कविता के बहाने ( कुंवर नारायण )

( यहाँ NCERT हिंदी की 12वीं की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कुंवर नारायण द्वारा रचित कविता ‘कविता के बहाने’ की सप्रसंग व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं | )

कविता के बहाने ( कुंवर नारायण )

कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने

कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

कविता के पंख लगा उड़ने के माने

चिड़िया क्या जाने? (1)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियों हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित हैं | इसके रचयिता श्री कुंवर नारायण जी हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कविता की तुलना चिड़िया की उड़ान से करके कविता की उड़ान को चिड़िया की उड़ान से बेहतर सिद्ध किया है |

व्याख्या — इन पंक्तियों में कवि कुंवर नारायण जी कविता की तुलना चिड़िया की उड़ान से करते हुए कहते हैं कि जिस प्रकार एक चिड़िया इधर-उधर, एक घर से दूसरे घर में उड़ान भरती है ठीक उसी प्रकार कविता भी विभिन्न स्थानों, भावों व घटनाओं का वर्णन करती है | अंतर सिर्फ इतना है कि चिड़िया की उड़ान सीमित है जबकि कविता की उड़ान असीमित है |

कविता एक खिलना है फूलों के बहाने

कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!

बाहर भीतर

इस घर, उस घर

बिना मुरझाए महकने के माने

फूल क्या जाने ? (2)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियों हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित हैं | इसके रचयिता श्री कुंवर नारायण जी हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कविता की तुलना फूलों के खिलने से की है |

व्याख्या — इन पंक्तियों में कवि ने कविता की तुलना फूलों के खिलने से की है | कवि के अनुसार जिस प्रकार फूल खिल कर चारों तरफ रंग और खुशबू बिखेरते हैं ठीक उसी प्रकार से कविता भी सुंदर भावनाओं के रंग व खुशबू बिखेरती है | कवि के अनुसार फूल केवल कुछ दिनों के लिए खिलते हैं | कुछ समय पश्चात वे मुरझा जाते हैं और उनकी पंखुड़ियां बिखर जाती हैं | लेकिन कविता कभी नहीं मुरझाती, वह अनंत काल तक संसार में अपनी भावनाओं के रंग और खुशबू बिखेरती रहती है |

कविता एक खेल है बच्चों के बहाने

बाहर भीतर

यह घर, वह घर

सब घर एक कर देने के माने

बच्चा ही जाने | (3)

प्रसंग — प्रस्तुत पंक्तियों हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित कविता ‘कविता के बहाने’ से अवतरित हैं | इसके रचयिता श्री कुंवर नारायण जी हैं | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि ने कविता की तुलना बच्चों से की है |

व्याख्या – इन पंक्तियों में कवि ने कविता की तुलना बच्चों के खेल से की है | कवि के अनुसार जिस प्रकार छोटे बच्चे खेलते हुए अपने और पराए का भेद भूलकर किसी भी घर में प्रवेश कर जाते हैं, ठीक उसी प्रकार कविता भी अपने-पराए का भेदभाव नहीं करती | जिस प्रकार खेलते हुए बच्चे अपने आसपास के सभी घरों को अपना घर मानकर कभी एक घर में प्रवेश करते हैं, कभी दूसरे घर में प्रवेश करते हैं ठीक उसी प्रकार कविता भी इस संसार के सभी प्राणियों की भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान करती है | कवि के कहने का तात्पर्य यह है कि एक कवि निष्पक्ष भाव से अपनी कविता में संसार के सभी प्राणियों की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति करता है |

अभ्यास के प्रश्न ( कविता के बहाने : कुंवर नारायण )

(1) इस कविता के बहाने बताएं कि सब घर एक कर देने के माने क्या हैं?

उत्तर — सब घर एक कर देने से अभिप्राय है — आपसी वैरभाव तथा ऊंच-नीच के भेदभाव को समाप्त कर देना | इस कविता में कवि ने ‘कविता’ की तुलना बच्चों के खेल से की है | कवि ने कविता को बच्चों के समकक्ष बताया है | कवि के अनुसार जिस प्रकार बच्चे खेलते हुए अपने-पराए के भेदभाव को भूल जाते हैं और अन्य घरों को भी अपने घर जैसा मानते हैं | ठीक उसी प्रकार कविता भी हर प्रकार के भेदभाव को बुलाकर हर मनुष्य के मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करती है |

(2) ‘उड़ने’ और ‘खिलने’ का कविता से क्या संबंध बनता है?

उत्तर — कवि ने कविता की तुलना चिड़िया की उड़ान तथा फूलों के खिलने से की है | कवि के अनुसार जिस प्रकार एक चिड़िया एक स्थान से दूसरे स्थान पर उड़ान भरती है ठीक उसी प्रकार कविता भी उड़ान भरती है | लेकिन अंतर केवल इतना है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है जबकि कविता की उड़ान असीमित |

इसी प्रकार कवि ने कविता की तुलना फूलों के खिलने से की है | जिस प्रकार फूल खिल कर चारों तरफ रंग और खुशबू बिखेरते हैं ठीक उसी प्रकार से कविता भी सुंदर भावनाओं के रंग और खुशबू बिखेरती है | अंतर केवल इतना है कि फूल कुछ दिनों में मुरझा जाते हैं लेकिन कविता कभी नहीं मुरझाती, वह अनंत काल तक अपने रंग और खुशबू से लोगों को चकित करती रहती है |

(3) कविता और बच्चे को समानांतर रखने के क्या कारण हो सकते हैं?

उत्तर — कवि ने कविता और बच्चे को एक दूसरे के समान माना है | इसका कारण यह है कि जिस प्रकार बच्चे अपने-पराये का भेदभाव भूलकर सभी घरों को अपने घर के समान समझते हैं, ठीक उसी प्रकार से कविता भी इस संसार के सभी मनुष्यों के मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करती है | जिस प्रकार बच्चे किसी के प्रति द्वेष-भाव नहीं रखते, ठीक उसी प्रकार कवि भी संपूर्ण मानवता के कल्याण के लिए कविता की रचना करता है |

(4) कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ क्या होते हैं?

उत्तर — कवि ने कविता की तुलना फूलों के खिलने से की है | जिस प्रकार फूल खिल कर चारों तरफ रंग और खुशबू बिखेरती है ठीक उसी प्रकार से कविता भी चारों तरफ सुंदर भावनाओं के रंग और खुशबू बिखेर कर संसार को आनंदित करती है | कवि के अनुसार कविता बिना मुरझाए महकती है अर्थात वह अनंत काल तक सुंदर भावों की खुशबू से आने वाली पीढ़ियों को आनंदित करती रहती है | इस प्रकार कविता के संदर्भ में ‘बिना मुरझाए महकने’ का अर्थ है — कविता का आनंददायी प्रभाव चिरस्थाई होता है, वह कभी समाप्त नहीं होता |

(5) ‘कविता के बहाने’ ( Kavita Ke Bahane ) कविता का प्रतिपाद्य / उद्देश्य / संदेश या मूल भाव स्पष्ट कीजिए |

उत्तर — प्रस्तुत कविता में कवि ने कविता को चिड़िया की उड़ान तथा पुष्प के खिलने से बेहतर बताया है | चिड़िया से कविता की तुलना करते हुए एक कवि कहता है कि जिस प्रकार से चिड़िया एक स्थान से दूसरे स्थान पर उड़ान भरती है ठीक उसी प्रकार से कविता भी कभी एक स्थान का वर्णन करती है, कभी किसी दूसरे स्थान का ; कभी किसी एक मनुष्य के मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करती है तो कभी किसी दूसरे मनुष्य के मनोभावों को | अंतर केवल इतना है कि चिड़िया की उड़ान सीमित होती है जबकि कविता की उड़ान असीमित |

ठीक इसी प्रकार से कविता की तुलना पुष्प के महकने से करते हुए कवि कहता है कि पुष्प चंद पलों के लिए खिलता है, चारों तरफ अपने रंग और खुशबू बिखेरता है और तत्पश्चात मुरझा जाता है | लेकिन कविता कभी नहीं मुरझाती वह अनंत काल तक संसार को महकाती रहती है |

कविता बच्चों के खेल के समान होती है | जिस प्रकार बच्चे खेलते हुए अपने-पराए का भेदभाव भूल जाते हैं और सभी घरों को अपना मान कर उन में प्रवेश कर जाते हैं | ठीक उसी प्रकार से कविता भी किसी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं करती, वह इस संसार के सभी प्राणियों के मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करती है और सभी के प्रति निष्पक्ष भाव रखते हुए सबका कल्याण चाहती है |

यह भी देखें

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय

सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध

उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी

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