वे स्वत: ही छंद के रूप में फूट पड़ती हैं | कहने का भाव यह है कि कविता एक स्वत:स्फूर्त प्रक्रिया है जो भावनाओं के अतिरेक का परिणाम है | इसीलिए बच्चन जी कहते हैं कि ये दुनिया मुझे कवि कहकर क्यों बुलाती है | वास्तविकता यह है कि मैं इस दुनिया का एक नया दीवाना हूँ | अर्थात दीवानापन लिए हुए व्यक्ति ही अपने मन की झोंक में बहकर सुंदर कविताओं व गीतों की रचना करते है |

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,

मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ ;

जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,

मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ | (10)

व्याख्या – हरिवंश राय बच्चन जी कहते हैं कि मैं दीवानों का वेश लिए पूर्णत: मस्ती में विचरण करता हूँ | मैं प्राय: अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से इस संसार को मस्ती का ऐसा संदेश देता हूँ जिसे सुनकर यह संसार झूमने और लहराने लगता है | कहने का भाव यह है कि कवि दीवानों के समान जीवन जीता है | वह पहनावे की परवाह नहीं करता और संसार को प्रसन्न करने के लिये सदैव मस्ती के गीत गाता है |

अभ्यास के प्रश्न ( आत्म परिचय : हरिवंश राय बच्चन )

(1) कविता एक ओर जगजीवन का भार लिए घूमने की बात करती है और दूसरी ओर मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ — विपरीत से लगते इन कथनों का क्या आशय है?

उत्तर — कवि हरिवंश राय बच्चन जी प्रस्तुत कविता में एक स्थान पर कहते हैं कि मैं जग-जीवन का भार लिए घूमता हूँ जिसका आशय यह है कि अन्य सामान्य लोगों की भांति उसके जीवन में भी अनेक सांसारिक समस्याएं हैं, अनेक पारिवारिक व सामाजिक उत्तरदायित्व हैं जिनका निर्वहन उसे करना है | लेकिन इसी कविता में कवि एक अन्य स्थान पर रहता है कि मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ जिसका आशय यह है कि वह इस संसार की रूढ़ियों, व्यर्थ रीति-रिवाजों व परंपराओं की परवाह नहीं करता, वह उसी ढंग से जीवन जीता है जो उसके मन को भाता है |

(2) जहां पर दाना रहते हैं वही नादान भी होते हैं — कवि ने ऐसा क्यों कहा होगा?

उत्तर — दाना से अभिप्राय है — भौतिक सुख-सुविधाएँ | कवि के कहने का अभिप्राय है कि अधिकांश मनुष्य नादान हैं | वह उसी ओर जाते हैं जहां उन्हें भौतिक सुख-सुविधाएं मिलती हैं | कवि ने भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागने वाले व्यक्तियों को नादान इसलिए कहा है क्योंकि कवि की दृष्टि में भौतिक सुख-सुविधाएं वास्तविक सुख का आधार नहीं हैं | भौतिक सुख-सुविधाओं के पीछे भागना मनुष्य की बुद्धिमता नहीं बल्कि उसकी नादानी व मूर्खता है |

(3) मैं और, और जग और कहाँ का नाता — पंक्ति में ‘और’ शब्द की विशेषता बताइए |

उत्तर — प्रस्तुत पंक्ति में ‘और’ शब्द तीन बार प्रयोग हुआ है और तीनों बार उसका अर्थ भिन्न है | अतः यहां पर यमक अलंकार है | प्रथम ‘और’ कवि की विचारधारा की ओर, अंतिम ‘और’ संसार की विचारधारा की ओर संकेत करता है जबकि द्वितीय ‘और’ का अर्थ है – तथा | इस प्रकार ‘और’ शब्द की आवृत्ति ने कविता को भाव पक्ष और कला पक्ष के दृष्टिकोण से सुन्दर व प्रभावशाली बनाया है |

(4) ‘शीतल वाणी में आग’ के होने का क्या अभिप्राय है?

उत्तर — शीतल वाणी में आग के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि यद्यपि वह अपनी कविताओं में मधुर व कोमलकांत शब्दावली का प्रयोग करता है परंतु उसकी कविताओं में क्रोध व क्रांति की अग्नि छिपी है | वह अपनी मधुर कविताओं के माध्यम से इस संसार की रूढ़ियुक्त परंपराओं व शोषणयुक्त व्यवस्था को समाप्त कर देना चाहता है |

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