( ‘वे आँखें’ सुमित्रानंदन पंत द्वारा रचित एक प्रगतिशील कविता है जिसमें एक किसान की दयनीय स्थिति का मार्मिक चित्रण है | )
अंधकार की गुहा सरीखी
उन आँखों से डरता है मन,
भरा दूर तक उनमें दारुण
दैन्य दुख का नीरव रोदन!
वह स्वाधीन किसान रहा,
अभिमान भरा आँखों में इसका,
छोड़ उसे मँझधार आज
संसार कगार सदृश बह खिसका | 1️⃣
लहराते वे खेत दृगों में
हुआ बेदखल वह अब जिनसे,
हँसती थी उसके जीवन की
हरियाली जिनके तृन-तृन से!
आँखों ही में घूमा करता
वह उसकी आँखों का तारा,
कारकुनों की लाठी से जो
गया जवानी ही में मारा | 2️⃣
बिका दिया घर द्वार,
महाजन ने न ब्याज की कौड़ी छोड़ी,
रह-रह आंखों में चुभती वह
कुर्क हुई बरधों की जोड़ी!
उजरी उसके सिवा किसे कब
पास दुहाने आने देती?
अह, आंखों में नाचा करती
उजड़ गई जो सुख की खेती! 3️⃣
बिना दवा दर्पण के घरनी
स्वरग चली, – आंखें आती भर,
देख-रेख के बिना दुधमुँही
बिटिया दो दिन बाद गई मर!
घर में विधवा रही पतोहू,
लछमी थी, यद्यपि पति घातिन,
पकड़ मंगाया कोतवाल ने,
डूब कुएँ में मरी एक दिन! 4️⃣
खैर, पैर की जूती, जोरू
न सही एक, दूसरी आती,
पर जवान लड़के की सुध कर
साँप लोटने, फटती छाती |
पिछले सुख की स्मृति आँखों में
क्षण भर एक चमक है लाती,
तुरत शून्य में गड़ वह चितवन
तीखी नोक सदृश बन जाती | 5️⃣
यह भी देखें
घर की याद : भवानी प्रसाद मिश्र ( Ghar Ki Yad : Bhawani Prasad Mishra )
सबसे खतरनाक : पाश ( Sabse Khatarnak : Pash )
अक्क महादेवी ( Akka Mahadevi )
आओ मिलकर बचाएँ : निर्मला पुतुल ( Aao, Milkar Bachayen : Nirmala Putul )
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