( यहाँ NCERT की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित गज़ल ‘साये में धूप’ की व्याख्या तथा प्रतिपाद्य दिया गया है | )
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए | 1️⃣
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए | 2️⃣
न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए | 3️⃣
खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए | 4️⃣
वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ, आवाज़ में असर के लिए | 5️⃣
तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की,
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए | 6️⃣
जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले
मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए | 7️⃣
यह भी देखें
पथिक : रामनरेश त्रिपाठी ( Pathik : Ram Naresh Tripathi )
वे आँखें : सुमित्रानंदन पंत ( Ve Aankhen : Sumitranandan Pant )
घर की याद : भवानी प्रसाद मिश्र ( Ghar Ki Yad : Bhawani Prasad Mishra )
सबसे खतरनाक : पाश ( Sabse Khatarnak : Pash )
आओ मिलकर बचाएँ : निर्मला पुतुल ( Aao, Milkar Bachayen : Nirmala Putul )
अक्क महादेवी ( Akka Mahadevi )
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