बिस्तरे के मुहाने पर
जंगली नदी का शोर हो रहा है
और थपेड़े
मकान की नींव से
मेरे तकिये तक आ रहे हैं
काँपते हुए पेड़ों को – भांपते हुए
पत्नी ने कहा – आँधी
और फिर बक्से के पास लौट आयी | 1️⃣
मेरे उठते ही
खिड़की के रास्ते
कमरे से हाथ मिला रहा है
गाँव का आकाश
परिवार की खाड़ी में लंगर डालकर
मेरा जहाज खड़ा है
मैं इस बार भी कहीं नहीं पहुँचूंँगा
एक नरक की मजबूती के लिए
उठे हुए बखेड़े पर किलें ठोकता हुआ
सोच रहा हूँ
जरूर कोई दूसरा किनारा है
कैसे कहा जा सकता है
कि अब नहीं चटकेगी
बहती उम्मीद पर ठोकी हुई
मेरी साधारण आत्मा | 2️⃣