साये में धूप ( दुष्यंत कुमार )

( यहाँ NCERT की हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह भाग 1’ में संकलित गज़ल ‘साये में धूप’ की व्याख्या तथा प्रतिपाद्य दिया गया है | )

साये में धूप

कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए,

कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए | 1️⃣

यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है,

चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए | 2️⃣

न हो कमीज तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे,

ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए | 3️⃣

खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही,

कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए | 4️⃣

वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता,

मैं बेकरार हूँ, आवाज़ में असर के लिए | 5️⃣

तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शायर की,

ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए | 6️⃣

जिएँ तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले

मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए | 7️⃣

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