पतंग ( आलोक धन्वा )

( यहाँ NCERT की हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित आलोक धन्वा द्वारा रचित कविता ‘पतंग’ की सप्रसंग व्याख्या तथा अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर दिए गए हैं | )

पतंग ( आलोक धन्वा )
पतंग ( आलोक धन्वा )

सबसे तेज बौछारें गयी भादो गया

सवेरा हुआ

खरगोश की आंखों जैसा लाल सवेरा

शरद आया पुलों को पार करते हुए

अपनी नई चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए

घंटी बजाते हुए जोर-जोर से

चमकीले इशारों से बुलाते हुए

पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को

चमकीले इशारों से बुलाते हुए और

आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए

कि पतंग ऊपर उठ सके –

दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज उड़ सके

दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके –

बांस की सबसे पतली कमानी उड़ सके –

कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और

तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया (1)

व्याख्या — प्रस्तुत कविता में आलोक धन्वा जी पतंग उड़ाने के लिये लालायित बच्चों की मन:स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सावन महीने की वर्षा की तेज बौछारें चली गयी हैं और भादो का महीना भी बीत गया है | अब खरगोश की आँखों जैसे लाल सवेरे का आगमन हुआ है अर्थात आसमान में छाए रहने वाली काली घटाएं अब छंट चुकी हैं और आसमान साफ हो गया है | अब शरद ऋतु का आगमन हो गया है | शरद ऋतु का मानवीकरण करते हुए कवि कहता है कि ऐसा लगता है जैसे शरद अपनी चमकीली साइकिल पर बैठ कर घंटी बजाते हुए एक पुल के ऊपर से आ रहा है और चमकिले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों को बुला रहा है और उसने आकाश को इतना नरम, मुलायम और स्वच्छ बना दिया है कि पतंग सरलता से उड़ सके | कवि ने पतंग के लिये दुनिया की सबसे हलकी चीज, सबसे पतली कमानी, सबसे पतला कागज और सबसे रंगीन कागज जैसे विशषणों का प्रयोग किया है क्योंकि पतंग बच्चों की सबसे प्रिय चीज होती है ; जब वे पतंग उड़ाने की जिद करते हैं तो अन्य कोई वस्तु उसका स्थान नहीं ले सकती | कहने का भाव यह है कि शरद ऋतु के आगमन पर आकाश पूर्णत: स्वच्छ हो जाता है और पतंग उड़ाने के लिये आदर्श परिस्थितियां तैयार हो जाती हैं | जब बच्चे पतंग उड़ा कर सीटियां बजाते हुए और किलकारियां मारते हुए उछलने-कूदने लगते हैं, तब वे तितलियों के समान सुन्दर प्रतीत होते हैं |

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास

पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास

जब वे दौड़ते हैं बेसुध

छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

जब वे पेंग भरते हुए चले जाते हैं

डाल की तरह लचीले वेग से अक्सर

छतों के खतरनाक किनारों तक –

उस समय गिरने से बचाता है उन्हें

सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत

पतंगों की धड़कती ऊंचाइयां उन्हें थाम लेती हैं

महज एक धागे के सहारे

पतंगों के साथ-साथ में भी उड़ रहे हैं

अपने रध्रों के सहारे

अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से

और बच जाते हैं तब वो

और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं

पृथ्वी और भी तेज घूमती हुई आती है

उनके बेचैन पैरों के पास | (2)

व्याख्या — पतंग उड़ाते हुए बच्चों का मनोवैज्ञानिक वर्णन करते हुए कवि आलोक धन्वा जी कहते हैं कि बच्चे जन्म से ही अपने साथ कपास लाते हैं अर्थात वे अत्यंत कोमल होते हैं | वे चारों तरफ चंचलता से दौड़ते रहते हैं | ऐसा लगता है जैसे पृथ्वी स्वयं ही इनके बेचैन पैरों के नीचे आती है | छतों पर दौड़ते हुए बच्चे छतों को भी नरम-मुलायम बना देते हैं अर्थात कोमलांगी बच्चों के भागने से छतों को कोई नुकसान नहीं होता | जब वे दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए, पेंग भरते हुए और डाल के लचीले वेग से छतों पर भागते हुए छतों के खतरनाक किनारों तक पहुंच जाते हैं तब उन्हें उनके रोमांचित शरीर का संगीत और पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ गिरने से बचाती हैं | ऐसा लगता है कि एक डोर के माध्यम से वे पतंग से जुड़ जाते हैं, पतंग में उनकी आत्मा बस जाती है और पतंग के साथ वे भी आकाश में उड़ने लगते हैं | यदि कभी वे छतों से गिर भी जाते हैं तब और ऊर्जावान हो जाते हैं तथा और अधिक निडरता से सुनहले सूरज के सामने आते हैं ; अब और अधिक तेजी से छतों पर दौड़ते हैं | ऐसा लगता है कि अब पृथ्वी और अधिक तेजी से उनके बेचैन पैरों के पास आती है |

अभ्यास के प्रश्न ( पतंग : आलोक धन्वा )

(1) ‘सबसे तेज बौछारें गयी, भादो गया’ के बाद प्रकृति में जो परिवर्तन कवि ने दिखाया है, उसका वर्णन अपने शब्दों में करें |

उत्तर — भादो का महीना बीत चुका है | आकाश में छाए रहने वाले काले बादल अब छंट गए हैं और सारा आकाश साफ हो गया है | मूसलाधार वर्षा अब समाप्त हो गई है | अब खरगोश की आंखों जैसा एक लाल सवेरा उदय हुआ है | धीमी-धीमी हवा चल रही है |संपूर्ण आकाश निर्मल और कोमल बन गया है और बच्चों के पतंग उड़ाने के लिए आदर्श परिस्थितियां बन गई हैं |

(2) सोच कर बताएं की पतंग के लिए सबसे हल्की और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसे विशेष नो का प्रयोग क्यों किया गया है?

उत्तर — प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि ने पतंग की उन विशेषताओं को उजागर किया है जिन विशेषताओं के बल पर पतंग बच्चों को आकर्षित करती है | कवि के अनुसार पतंग सबसे हल्की व सबसे रंगीन होती है | पतंग में प्रयुक्त कमानी और कागज सबसे पतला होता है | वैसे भी अगर बच्चों के दृष्टिकोण से देखें तो बच्चों के लिए पतंग सर्वाधिक प्रिय होती है | जब बच्चे पतंग उड़ाने की जीत पर उतर आते हैं तो अन्य किसी भी वस्तु से उन्हें बहलाया नहीं जा सकता | तब उन्हें पतंग में प्रयुक्त प्रत्येक वस्तु सर्वश्रेष्ठ नजर आती है जिसका स्थान कोई अन्य वस्तु नहीं ले सकती | ऐसी अवस्था में पतंग के लिए सबसे हल्की और रंगीन चीज, सबसे पतला कागज, सबसे पतली कमानी जैसी विशेषताओं का प्रयोग करना सर्वथा उचित है |

(3) जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास – कपास के बारे में सोचें कि कपास से बच्चों का क्या संबंध बन सकता है?

उत्तर — कपास अत्यंत नर्म-मुलायम और हल्की होती है | बच्चों में भी कपास के गुण देखे जा सकते हैं | बच्चों का शरीर भी अत्यंत नरम और कोमल होता है | उनका शरीर हल्का-फुल्का होता है | जिस प्रकार कपास में लचीलापन होता है ठीक उसी प्रकार बच्चे भी अत्यंत लचीले होते हैं | इस प्रकार कपास और बच्चों में कोमलता और लचीलेपन का सांझा गुण होता है |

(4) पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं – बच्चों का उड़ान से कैसा संबंध बनता है?

उत्तर — जिस प्रकार पतंग आकाश में उड़ान भरता है ठीक उसी प्रकार बच्चे भी छतों पर उड़ते हुए से प्रतीत होते हैं | जैसे-जैसे पतंग ऊपर उठता है वैसे-वैसे बच्चों के मन में उत्साह और उमंग उफान लेने लगता है | वे छतों के खतरनाक किनारों तक भागने लगते हैं | वे तितलियों की तरह उड़ते हुए इधर-उधर धमाचौकड़ी करने लगते हैं | ऐसा लगता है कि जैसे डोर के माध्यम से वे पतंग से जुड़ गए हैं | पतंग के ऊपर उड़ने के साथ-साथ मानो वे भी आकार में उड़ान भरते हैं | पतंग का ऊपर उठना और नीचे गिरना उनके हृदय की धड़कन को नियंत्रित करता है |

(5) निम्नलिखित पंक्तियों को पढ़कर प्रश्नों का उत्तर दीजिए —

(क ) छतों को भी नरम बनाते हुए

दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए

(ख ) अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से

और बच जाते हैं तब तो

और भी निडर होकर सुनहरे सूरज के सामने आते हैं |

(1) दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का क्या तात्पर्य है?

(2) जब पतंग सामने हो तो छतों पर दौड़ते हुए क्या आपको छत कठोर लगती है?

(3) खतरनाक परिस्थितियों का सामना करने के बाद आप दुनिया की चुनौतियों के सामने स्वयं को कैसा महसूस करते हैं?

उत्तर — (1) दिशाओं को मृदंग की तरह बजाने का तात्पर्य है कि जब बच्चे पतंग उड़ाते हुए छतों पर इधर-उधर धमाचौकड़ी करते हुए भागते हैं तो चारों दिशाओं में ऐसा संगीत गूंजने लगता है मानो मृदंग बज रहे हों |

(2) पतंग उड़ाते समय बच्चों का ध्यान केवल पतंग उड़ाने में लगा रहता है | उनका उत्साह, हर्ष-विषाद तथा निराशा पतंग के साथ जुड़ी हुई होती है | अन्य बातों का बच्चों से कोई मतलब नहीं होता | तब ऐसी अवस्था में कठोर छतें भी उन्हें नरम-मुलायम और कमल लगती हैं |

(3) जब मनुष्य खतरनाक परिस्थितियों का सामना कर लेता है तो वह निडर हो जाता है | उसमें भविष्य की चुनौतियों का सामना करने का साहस आ जाता है | अगर भविष्य में उसके सामने और भी अधिक जटिल समस्या उत्पन्न होती है तो वह घबराता नहीं है बल्कि साहस और विवेक से उसका हल ढूंढने का प्रयास करता है |

(6) ‘पतंग’ कविता का प्रतिपाद्य / मूल भाव / संदेश या उद्देश्य अपने शब्दों में लिखिए |

उत्तर — ‘पतंग’ कविता का मुख्य उद्देश्य सावन-भादो के बीतने के पश्चात आकाश में आए परिवर्तनों का चित्रण करना तथा पतंग उड़ा रहे बच्चों की बाल-सुलभ क्रियाओं का मनोवैज्ञानिक वर्णन करना है | कवि आलोक धन्वा जी कहते हैं कि सावन के महीने की तेज बौछारें चली गयी हैं, भादो का महीना बीत गया है | आकाश में छाए रहने वाले काले बादल अब लुप्त हो गए हैं | आकाश पूर्णत: स्वच्छ व निर्मल हो गया है | अब शरद ऋतु का आगमन हो गया है और खरगोश की आंखों जैसे एक लाल सवेरे का उदय हुआ है | शरद का मानवीकरण करते हुए कवि कहता है कि वह अपनी नई साइकिल को तेज चलाते हुए चमकीले इशारे करके बच्चों को अपनी ओर बुला रहा है | बच्चे आकाश में हल्की, रंगीन व पतली कमानी वाली पतंग उड़ाने लगते हैं और बच्चों के झुंड किलकारियां तथा सीटियां बजाने लगते हैं | छत और दीवारों पर कूदते हुए बच्चे कपास के सामान नर्म-मुलायम और कोमल लगते हैं | उनके भागने से छतें भी नरम हो जाती हैं | उनकी किलकारियों तथा शोरगुल से दिशाएं मृदंग के समान गूंजने लगती हैं | पतंग उड़ाने के उत्साह में बच्चे छतों के खतरनाक किनारों तक पहुंच जाते हैं और बच जाते हैं | यदि कभी-कभार वे छत से गिर भी जाते हैं तो वे और अधिक निर्भीक होकर उठ खड़े होते हैं और अगले दिन पुनः पतंग उड़ाने के लिए सुनहले सूरज के सामने आ खड़े होते हैं |

यह भी देखें

दिन जल्दी जल्दी ढलता है ( Din jaldi jaldi Dhalta Hai ) : हरिवंश राय बच्चन

आत्मपरिचय ( Aatm Parichay ) : हरिवंश राय बच्चन

कविता के बहाने ( Kavita Ke Bahane ) : कुंवर नारायण

बात सीधी थी पर ( Baat Sidhi Thi Par ) : कुंवर नारायण

कैमरे में बंद अपाहिज ( Camere Mein Band Apahij ) : रघुवीर सहाय

सहर्ष स्वीकारा है ( Saharsh swikara Hai ) : गजानन माधव मुक्तिबोध

उषा ( Usha ) शमशेर बहादुर सिंह

बादल राग : सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ( Badal Raag : Suryakant Tripathi Nirala )

बादल राग ( Badal Raag ) ( सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ): व्याख्या व प्रतिपाद्य

कवितावली ( Kavitavali ) : तुलसीदास

लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप ( Lakshman Murcha Aur Ram Ka Vilap ) : तुलसीदास

गज़ल ( Gajal ) : फिराक गोरखपुरी

रुबाइयाँ ( Rubaiyan ) : फिराक गोरखपुरी

बगुलों के पंख ( Bagulon Ke Pankh ) : उमाशंकर जोशी

छोटा मेरा खेत ( Chhota Mera Khet ) : उमाशंकर जोशी

error: Content is proteced protected !!