गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा ( Gangrene Kahani Ki Tatvik Samiksha )

( यहाँ कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित बी ए चतुर्थ सेमेस्टर की पाठ्य पुस्तक ‘कथाक्रम’ में संकलित गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा प्रस्तुत की गई है |)

गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा
गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा

‘गैंग्रीन’ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ की एक सुप्रसिद्ध कहानी है | पहले यह कहानी अज्ञेय जी के कहानी संकलन ‘विपथगा’ में ‘रोज’ नाम से प्रकाशित हुई थी | सन 1990 में यह कहानी ‘गैंग्रीन’ नाम से प्रकाशित हुई | हिंदी साहित्य जगत में यह कहानी ‘रोज’ नाम से अधिक प्रसिद्ध है |

किसी कहानी की समीक्षा के लिए कतिपय आलोचकों ने कहानी के छह अनिवार्य तत्व निर्धारित किए हैं, जिनके आधार पर ‘गैंग्रीन’ कहानी की समीक्षा ( Gangrene Kahani Ki Samiksha ) इस प्रकार की जा सकती है : —

(1) कथानक या कथावस्तु

(2) पात्र एवं चरित्र-चित्रण

(3) संवाद या कथोपकथन

(4) देशकाल और वातावरण

(5) भाषा और भाषा-शैली

(6) उद्देश्य

(1) कथानक या कथावस्तु

कहानी कथानक पर ही निर्भर करती है | कथानक जितना अधिक प्रभावी होगा कहानी भी उतनी ही अधिक प्रभावशाली होगी | वास्तव में कथानक किसी कहानी की रीढ़ की हड्डी होती है, जिस पर पूरी कहानी अवलंबित होती है |

गैंग्रीन’ कहानी का कथानक ( Gangrene Kahani Ka Kathanak ) अत्यंत लघु घटना पर आधारित है जो कहानी की नायिका मालती की एक दिन की दिनचर्या का वर्णन करता है | कहानी के पहले भाग में मालती अपने रिश्ते के भाई का औपचारिक स्वागत करती है, जिसमें कोई उत्साह नहीं है | वह उसका कुशलक्षेम तक नहीं पूछती, उससे कोई बात नहीं करती, केवल उसके प्रश्नों का रूखा सा जवाब देती है | शादी के दो वर्षों में ही चंचल, बातूनी लड़की का व्यक्तित्व बुझ सा गया है |

कहानी में मालती के लगभग दोपहर से रात के ग्यारह बजे तक की दिनचर्या का वर्णन मिलता है | दोपहर का भोजन बनाने, अपने डॉक्टर पति महेश्वर और लेखक को खाना खिलाने के बाद वह अपने छोटे-से बेटे टिटी को संभालती है और तीन बजे खाना खाती है | उसके बाद बर्तन मांजती है, कुछ देर विश्राम करती है परन्तु मुख पर उत्साह का कोई भाव नहीं | इसी प्रकार रात को बच्चे को संभालते हुए रात का खाना बनाती है | साढ़े दस बजे सब को भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करती है | बर्तन माँजते-माँजते रात के ग्यारह बज जाते हैं | फिर टिटी के साथ सो जाती है | सुबह चार बजे यंत्रवत उठ जाती है क्योंकि उसके पति को सुबह अस्पताल में मरीजों को देखने के लिए जाना पड़ता है | यही कहानी का कथानक है |

प्रायः कहानी के कथानक में मौलिकता, रोचकता, क्रमबद्धता, सुसंबद्धता, विश्वसनीयता, उत्सुकता, प्रभावात्मकता आदि गुण होने चाहिए | ‘गैंग्रीन‘ कहानी में ये सभी गुण मिलते हैं | कहीं-कहीं रोचकता का स्थान गंभीरता ले लेती है, जो कथानक के अनुकूल है |

(2) पात्र एवं चरित्र-चित्रण

गैंग्रीन‘ कहानी में केवल चार पात्र हैं – मालती, उसका पति डॉक्टर महेश्वर, उसका बेटा टिटी तथा लेखक | मालती कहानी का केंद्रीय पात्र है | कहानी का कथानक और मूल भाव मालती के पात्र से जुड़ा है | अन्य पात्र भी उसके व्यक्तित्व को उभारने में सहायक की भूमिका निभाते हैं | मालती बचपन में चंचल, शरारती तथा जीवन से भरपूर हुआ करती थी परंतु शादी के केवल दो वर्ष बाद ही उसका जीवन निराशा में परिवर्तित हो गया | डॉक्टर महेश्वर उसका पति है, जो अपने पेशे से इस तरह जुड़ा है कि परिवार की तरफ उसका कोई ध्यान ही नहीं | वह भी मालती की भांति यांत्रिकता का शिकार है | टिटी उन दोनों का पुत्र है और मां-बाप दोनों के होते हुए उनके प्यार से अछूता है | लेखक की भूमिका केवल तीनों के व्यवहार का विश्लेषण करना है |

प्रस्तुत कहानी में केवल मालती ही प्रमुख पात्र है जिसका प्रभावी चित्रण कहानी में मिलता है | अन्य पात्र भी कहानी में प्रभावी भूमिका निभाते हैं | इस प्रकार प्रस्तुत कहानी में पात्र एवं चरित्र-चित्रण कहानी के कथानक के अनुकूल है |

(3) संवाद या कथोपकथन

पात्रों की परस्पर बातचीत को संवाद कहा जाता है | संवाद कहानी का महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है | संवादों के माध्यम से ही पात्रों का चरित्र उभरकर सामने आता है | ‘गैंग्रीन‘ जैसी मनोवैज्ञानिक व मनोविश्लेषणात्मक कहानियों में संवादों की भूमिका अधिक बढ़ जाती है |

‘गैंग्रीन’ कहानी की संवाद-योजना अत्यंत प्रभावशाली है | यह संवाद प्राय: संक्षिप्त, सरल तथा रोचक हैं | ये संवाद कहानी को गति प्रदान करते हैं तथा कहानी में नाटककीयता उत्पन्न करते हैं |

एक उदाहरण देखिए –

उसने कहा, ”आ जाओ |” और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए भीतर की ओर चली | मैं भी उसके पीछे हो लिया |

भीतर पहुंचकर मैंने पूछा, “वे यहाँ नहीं हैं?”

“अभी आए नहीं, दफ्तर में हैं | थोड़ी देर में आ जाएंगे | कोई डेढ़-दो बजे आया करते हैं |”

“कब के गए हुए हैं?”

“सवेरे उठते ही चले जाते हैं |”

(4) देशकाल और वातावरण

देशकाल और वातावरण का संबंध किसी कहानी के समय, स्थान एवं परिवेश से होता है | देशकाल और वातावरण की सृष्टि कहानी को विश्वसनीय बनाती है | लेखक कहानी में विभिन्न संकेतों तथा संवादों के माध्यम से वातावरण को सजीव करता है |

गैंग्रीन‘ कहानी में लेखक ने वातावरण एवं देशकाल का सफल वर्णन किया है | एक उदाहरण देखिए –

“दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मंडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य किंतु फिर भी बोझल और प्रकम्पमय और घना-सा सन्नाटा फैल रहा था….”

कहानी पहाड़ी क्षेत्र से संबंध रखती है | लेखक ने नागरिक जीवन की चहल-पहल से दूर के इस क्षेत्र का शब्द-चित्र कहानी में प्रस्तुत किया है | उस पहाड़ी क्षेत्र की रात का वर्णन करते हुए लेखक कहता है –

“मैंने देखा….. दिनभर की तपन, अशांति, थकान, दाह पहाड़ों में से भाप-से उठकर वातावरण में खोए जा रहे हैं जिसे ग्रहण करने के लिए पर्वत-शिशुओं ने अपनी चीड़-वृक्षरुपी भुजाएँ आकाश की ओर बढ़ा रखी हैं |”

इस प्रकार ‘गैंग्रीन‘ कहानी में देशकाल एवं वातावरण का यथार्थ अंकन हुआ है |

(5) भाषा एवं भाषा-शैली

गैंग्रीन‘ कहानी की भाषा ( Gangrene Kahani Ki Bhasha ) सरल, सहज, स्वाभाविक तथा विषयानुकूल है | तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशज आदि सभी प्रकार के शब्दों का प्रयोग हुआ है | आम बोलचाल के शब्दों व छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग किया गया है | भाषा प्रसाद गुण संपन्न है |

कहानी में आत्मकथात्मक शैली का प्रयोग है | मनोविश्लेषणात्मकता, भावात्मकता, चित्रात्मकता तथा संवादात्मक शैली का प्रयोग भी हुआ है | प्रतीकात्मकता सर्वत्र व्याप्त है जो कहानी के शीर्षक में भी झलकती है |

(6) उद्देश्य

प्रत्येक साहित्यिक रचना का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है | प्रस्तुत कहानी भी इसका अपवाद नहीं है | ‘गैंग्रीन‘ कहानी का उद्देश्य ( Gangrene Kahani Ka Uddeshy ) नारी-जीवन की उस समस्या को उजागर करना है जिसके कारण नारी एक बंधी-बंधाई लकीर पर मशीन की भांति भावना-शून्य जीवन जीती है | कहानी जीवन की एकरसता से उत्पन्न नीरसता को व्यक्त करती है | प्रतिदिन एक-सी दिनचर्या का वर्णन करने के कारण ही संभवत: इस कहानी का नाम ‘रोज’ रखा गया होगा | मालती के पति डॉक्टर महेश्वर की व्यस्त दिनचर्या, चहल-पहल विहीन पर्वतीय प्रदेश उसके जीवन की नीरसता में वृद्धि करते हैं |

उपर्युक्त विवेचन के आधार पर कहा जा सकता है कि ‘गैंग्रीन’ कहानी कहानी-कला के आधार पर एक सफल रचना है जो कहानी के सभी अनिवार्य तत्त्वों की कसौटी पर खरी उतरती है | लघु आकार के कथानक के कारण कहानी के पात्रों विशेषत: मालती के चरित्र का यथार्थ चित्रण हुआ है, जो मनोविश्लेषणात्मकता के आधार पर कहानी को सफल बनाता है |

यह भी देखें

‘गैंग्रीन’ सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय

ईदगाह : मुंशी प्रेमचंद ( Idgah : Munshi Premchand )

पुरस्कार ( जयशंकर प्रसाद )

फैसला ( मैत्रेयी पुष्पा )

‘ठेस’ कहानी की तात्विक समीक्षा

मलबे का मालिक ( मोहन राकेश )

‘पच्चीस चौका डेढ़ सौ’ कहानी का मूल भाव

21 thoughts on “गैंग्रीन कहानी की तात्विक समीक्षा ( Gangrene Kahani Ki Tatvik Samiksha )”

Leave a Comment

error: Content is proteced protected !!