( ‘आओ मिलकर बचाएँ’ NCERT की बारहवीं कक्षा की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग -2 में संकलित कविता है जो झारखण्ड की प्रसिद्ध कवयित्री निर्मला पुतुल द्वारा लिखित है | कविता झारखण्ड की आबो-हवा और संस्कृति को बचाने का आग्रह करती है | )
अपनी बस्तियों को
नंगी होने से
शहर की आबो-हवा से बचाएँ उसे
बचाएँ डूबने से
पूरी की पूरी बस्ती को
हड़िया में
अपने चेहरे पर
संथाल परगना की माटी का रंग
भाषा में झारखंडीपन | 1️⃣
ठंडी होती दिनचर्या में
जीवन की गर्माहट
मन का हरापन
भोलापन दिल का
अक्खड़पन, जुझारूपन भी
भीतर की आग
धनुष की डोरी
तीर का नुकीलापन
कुल्हाड़ी की धार
जंगल की ताजा हवा
नदियों की निर्मलता
पहाड़ों का मौन
गीतों की धुन
मिट्टी का सोंधापन
फसलों की लहलहाहट | 2️⃣
नाचने के लिए खुला आँगन
गाने के लिए गीत
हँसने के लिए थोड़ी-सी खिलखिलाहट
रोने के लिए मुट्ठी भर एकांत
बच्चों के लिए मैदान
पशुओं के लिए हरी-हरी घास
बूढों के लिए पहाड़ों की शांति | 3️⃣
और इस अविश्वास-भरे दौर में
थोड़ा-सा विश्वास
थोड़ी-सी उम्मीद
थोड़े-से सपने
आओ मिलकर बचाएँ
कि इस दौर में भी बचाने को
बहुत कुछ बचा है,
अब भी हमारे पास | 4️⃣
यह भी देखें
पथिक : रामनरेश त्रिपाठी ( Pathik : Ram Naresh Tripathi )
वे आँखें : सुमित्रानंदन पंत ( Ve Aankhen : Sumitranandan Pant )
घर की याद : भवानी प्रसाद मिश्र ( Ghar Ki Yad : Bhawani Prasad Mishra )
अक्क महादेवी ( Akka Mahadevi )
सबसे खतरनाक : पाश ( Sabse Khatarnak : Pash )
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