चिट्ठियां ( Chithiyan ) : रघुवीर सहाय

आखिर जब कवि लिखने बैठा तो

कि वह चिट्ठी लिखता है

सब नृशंसताएं सामान्य हैं

इक्कीसवीं वीं सदी में पुराणपंथी प्रसन्न हैं

बीसवीं शताब्दी शेष होने लगी

सब मेरे लोग एक-एक कर मरते हैं

बार-बार बचे हुए लोगों की सूची बनाता हूँ

जो बाकी बचे हुए लोगों के अते-पते बतलाएं

जिससे ये चिट्ठियां मैं उनको भेज दूँ | 1️⃣

सबसे पहले पत्र यह लिखो

मेरा घर दरकता है तुम जहां हो एक बार के लिए आओ

ये मेरे बच्चों के नाम डाक में देना

उनके बस अस्थाई पते हैं पर उन्हें खबर मिल जाएगी

जब सुख में होंगे तब उन्हें याद आऊंगा

जैसे कि पिता मुझे आते थे

दूसरे पत्र की कई प्रतियां बनाओ

सब पर हस्ताक्षर के साथ

पत्र निजी हो जाएगा – वह मैं कर दूंगा | 2️⃣

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