गज़ल ( फिराक गोरखपुरी )

( यहाँ कक्षा 12वीं की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘गज़ल ‘( फिराक गोरखपुरी ) की व्याख्या दी गई है |)

नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले हैं

या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं | (1)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने प्रकृति के सौंदर्य का एक आकर्षक चित्र प्रस्तुत किया है |

व्याख्या — कवि कहता है कि नवरस से भरी हुई कलियों की कोमल पंखुड़ियां अपनी गाँठें खोल रही हैं अर्थात कलियां खिल कर फूल के रूप में विकसित हो रही हैं | उनसे भीनी-भीनी सुगंध वातावरण में बिखर रही है | उनके रंगों की चटक भी वातावरण में व्याप्त है | ऐसा प्रतीत होता है मानव रंग और सुगंध दोनों आकाश में उड़ जाने के लिए अपने पंख फैला रहे हैं |

तारे आँखें झपकावें हैं ज़र्रा-ज़र्रा सोये हैं

तुम भी सुनो हो यारो ! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं | (2)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने प्रकृति के रात्रिकालीन सौंदर्य का एक आकर्षक चित्र प्रस्तुत किया है |

व्याख्या — कवि कहता है कि रात का समय है | आकाश में तारे जगमगा रहे हैं जिन्हें देखकर ऐसा लगता है जैसे टिमटिमाते हुए तारे आंखें झपका रहे हैं और सोना चाहते हैं | प्रकृति का कण-कण सोया हुआ है ऐसा लगता है कि मानव रात सो रही है | कवि कहता है कि हे मेरे मित्रो! तुम भी तनिक ध्यान से सुनो रात का यह सन्नाटा कुछ बोल रहा है | कहने का भाव यह है कि रात के समय जब चारों तरफ सन्नाटा होता है, तो वह सन्नाटा हमारे मनोभावों के अनुरूप हमसे कुछ कहता सा प्रतीत होता है |

हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला

किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं | (3)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने अपनी हृदयगत वेदना का वर्णन किया है |

व्याख्या — कवि अपनी दु:खमय स्थिति का वर्णन करते हुए कहता है कि उसको और उसकी किस्मत, दोनों को एक ही काम मिला है कि वह अपनी किस्मत को रोता रहता है और उसकी किस्मत उसको रोती रहती है | कहने का भाव यह है कि कवि के जीवन में कहीं भी सुख नहीं है, उसकी जीवन में केवल दुख ही दुख है | यही कारण है कि उस से जुड़कर संभवत: उसकी किस्मत भी उसे रो रही है |

जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें

मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं | (4)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने उसकी निंदा करने वाले लोगों पर करारा कटाक्ष किया है |

व्याख्या — कवि कहता है कि जो लोग उस को बदनाम कर रहे हैं काश वे इतना विचार कर सकते कि वास्तव में वे मेरे रहस्यों को उजागर कर मुझे बदनाम कर रहे हैं या स्वयं बेपर्दा होकर बदनाम होते जा रहे हैं | कवि के कहने का भाव यह है कि जो लोग दूसरे लोगों की बुराई करते हैं वास्तव में वे दूसरे लोगों के सामने स्वयं बुरे बन जाते हैं | ऐसे लोगों की बातों को कोई भी गंभीरता से नहीं लेता और उनकी चुगलखोर प्रवृत्ति के कारण उन पर विश्वास करना छोड़ देते हैं |

ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास

तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं | (5)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने सच्ची प्रेम की विशेषता का वर्णन करते हुए कहा है कि सच्चा प्रेम संपूर्ण समर्पण भावना से ही प्राप्त किया जा सकता है |

व्याख्या — शायर कहता है कि हे प्रिये ! तुम्हें पाने के लिए मैं दीवाना हो गया हूँ इस प्रकार मैंने पूरे होशो हवास में प्रेम की कीमत अदा कर दी है | कहने का भाव यह है कि किसी के प्रेम को प्राप्त करने के लिए हमें उससे पागलपन की हद तक प्रेम करना होता है | किसी को पागलों की तरह चाहना है, उसके प्रेम को पाने की कीमत है |

तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है

सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं | (6)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | इस काव्यांश में कवि ने अपनी दुविधाग्रस्त मन:स्थिति का वर्णन किया है |

व्याख्या — कवि कहता है कि हे प्रिये! मेरे मन में तुम्हारे दुखों का पूरा ध्यान है अर्थात मेरी विरह वेदना से तुम्हारे दिल पर क्या बीत रही होगी, मैं भली प्रकार से जानता हूँ | मैं हमेशा तुम्हारी चिंता करता हूँ परंतु इसके साथ-साथ मुझे इस दुनिया की परंपराओं और सामाजिक बंधनों की चिंता भी सताती है | यही कारण है कि मैं चाह कर भी तुम्हें अपना नहीं बना सकता इसलिए मैं सब लोगों से अपने दर्द को छुपा लेता हूँ और चुपचाप रोता रहता हूँ |

फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी

उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं | (7)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने अपने प्रेम विषयक विचार प्रस्तुत किए हैं |

व्याख्या — कवि कहता है कि प्रेम और सौंदर्य के क्षेत्र में लेन-देन का संतुलन बना रहता है | जो व्यक्ति स्वयं को प्रेम के लिये जितना अधिक समर्पित कर देता है वह उतना ही अधिक प्रेम प्राप्त करता है | भाव यह है कि किसी का सच्चा प्रेम पाने के लिए सच्चा प्रेम करना पड़ता है |

आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो

ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं | (8)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने अपनी शायरी के सौंदर्य पर प्रकाश डाला है |

व्याख्या — कवि कहता है कि तुम मेरी ग़ज़ल के शेरों की चमक दमक के विषय में मुझसे या किसी और से मत पूछो, तुम्हारे अपने पास भी आंखें हैं अर्थात तुम स्वयं मेरी शेरो शायरी को पढ़कर उसका मूल्यांकन कर सकते हो | कहने का भाव यह है कि केवल समीक्षकों की प्रशंसा भरी समीक्षा को सुनकर मेरी शायरी पर आसक्त हो जाना उचित नहीं है | अगर तुम से मेरी शायरी को पढ़ोगे तो तुम्हें अनुभव हो जाएगा कि यह मेरे शेरों की जगमगाहट है या मैंने मोती बिखेर दिए हैं |

ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को

रात गए गर्दूँ पै फरिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हैं | (9)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने अपनी प्रेमिका की यादों का वर्णन किया है |

व्याख्या — कवि कहता है कि जब रात के समय आकाश में देवतागण संसार के पापों का लेखा-जोखा लिख रहे होते हैं और यह देखने का प्रयास करते हैं कि किस व्यक्ति ने कितने पाप किए हैं उस समय हे मेरी प्रेमिका! मुझे तुम याद आती हो अर्थात रात होते ही कवि अपने गम को भुलाने के लिए शराब की महफिल में बैठ कर नशे में डूब जाना चाहता है परंतु उस समय भी उसे उसकी प्रेमिका की यादें सताती रहती है |

सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज

इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं | (10)

प्रसंग — प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘ग़ज़ल’ से अवतरित है | इसके कवि फिराक गोरखपुरी जी हैं | यहां कवि ने अपनी शायरी के विषय में चर्चा की है |

व्याख्या — कवि कहता है कि प्रायः लोग उसकी शायरी पर आसक्त होकर उससे कहते हैं कि हम तुम्हारी शायरी पर सदके जाते हैं | तुमने इतनी सुंदर और श्रेष्ठ शायरी कहां से सीखी? तुम्हारे कदमों के शेयरों में अमीर की ग़ज़लों की आवाज सुनाई देते है अर्थात तुम्हारी गजलों में प्रख्यात शायर मीर की गजलों का प्रभाव स्पष्ट रूप से लक्षित होता है |

अभ्यास के प्रश्न ( ग़ज़ल : फिराक गोरखपुरी )

(1) खुद का परदा खोलने से क्या आशय है? ( गज़ल : फिराक गोरखपुरी )

उत्तर — ‘खुद का पर्दा खोलना’ एक मुहावरा है जिसका अर्थ होता है – स्वयं अपने भेद को उजागर करना | इन पंक्तियों के माध्यम से कवि अपने निंदकों को सचेत करते हुए कहता है कि जो लोग उसकी निंदा करते हैं वास्तव में वे स्वयं समाज में निंदा के पात्र बनते हैं क्योंकि दूसरों की निंदा करने वाले लोगों को कोई भी अच्छा नहीं मानता | ऐसे लोगों के सगे-संबंधी भी उन पर विश्वास करना छोड़ देते हैं | कोई भी उनसे अपने मन की बात कहना नहीं चाहता |

(2) ‘किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं’ – इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है चर्चा कीजिए |

उत्तर — इस पंक्ति के माध्यम से कवि इस तथ्य को उजागर करना चाहता है कि उसके जीवन में सुख नहीं हैं | इसीलिए वह अपनी किस्मत को रोता रहता है | उसके जीवन में इतने अधिक दु:ख व्याप्त हैं कि स्वयं किस्मत की उससे जुड़ कर रो रही होगी | ‘किस्मत हमको रो ले है‘ कहने से कवि के जीवन में दु:खों की अधिकता का संकेत मिलता है |

यह भी देखें

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

पतंग ( Patang ) : आलोक धन्वा

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण ( व्याख्या व अभ्यास के प्रश्न )

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय

सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध

उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी

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